Bhabanipur bypoll को लेकर ममता बनर्जी का 'डर' सामने आने लगा है!
ममता बनर्जी ने पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव भले भारी बहुमत से जीत लिया हो, मगर नंदीग्राम की हार वे कभी भूल नहीं पाएंगी. भवानीपुर उपचुनाव (Bhabanipur by-election) में उतरीं ममता के भाषणों में उनकी छटपटाहट देखी जा सकती है.
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चुनाव आयोग ने पश्चिम बंगाल की भवानीपुर (Bhabanipur Bypoll) समेत तीन विधानसभा सीटों पर उपचुनाव की घोषणा से तृणमूल कांग्रेस सुप्रीमो ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) को राहत दे दी थी. पश्चिम बंगाल (West Bengal) के मुख्यमंत्री पद पर बने रहने के लिए ममता बनर्जी का ये चुनाव जीतना जरूरी था. क्योंकि, नंदीग्राम विधानसभा सीट पर अपने पुराने सिपेहसालार शुभेंदु अधिकारी (Suvendu Adhikari) से मामूली अंतर से मात खाकर ममता बनर्जी की 'बंगाल की शेरनी' वाली प्रतिष्ठा को बड़ा धक्का लगा था. वैसे, उन्होंने शुभेंदु अधिकारी की इस जीत को माननीय न्यायालय में चुनौती दी है, जिसका फैसला आने में कुछ साल लग ही जाएंगे. लेकिन, बंगाल जीतने में नाकामयाब रही भाजपा ने शुभेंदु अधिकारी के सहारे इतना तो दिखा ही दिया कि ममता बनर्जी को हराना बड़ी बात नहीं है.
भले ही ममता बनर्जी ने पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव (Bhabanipur by-election) में पिछले नतीजों से ज्यादा सीटों पर कब्जा किया हो. लेकिन, भाजपा (BJP) ने खुद को मुख्य विपक्षी दल के तौर पर स्थापित कर ये संदेश दे दिया है कि आगे की लड़ाई कांग्रेस, वामदलों के साथ बहुकोणीय न होकर केवल तृणमूल कांग्रेस (TMC) और बीजेपी के बीच ही होगी. ये बात पहले से ही तय है कि ममता बनर्जी को पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री पद पर काबिज रहने के लिए भवानीपुर विधानसभा सीट से उपचुनाव हर हाल में जीतना होगा. ऐसा न हो पाने की स्थिति में उन्हें कुर्सी खाली करनी पड़ेगी. और, भाजपा की पूरी कोशिश कर रही है कि प्रियंका टिबरेवाल (Priyanka Tibrewal) के दम पर ममता बनर्जी को असहज किया जा सके. और, ऐसा लगता है कि भवानीपुर को लेकर ममता बनर्जी का 'डर' सामने आने लगा है.
ममता बनर्जी बंगाल से दूर नहीं होना चाहतीं और पीएम बनने के सपने भी देख रही हैं.
'जबान और मन' के बीच नहीं बैठ रहा तालमेल
बीते दिनों तृणमूल कांग्रेस ने अपने बंगाली मुखपत्र में कांग्रेस सांसद राहुल गांधी को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सामने विफल बताते हुए ममता बनर्जी को ही अंतिम विकल्प बताया था. इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि ममता बनर्जी बंगाल विधानसभा चुनाव के बाद से ही विपक्ष का चेहरा बनने की कोशिशों में लगी हैं. तृणमूल कांग्रेस सुप्रीमो खुद को मजबूत करने के लिए नार्थ ईस्ट के राज्यों में अपने पैर फैलाने की कोशिश कर रही हैं. दरअसल, ममता बनर्जी मिशन 2024 के तहत पीएम नरेंद्र मोदी के सामने साझा विपक्ष का नेतृत्व करने की दिशा में कदम बढ़ा रही हैं. लेकिन, जितनी तेजी से वह दिल्ली के लिए दौड़ में शामिल हो रही हैं, उतनी ही तेजी से कहीं न कहीं पश्चिम बंगाल भी उनसे छूट रहा है. ममता बनर्जी का भवानीपुर विधानसभा सीट पर हो रहे उपचुनाव में पूरी ताकत झोंकना लाजिमी है. लेकिन, असल समस्या पैदा कर रहे हैं चुनाव प्रचार के दौरान दिए गए ममता बनर्जी के बयान.
भवानीपुर उपचुनाव के लिए कांग्रेस की ओर से ममता बनर्जी के खिलाफ कोई उम्मीदवार नहीं उतारा गया है. लेकिन, चुनाव प्रचार के दौरान ममता बनर्जी केवल भाजपा पर ही नहीं कांग्रेस पर भी हमलावर नजर आ रही हैं. उन्होंने कांग्रेस से अलग होने की कहानी बताते हुए दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की 'सब मिले हुए हैं' वाली थ्योरी को अपना लिया. ममता बनर्जी ने कहा कि कांग्रेस की सीपीएम से मिलीभगत है और ये भाजपा से भी मिली हुई है. एक राष्ट्रीय दल जो लंबे समय से भाजपा का विरोध कर रहा है, उसका भाजपा से संबंध बताना साफतौर पर इशारा है कि भवानीपुर विधानसभा उपचुनाव को लेकर ममता बनर्जी सहज नही हैं.
