New

होम -> सियासत

 |  6-मिनट में पढ़ें  |  
Updated: 06 सितम्बर, 2017 10:34 PM
आईचौक
आईचौक
  @iChowk
  • Total Shares

योगी आदित्यनाथ और उनके साथियों के विधान परिषद के लिए नामांकन दाखिल कर दिया. योगी सहित पांचों उम्मीदवारों के लिए ये चुनाव जीतना रस्म अदायगी से ज्यादा कुछ नहीं है. असल बात तो ये है कि ये पांचों सीटें खाली की या करायी ही इसलिए गयीं कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और उनके चार मंत्री कुर्सी पर बने रह सकें.

बात इससे आगे की कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण है. पांचों में से दो नेता अभी लोक सभा सदस्य हैं और उन्हें अब इस्तीफा देना ही होगा. पहले तो राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति चुनाव के चलते इन्होंने इस्तीफा नहीं दिया था. अब अगर न देते तो इन्हें मुख्यमंत्री, दो उपमुख्यमंत्री और दो मंत्रियों को पद छोड़ने पड़ते. बीजेपी ने यूपी में नया अध्यक्ष नियुक्त किया है - महेंद्र नाथ पांडेय. महेंद्र नाथ पांडेय चंदौली से सांसद हैं और हाल तक मोदी सरकार में मंत्री रहे. नये नवेले अध्यक्ष के सामने सबसे बड़ी चुनौती योगी का गोरखपुर किला और फूलपुर सीट बीजेपी के लिए कायम रखना है.

गोरखपुर

हिंदू महासभा की ओर से 1989 में गोरखपुर से महंत अवैद्यनाथ लोक सभा के लिए चुने गये. महंत अवैद्यनाथ मौजूदा मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के गुरु थे. बाद में हुए दो चुनाव जीतने के बाद महंत अवैद्यनाथ से गोरखपुर की सीट योगी आदित्यनाथ के हवाले कर दी. योगी आदित्यनाथ पहली बार 1998 में लोक सभा सदस्य बने और तभी ये सीट उनके पास है.

यूपी का मुख्यमंत्री बन जाने के बाद योगी विधान परिषद का चुनाव लड़ रहे हैं - और यही वजह है कि उन्हें ये अपनी सीट छोड़नी पड़ेगी. गोरखपुर में अब तक योगी का एकछत्र राज रहा है - इसकी बड़ी वजह उनका मंदिर का महंत होना और हिंदू युवा वाहिनी जैसे संगठन में उनके समर्थकों का समूह भी है.

yogi adityanath, mahendra pandeyयोगी के लिए हर जीत जरूरी है...

योगी के इस सीट को अब तक बरकरार रखने के पीछे सबसे बड़ी वजह उनकी मौजूदगी रही, लेकिन तब क्या होगा जब कोई और मैदान में उतरेगा? गोरखपुर में ब्राह्मण नेताओं का अरसे से वर्चस्व रहा है, लेकिन योगी के ताकतवर होने के बाद ये समीकरण बदल गया. बीजेपी के लिए ये बड़ा सिरदर्द साबित हो रहा था. बीजेपी हर सूरत में ठाकुरों के साथ साथ ब्राह्मणों का वोट भी अपने समर्थन में बनाये रखना चाहती थी.

बीजेपी नेता शिवकुमार शुक्ल का कद ऊंचा उठने के पीछे सबसे बड़ा कारण भी यही है. पिछली बार जब राज्य सभा चुनाव हुए तो योगी की नाराजगी को दरकिनार करते हुए बीजेपी आलाकमान ने शिवप्रताप शुक्ल को संसद पहुंचाया - और अब उन्हें मंत्री बनाकर इलाके के लोगों को मैसेज देने की कोशिश की गयी है.

अब तक के ट्रैक रिकॉर्ड को देखें तो गोरपुर सीट पर उपचुनाव की स्थिति में बीजेपी अध्यक्ष महेंद्र नाथ पांडेय को फिक्र करने की जरूरत नहीं थी, लेकिन गोरखपुर अस्पताल में बच्चों की मौत के बाद स्थिति बदली हुई होगी. गोरखपुर के बीआरडी अस्पताल में 60 से ज्यादा बच्चों की मौत पर योगी और उनके साथियों ने जो रवैया अपनाया वो उनके अब तक सारे किये कराये पर पानी फेरने के लिए काफी रहा. ये योगी आदित्यनाथ ही हैं जिन्होंने गोरखपुर और आस पास के इलाकों में जापानी एनसेफेलाइटिस के प्रकोप का मामला दिल्ली तक पहुंचाया. स्थानीय स्तर परु इस बीमारी को लेकर हुई कोशिशों में भी बतौर सांसद योगी खासे सक्रिय रहे.

