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बड़ा आर्टिकल  |  
Updated: 20 अप्रिल, 2017 08:44 PM
आर.के.सिन्हा
आर.के.सिन्हा
  @RKSinha.Official
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सच में कभी-कभी डर भी लगता है कि हमारे पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान में कितना जुल्मों-सितम हो रहा है. आजकल पाकिस्तान में मानवाधिकार एक्टिविस्ट एक के बाद एक लापता हो जा रहे हैं. छू-मंतर हो गए मानवाधिकारियों का कहीं कोई अता-पता ही नहीं चल रहा. बीते कुछ महीनों में पांच मशहूर मानवाधिकार कार्यकर्ता गायब हो गए हैं. उन्हें धरती निगल गई या वे आसमान में समा गए, कुछ समझ नहीं आ रहा. पाकिस्तान मानवाधिकारों के हनन के सवाल पर पहले ही कई बार बेनकाब हो चूका है. वहां की पुलिस मनमानी, गिरफ्तारी, अमानवीय प्रताड़नायें, न्यायेतर हत्याएं और यौन हिंसा आदि के जरिए व्यापक मानवाधिकार उल्लंघन के कुकृत्यों में भयंकर रूप से लिप्त है. कुछ समय पहले मानवाधिकारों की स्थिति पर पूरी दुनिया में नजर रखने वाली संस्था एमेनेस्टी इंटरनेशनल की एक रिपोर्ट के मुताबिक पाक पुलिस फोर्स के भ्रष्ट अधिकारियों के कारण धार्मिक अल्पसंख्यकों की स्थिति पाकिस्तान में विशेष रूप से संवदेनशील है.

सन्न मानवाधिकारवादी

आप ऐसा कह सकते हैं कि पाकिस्तान में कट्टरपंथियों की आलोचना करने वालों का काफी अरसे से समय खराब चल रहा है. उनकी आवाजें दबाई जा रही है. लापता कार्यकर्ताओं में एक प्रोफेसर भी शामिल है. फातिमा जिन्ना विश्वविद्यालय के प्रोफेसर सलमान हैदर के गायब होने के बाद पाकिस्तान के मानवाधिकारों के क्षेत्र में सक्रिय बिरादरी सन्न है. वे कुछ समय पहले तक इस्लामाबाद में ही दिखे थे. वे कट्टरपंथियों की जमकर आलोचना करने के लिए जाने जाते थे.

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पाकिस्तान के सुप्रीम कोर्ट ने 10 फरवरी 2015 को केंद्रीय और राज्य सरकारों से यह कहा था कि जब भी कोई लाश मिले तो गायब हो गए लोगों के रिश्तेदारों से संपर्क किया जाये, ताकि वे उसे पहचान सकें. आप इससे समझ सकते हैं कि पाकिस्तान में अब किस तरह के हालात पैदा हो चुके हैं. सरकारी आंकड़ों के अनुसार 2009 से अब तक अधिकारियों को 4,557 लाशें मिली हैं या इतनी ही रिपोर्ट की गई हैं. इससे कहीं ज्यादा भी संस्था हो सकती है. उन अपहृत अपहरण लोगों की, जिनकी सरकार के विरुद्ध आवाज उठाने के लिए गैरकानूनी तरीके से घोर अमानवीय प्रतारना के बाद हत्या की गयी होगी.

दरअसल पकिस्तान के लागभग सभी प्रान्तों, विशेषरूप से बलूचिस्तान में लोगों को सुनियोजित ढंग से आये दिन गायब किया जा रहा है. एक बार पाकिस्तान की मानवाधिकार कार्यकर्ता और अधिवक्ता आसमां जहांगीर दिल्ली में बता रही थीं कि यह एक खुला हुआ राज है कि लोगों को सरकारी एजेंसियां ही उठाती हैं, बाहर से कोई नहीं आता.

भारत का आरोप

आपको याद होगा कि पिछले साल सितंबर में भारत ने संयुक्त राष्ट्र में बलूचिस्तान तथा पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में व्यापक मानवाधिकार उल्लंघन करने का आरोप लगाया था. जिनेवा में संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद के 33वें सत्र के दौरान भारत के राजदूत एवं स्थायी प्रतिनिधि अजीत कुमार ने कहा था कि पाकिस्तान की पहचान तानाशाही, लोकतांत्रिक नियमों की अनुपस्थिति वाला और बलूचिस्तान सहित देश के विभिन्न भागों में व्यापक मानवाधिकार उल्लंघनकर्ता के तौर हो चुकी है. पाकिस्तान एक ऐसा देश है जिसने बलूचिस्तान और पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर के साथ ही अपने ही नागरिकों के मानवाधिकारों का भी योजनाबद्ध तरीके से उल्लंघन किया है.