दरअसल, भवानीपुर विधानसभा सीट पर पिछले चुनावों के आंकड़े भी तृणमूल कांग्रेस की मुखिया को परेशान करने के लिए पर्याप्त हैं. भाजपा विधायक शुभेंदु अधिकारी की नंदीग्राम से चुनाव लड़ने की चुनौती से इतर भवानीपुर विधानसभा सीट छोड़ने की एक वजह ये भी रही थी. इस बार विधानसभा चुनाव जीतने वाले तृणमूल कांग्रेस विधायक ने भाजपा को करीब 22 हजार वोटों से हराया था. 2011 में इस सीट पर ममता बनर्जी ने 54 हजार से ज्यादा वोटों से जीत हासिल की थी. लेकिन, 2016 में जीत का ये अंतर 25 हजार पर आ गया था. चुनाव दर चुनाव जीत का अंतर लगातार कम हो रहा है, जिसे नकारा नहीं जा सकता है. यही वजह है कि ममता बनर्जी मतदाताओं से अपील करती दिख रही हैं कि उन्हें एक लाख से ज्यादा वोटों से जिताइए.
आसान शब्दों में कहें, तो ममता बनर्जी एक साथ दो नावों पर सफर कर रही हैं. तृणमूल कांग्रेस की मुखिया चाहती हैं कि मिशन 2024 से पहले तक वह बंगाल सीएम बनी रहें. और, अगर 2024 में साझा विपक्ष की कमान हाथ में नहीं आती है या फिर पीएम पद के लिए उनके नाम पर पार्टियां एकमत नहीं होती हैं, तो कम से कम उनके पास मुख्यमंत्री के तौर पर ताकत रहेगी ही. कांग्रेस ममता बनर्जी को किसी भी हाल में नेतृत्व की कमान संभालने नहीं देगी, तो उनका पीएम पद का सपना अभी से ही अधूरा रहने वाला माना जा सकता है. इससे इतर पश्चिम बंगाल में भाजपा भवानीपुर चुनाव को लेकर कोई कोताही नहीं बरत रही है. बात बहुत सीधी और स्पष्ट है कि अगर ममता बनर्जी को अपनी जीत पर भरोसा है, तो वो एक-एक वोट को कीमती बताने में क्यों जुटी हैं?
भवानीपुर में गैर-बंगाली मतादाता 60 फीसदी से ज्यादा हैं.
भवानीपुर का गुणा-गणित और 'बाहरी' ममता
भवानीपुर एक मिश्रित आबादी वाली विधानसभा है, जिसे पश्चिम बंगाल का मिनी इंडिया भी कहा जाता है. यहां गैर-बंगाली लोगों की आबादी 60 फीसदी से ज्यादा है. वहीं, 20 फीसदी से ज्यादा आबादी मुस्लिम मतदाताओं की है. बाकी बचे मतदाता बंगाली भाषी हैं. भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा ने बंगाल चुनाव के बाद कहा था कि मुस्लिम वोटों के एकतरफा होने से भाजपा को हार का सामना करना पड़ा. तो, इस आधार पर ये बात कही जा सकती है कि ममता बनर्जी का करीब 20 फीसदी मुस्लिम वोट पहले से ही पक्का है. लेकिन, सारी जद्दोजहद 80 फीसदी वोटों के लिए है.
भाजपा भवानीपुर उपचुनाव के मुकाबले को कड़ी टक्कर के तौर पर पेश करने में पीछे नहीं है. दरअसल, भाजपा प्रत्याशी प्रियंका टिबरेवाल ने ममता बनर्जी के खिलाफ वही दांव चला है, जो पूरे पश्चिम बंगाल चुनाव में वह भगवा दल का विरोध करने में अपनाती रही हैं. प्रियंका टिबरेवाल ने आक्रामकता के साथ ममता बनर्जी पर 'बाहरी' होने के आरोपों से चुनाव प्रचार की शुरुआत की थी और संभावना है कि इस आरोप के साथ ही प्रचार का अंत भी होगा. गैर-बंगाली भाषी मतदाताओं को ममता बनर्जी पहले ही बंगाली अस्मिता और बंगाली संस्कृति के नाम पर खफा कर चुकी हैं. कोई गुजराती बंगाल नहीं चलाएगा की वजह से गुजराती मतदाताओं का मन बदलना कोई बड़ी बात नहीं है. बांग्ला भाषा पर जोर देने वाली ममता बनर्जी भवानीपुर चुनाव में जय दुर्गा से लेकर सत श्री अकाल तक कहकर इस सीट की मिश्रित आबादी से खुद को जोड़ने की कोशिश कर रही हैं.
खैर, चुनाव प्रचार के आखिरी दिन ममता बनर्जी के खिलाफ भाजपा के 80 नेता अलग-अलग जगहों पर मोर्चा खोल रहे हैं. वहीं, ममता बनर्जी दो या तीन कार्यक्रमों तक ही सीमित हैं. भवानीपुर की मिश्रित आबादी की वजह से मुकाबला टक्कर का होने की उम्मीद बन पड़ी है और चुनाव में हार का डर ममता बनर्जी के भाषणों में महसूस किया जा सकता है.
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