मोदी ने नहीं किया भारत का अपमान!
मोदी के बयान पर राजनीति अपनी जगह है लेकिन हमारे समाज की कुछ सच्चाई ऐसी है जिस पर गर्व नहीं किया जा सकता.
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नरेंद्र मोदी ने शंघाई में जो कुछ भी कहा उससे ट्विटर पर #ModiInsultsIndia पूरी दुनिया भर में ट्रेंड करने लगा. विदेशी धरती पर इस तरह की बातें करना भले ही भारत में अच्छा नहीं माना जाता लेकिन संचार माध्यमों के जरिये जुड़ी हुई दुनिया में कुछ भी किसी से छुपा नहीं. मोदी ने कहा कि बाहर रहने वाले भारतीय मानते थे कि भारत में जन्म लेना एक अभिशाप है.
साफ तौर पर ये कड़वा तो है लेकिन इस सवाल का सामना किया जाना चाहिए. लेकिन, ये छोटा सा बयान उन लोगों के लिए भी अपने राष्ट्रीय गर्व की खोज का जरिया बना जो दिन-रात अपने देश को केवल कोसते रहते हैं. गर्व का भाव तभी आ सकता है जब हम सच का सामना करते हैं. वास्तव में हमें किन चीजों पर गर्व करना चाहिए? केवल भारतीय होने पर? आप केवल अपनी किस्मत पर गर्व नहीं कर सकते. भारत में जन्म लेना किस्मत की बात है क्योंकि हम दुनिया के सबसे विविध, अनोखे राष्ट्र हैं. लोग, भाषा, जमीन, धर्म, पहाड़, तट सब कुछ यहां विस्मित कर देने वाला है. लेकिन केवल इन सबसे ही गर्व का भाव नहीं आ सकता.
"#ProudToBeIndian" वाले गर्व की नहीं, घमंड की बू छोड़ते हैं. माना कि हमने अपनी अर्थव्यवस्था और सामरिक स्थिति को बेहतर बनाया है, लेकिन क्या यही सबकुछ है? एक इंसान के रूप में, एक समाज के रूप में और यहां तक कि एक राष्ट्र के रूप में हम जातिवाद, सम्प्रदायवाद, भ्रष्टाचार, अंधविश्वास, महिलाओं से भेदभाव और ढकोसलों का सामना करने में भीरू हैं.
मिलावटी दूध से लेकर जीवन रक्षक दवाईयां हों, लिंग आधारित गर्भपात से लेकर दहेज के कारण होने वाली मौतों का मामला हो, जाति या सम्प्रदाय के नाम पर हत्याएं, गंदगी फैलाने से लेकर ट्रैफिक नियमों के उल्लंघन तक या रिश्वत लेने या देने की बात हो, क्या हम इन बातों पर गर्व कर सकते हैं? गर्व बड़ी मूर्तियां बनाने या बड़े बांध खड़े देने भर से भी नहीं आता. गर्व मूल्यों से आता है जो एक राष्ट्र सहेजता है.
जब मैं ये लिख रहा हूं, एक खबर आ रही है कि फैक्ट्रियों में काम करने के कारण पंचायत ने 6 महिलाओं का बहिष्कार कर दिया है. ये घटना दिल्ली से महज 60 किलोमीटर दूर की है. महिलाओं को आर्थिक रूप से सशक्त करने का आइडिया समाज की स्थापित व्यवस्था को चुनौती लगता है. जब हम चीन और अन्य एशियाई देशों के आर्थिक विकास की बात करते हैं तो इस पर बात करना भूल जाते हैं कि वहां महिलाएं भी पुरूषों के साथ काम करती हैं.
उनके खेतों में जाइए, फैक्ट्रियों में जाइए, आप देखेंगे बड़ी संख्या में महिलाएं पुरूषों के साथ मिलकर काम कर रही हैं. हमारे यहां अवसरों की समानता पर रोक की कोशिश गर्भ से ही शुरू हो जाती हैं. कोई भी सम्मानजनक समाज कैसे इस बात की अनुमित दे सकता है. हम बदल रहे हैं लेकिन बदलाव की रफ्तार काफी सुस्त है.
हाल में इंटरनेट पर वायरल हुई खबरों में से एक थी कि दो राष्ट्रीय स्तर की महिला खिलाड़ी खेतों में काम करती पाई गईं. ये हमारी उस सोच को भी रेखांकित करता है जो हम अपने श्रमिकों के प्रति रखते हैं. एक इंसान के रूप में श्रमिकों के सम्मान के महत्व को हम नहीं समझ पाते. काम के आधार पर जाति का वर्गीकरण हमारे डीएनए में है. कौन सा सम्मानजनक देश अपने लोगों को उनके काम या क्षेत्र के आधार पर बांटकर देखेगा? ये स्थिति हमारे पिछड़े गांवों में और भी ज्यादा है जहां लोगों को सरकार और राजनीतिज्ञों ने गरीब बनाकर रखा है. किसान हितों और कृषि की सुरक्षा के नाम पर ये सब जारी है. यहां तक कि इन इलाकों में उद्यमशिलता भी जाति पर आधारित है.
एक नज़र डालते हैं जातियों पर और जो प्रगति हमने की है उस पर. हमें इस बात पर शर्मिंदा होना चाहिए जिस तरीके से हमने इस अभिशाप का सामना किया है. उदाहरण के लिए, जाति के नाम और अन्य इस तरह के विचार किस तरह हमे विफल करते रहे हैं.