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मुझे एक पाकिस्तानी मानवाधिकार एक्टिविस्ट ने कुछ समय पहले इंडोनेशिया यात्रा के दौरान बताया था कि सिंध और पंजाब प्रांतों में भी हालात बाद से बदतर हो रहे हैं. पुलिस हर साल सैकड़ों मासूम लोगों को फर्जी एनकाउंटर में भून देती है. यातना के तरीकों में डंडा और चमड़े के पट्टे से पीटने, धातु के रॉड से पांवों को फैलाना और कुचलना, यौन हिंसा, लंबे समय तक नींद से वंचित करना और अनेक प्रकार की मानसिक यातनायें शामिल हैं जिनका जिक्र करना भी मुनासिब नहीं है.पाकिस्तान अव्वल दर्जे का बेशर्म देश है. भारत के अभिन्न अंग कश्मीर में मानवाधिकारों के उल्लंघन के मामले को पाकिस्तान जोरशोर से उठाता है. लेकिन, जब पाक अधिकृत कश्मीर में मानवाधिकार दमन का मुद्दा उठता है तो पाकिस्तान चुप्पी साध लेता है. तमाम प्रमुख मानवाधिकार आयोगों की रिपोर्टे साबित कर रही हैं कि वहां पर हालात दिल दहलाने वाले हैं. गिलगित के रहने वालों का कहना है कि जहालत और जलालत अब उनकी नियति बन चुकी है. हर सवाल का जवाब मारपीट, हर आंसू का हिसाब किताब हिंसा से ही होता है. उन लोगों के दर्द को केवल सिसकियों और चीखों में समझा जा सकता है. बुनियादी सुविधाओं की मांग करने पर उनके साथ जुल्म की इंतेहा होती है, जिसे वे बेचारे कहीं बयां तक नहीं कर सकते.

और जैसा कि मैंने पहले ही कहा कि पाकिस्तान में अब सरकार की तरफ से योजनाबद्ध ढंग से मानवाधिकारवादियों को गायब किया जा रहा है. हालात विशेषकर बलूचिस्तान प्रांत में खराब हैं. जो की एतिहासिक रूप से सदियों से एक स्वतंत्र राष्ट्र रहा है जिसपर पाकिस्तान ने जबरदस्ती कब्ज़ा जमाया हुआ है. 2014 के अंत में लागू किए गए प्रोटेक्शन ऑफ पाकिस्तान ऐक्ट (पीपीए) ने स्थिति को और बदतर कर दिया. पीपीए ने सुरक्षाबलों को यह अधिकार दे दिया कि किसी संदिग्ध को 90 दिनों तक बिना कारण बताये हिरासत में रखा जा सकता है. हिरासत में लिए जाने के लिए परिवार को बताने या जरूरी प्रक्रिया के पालन की भी जरूरत नहीं है. और दुखद पक्ष तो यह है कि पाकिस्तान की इतनी नाजुक स्थिति को लेकर विश्व बिरादरी और खासकर भारत के वामपंथी और तथाकथित सेक्युलर भी चुप्पी साधे हुए हैं. पाकिस्तान सरकार को लताड़ा तक नहीं जा रहा ताकि वह सुधरे. और तो और शिया मुसलमान भी पाकिस्तान में लगातार बेरहमी से मारे जा रहे हैं. वे वहां की आबादी का 10 से 15 फीसदी है. विभाजन के समय लगभग 25 फिसद थे. विगत शनिवार को बलूचिस्तान प्रांत में शिया मस्जिद में हमले में 20 से अधिक  शिया मुसलमान मारे गए. बीते कई सालों से शिया धार्मिक स्थलों को आतंकवादी हमलों में निशाना बनाया जा रहा है.

shia-muslims-in-pak-_042017063338.jpgशिया मुसलमानों पर जुल्म जारी है

उनके मानवाधिकारों को कोई देखने-सुनने वाला नहीं है. ये हालत मुसलमानों के ही एक वर्ग के हैं, वह भी एक कथित इस्लामिक देश में. वहां पर सुन्नी मुसलमानों के अलावा बाकी किसी का रहना अब मुश्किल होता जा रहा है. पाकिस्तान के हिन्दुओं और सिखों की तो दुर्दशा पर चर्चा करने का भी कोई मतलब नहीं है. पाकिस्तान में हिन्दुओं और सिखों की आबादी एक करोड़ के आसपास थी 1947 में. इसमें पूर्वी पाकिस्तान(अब बांग्लादेश) शामिल नहीं था. अब वहां पर मात्र 12 लाख हिन्दू और 10 हजार सिख रह गए हैं. हिन्दुओं और सिखों की इतनी बड़ी संख्या जो लगभग 88 लाख के करीब बनती है, आख़िरकार, गई कहां? क्या हुआ इनका? पाकिस्तान में हिन्दू और सिख समुदाय के लोगों की स्थिति बेहद दयनीय है. वे हमेशा डर और आतंक के साये में जीते हैं. पाकिस्तान के सिंध और पंजाब प्रान्त में हिन्दू लड़कियों के साथ जबरन शादी के मामले बार-बार सामने आते रहे हैं. पाकिस्तान के हिन्दू समुदाय ने एक सेमिनार कराची में कुछ समय पहले किया था. विषय था- ”पाकिस्तान में हिन्दू मुद्दे और समाधान.” इसमें शामिल वक्ताओं ने पाकिस्तान में हिंदुओं की बहन बेटियों का हो रहा जबरन धर्म परिवर्तन मीडिया के माध्यम से सारी दुनिया के सामने उजागर किया था.

जुल्म ईसाईयों पर भी

अन्य समुदायों के अल्पसंख्यकों की भी यही दशा है. इसका खुलासा खुद पाकिस्तान का मानवाधिकार आयोग करता रहा है. अब तो ईसाइयों को भी गाजर-मूली की तरह से काटा जा रहा है. पहले वे काफी हद तक बचे हुए थे. पिछले साल मार्च में लाहौर के एक पार्क में  दर्जनों ईसाई मारे गए थे. इस तरह के हमले पाकिस्तान के कुछ और शहरों में भी हुए. सुन्नी मुस्लिम बहुसंख्यक देश पाकिस्तान में हिंदुओं के बाद ईसाई दूसरा सबसे बड़ा अल्पसंख्यक समूह है. पाकिस्तान में लगभग 18 करोड़ की आबादी में 1.6 प्रतिशत ईसाई हैं.

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इधर बीते कुछेक सालों में पाकिस्तान के अन्दर ईसाइयों को निशाना बनाकर कई बड़े हमले किए गए हैं. मार्च 2015 में लाहौर के चर्चों में दो बम धमाके हुए थे, जिनमें 14 लोग मारे गए थे. 2013 में पेशावर के चर्च में हुए धमाकों में 80 लोग मारे गए थे. 2009 में पंजाब में एक उग्र भीड़ ने 40 घरों को आग लगा दी थी. इसमें आठ ईसाई मारे गए थे. 2005 में क़ुरान जलाने की अफ़वाह के बाद पाकिस्तान के फ़ैसलाबाद से ईसाइयों को अपने घर छोड़कर भागना पड़ा था. हिंसक भीड़ ने चर्चों और ईसाई स्कूलों को आग लगा दी थी.1990 के बाद से कई ईसाइयों को क़ुरान का अपमान करने और पैगंबर की निंदा करने के आरोपों में दोषी ठहराया जा चुका है. अब वे भी निशाने पर हैं.

इस तरह पाकिस्तान में मानवाधिकारवादियों और शिया मुसलमानों से लेकर बाकी धार्मिक समूहों के लिए जीना मुहाल हो चुका है. जाहिर है, भारत के लिए ये कोई सुखद हालात नहीं है. हमारा पड़ोसी आग में जल रहा है. पाकिस्तान में ताजा हालात की तरफ भारत को विशव बिरादरी का ध्यान आकृष्ट करना ही होगा.

हाल ही में बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में राजनीति शास्त्र के विद्यार्थियों के बीच व्याख्यान के दौरान एक छात्र ने प्रसिद्ध पाकिस्तान में जन्मे (अब  कनाडा के नागरिक) तारिक फतह से सवाल किया है कि पाकिस्तान और दक्षिण एशिया में शांति का माहौल कैसे कायम होगा? तारिक फ़तेह साहब का दो-टूक जबाब था, “शांति स्थापित करने का एकमात्र उपाय है कि वर्तमान पाकिस्तान के सिंध, पंजाब और बलूचिस्तान तीन स्वतंत्र राष्टों में बांट दिया जाये और उर्दू की जगह सिन्धी, पंजाबी और बलूची को इन स्वतंत्र राष्ट्रों का राष्ट्रभाषा घोषित कर दी जाए. तभी इस क्षेत्र में शांति स्थापित हो पायेगी और कश्मीर समस्या का भी स्थायी निदान हो जायेगा.    

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लेखक

आर.के.सिन्हा आर.के.सिन्हा @rksinha.official

लेखक वरिष्ठ संपादक, स्तभकार और पूर्व सांसद हैं.

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