हमने आधिकारिक रूप से कुछ जातियों के नाम को 'गाली' बना दिया है. कल्पना कीजिए एक व्यक्ति सरकारी नौकरी के लिए फॉर्म भर रहा है और आरक्षण के लिए उसे अपनी जाति का नाम भरना है. यानी मैं वो हूं जिसका नाम सार्वजनिक तौर पर नहीं लिया जा सकता. सच है न? देखिए कि लोग कैसे इस स्थिति का सामना करते हैं. पंजाब जाकर देखिए जहां लोगों ने इस सामाजिक अपमान का सामना पूरी ढृढता के साथ किया. 'पुत्त चमारां दा' एक लोकप्रिय बंपर स्टीकर है यहां. लोगों ने यहां जातियों के दबाव को मानने से इंकार कर दिया और दलित एवं हरिजन जैसे थोपे गए जुमलों को नकार दिया. इसी महान देश के एक हिस्से में एक दलित शादी में हेलमेट पहन कर जाता है क्योंकि वहां दलित के घोड़ा चढ़ने पर पत्थर बरसाए जाते हैं. अब बताइए हम किस गर्व की बात करते हैं?
साम्प्रदायिक हिंसा का डर हमारे शहरों और नगरों को बांटता हुआ नज़र आता है. अफवाहों के प्रभाव में आकर किस तरह लोग एक-दूसरे को मारने पर उतारू हो जाते हैं. ऐसे में सभी पक्ष के राजनीतिज्ञ आग को और भड़काते हैं. एक मोदी का डर दिखाता है तो दूसरा मोदी के नाम पर डराता है. वे ऐसा इसलिए करते हैं क्योंकि हम साम्प्रदायिक आधार पर वोटिंग करते हैं. हम इस तथ्य को स्वीकार करने को तैयार नहीं हैं कि इस रोग की जड़ें काफी गहरी हैं. एक कंपनी एक मुस्मिल युवक को केवल इसलिए नौकरी देने से इंकार कर देती है क्योंकि वह केवल गैर-मुस्लिमों को ही नौकरी पर रखती है. ये हमेशा केवल सरकार या राजनीतिज्ञों की ओर से ही नहीं होता है.
हम लोग सौहार्द के गीत गाना चाहते हैं. ये उम्मीद करते हुए भी कि नाउम्मीदी की आवाज को कोई सुन नहीं रहा है. जम्मू-कश्मीर में ही देखिए. हम ये बात मानने से इंकार करते हैं कि पाकिस्तान ने इस सीमा विवाद को साम्प्रदायिक बना दिया. इस नए बंटवारे की प्रक्रिया वहां 1980 के दशक में ही पूरी कर ली गई थी. आज तीन दशकों बाद वहां कुछ पंडितों समेत बहुत सारे विशेषज्ञ हैं, जो कि कश्मीरियत की बात करते हैं मानों धर्म का जहर वहां है ही नहीं.
असुविधाजनक विषयों पर हम एक व्यक्ति के रूप में ईमानदार नहीं हैं... साथ ही हम भ्रष्टाचार जैसे विषयों पर भी चुप हैं. हम सदियों तक आक्रमणकारियों और विदेशी शक्तियों द्वारा रौंदे जाते रहे हैं क्योंकि हमारी वफादारी बिकाऊ थी. हम उनसे लड़े भी और लोकतांत्रिक देश बनने के लिए बलिदान भी दिया. हमारे पास एक बेहतर लोकतंत्र है जिस पर गर्व किया जा सकता है. अब एक बार राजनीति पर भी नज़र डालिए जो हमारे लोकतंत्र का सबसे प्रमुख बल है. घटिया. नितांत निकृष्ट.
मोदी जब कांग्रेस पार्टी के दशकों पुराने शासन के बारे में बात करते हैं तो बहुत ज्यादा गलत नहीं हैं. अभी ज्यादा दिन नहीं हुए. लोग स्कूटर खरीदने के लिए आवेदन करते थे और इंतजार करते थे. टेलीफोन कनेक्शन के लिए राजनेताओं के यहां गुहार लगाते थे. ये व्यवस्था भ्रष्टाचार की पोषक थी.
हमने एक व्यक्ति के तौर पर क्या किया? जो निकल सकते थे निकल लिए. बाकी गरीब हटाओ के नारे वाली अफीम पीकर सो गए. भ्रष्टाचार हमारी व्यवस्था पर इस कदर हावी हो गया है कि अगर भ्रष्टाचार खत्म कर देते तो ये पूरा सिस्टम भरभरा कर गिर जाता. अरविंद केजरीवाल ने नौकरशाही के भ्रष्टाचार के खिलाफ एक बड़ा आंदोलन चलाया. यह नौकरशाही द्वारा किया गया भ्रष्टाचार नहीं जिसके लिए आंदोलन की जरूरत पड़े.
हमारा दुश्मन नैतिक भ्रष्टाचार है. द्वेष, धर्म, जातिवाद, सम्प्रदायवाद जब तक ये तत्व हमारी जिंदगी को नियंत्रित करते हैं, हम भारत का अपमान करते हैं. मोदी ने कुछ नहीं किया.

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