बच्चों की मौत के मामले में कई तरह की रिपोर्ट आईं, लेकिन सभी में अलग अलग तथ्य पाये गये. खुद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और उनके साथी मंत्री दावा करते रहे कि बच्चों की मौत ऑक्सीजन की कमी से नहीं हुई, लेकिन ऑक्सीजन सप्लाई करने वाली कंपनी के खिलाफ जांच पड़ताल और छापेमारी और ही कहानी कहने लगी. जब योगी सरकार के मंत्री सिद्धार्थनाथ सिंह ने बच्चों की मौत को लेकर अगस्त थ्योरी दी तो सोशल मीडिया पर लोगों ने खूब रिएक्ट किया - और लोगों का लहजा काफी सख्त रहा.

योगी और उनकी टीम ने उस वक्त तो लोगों को समझा लिया, लेकिन लोगों ने भी समझ लिया या नहीं ये तो उपचुनाव के नतीजों से ही साफ हो पाएगा.

फूलपुर

जब मायावती ने राज्य सभा से इस्तीफा दिया तो चर्चा छिड़ी कि वो फूलपुर से विपक्ष की संयुक्त उम्मीदवार हो सकती हैं. उसके बाद समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव ने भी जोर शोर से कहा कि अगर मायावती मैदान में उतरती हैं तो वो पूरी तरह सपोर्ट करेंगे. तब बताया गया था कि लालू प्रसाद की पटना रैली में अखिलेश और मायावती रैली में मंच शेयर करेंगे - और बाद में यूपी में भी दोनों गठबंधन का हिस्सा होंगे. रैली की तारीख आते आते विपक्ष बिखरता गया और पटना रैली में अखिलेश तो पहुंचे लेकिन मायावती नदारद रहीं.

बीच में ऐसी भी चर्चा रही कि बीजेपी किसी भी हालत में फूलपुर सीट पर रिस्क नहीं लेगी और यूपी के उप मुख्यमंत्री केशव मौर्या को केंद्र में मंत्री बनाया जा सकता है. अब तो मंत्रिमंडल फेरबदल और मौर्या के विधान परिषद के लिए नामांकन दाखिल करने के बाद ये दोनों ही संभावनाएं खत्म हो चुकी हैं.

बीजेपी में तो अब फूलपुर का टिकट पाने वालों की गतिविधियां बढ़ ही गयी हैं - एक नयी चर्चा भी शुरू हो गयी है. इलाहाबाद में मीडिया और स्थानीय बीजेपी नेताओं के बीच चर्चा है कि बीजेपी फूलपुर के लिए किसी बाहरी को भी मौका दे सकती है. बस शर्त ये है कि हर पैमाने पर उसकी जीत की गारंटी मिलती हो.

yogi adityanath, aparna yadavवो शिष्टाचार भेट कहां तक जाएगी...

चर्चा में जो नाम सबसे ऊपर है वो है - अपर्णा यादव. ये कोई और अपर्णा यादव नहीं बल्कि मुलायम सिंह यादव की बहू और अखिलेश यादव के भाई प्रतीक की पत्नी हैं जो लखनऊ से विधानसभा का चुनाव भी लड़ी थीं. अपर्णा को कांग्रेस छोड़ का बीजेपी में आईं रीता बहुगुणा जोशी ने हराया था. वैसे अपर्णा का नाम उछलने और उस पर विश्वास करने की वजह भी है. अपर्णा शुरू से ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की प्रशंसक रही हैं. प्रधानमंत्री मोदी के साथ एक निजी समारोह में उनकी सेल्फी की खूब चर्चा हुई थी. जब उनसे सवाल पूछ गये तो उन्हें अपनी दलीलें भी दी.

योगी के मुख्यमंत्री बनने के बाद अपर्णा अपने पति प्रतीक यादव के साथ मिलने भी गयी थीं. तब तो अपर्णा ने इसे शिष्टाचार भेंट बताया था, लेकिन कुछ ही दिन बाद जब योगी उनके गौशाला पहुंचे तो उसके अलग से मतलब निकाले जाने लगे. खैर, अब तो यूपी में जगह जगह गौशालाएं भी खुलने जा रही हैं. हो सकता है अपर्णा की ओर से सरकार को कोई खास सलाह भी मिली हो.

ये तो साफ है कि बीजेपी फूलपुर से किसी ओबीसी उम्मीदवार को भी टिकट देगी - वो उम्मीदवार अपर्णा यादव होंगी या नहीं, इसके लिए तो इंतजार ही करना होगा.

इन्हें भी पढ़ें :

आखिर क्यों है फूलपुर को लेकर अटकलों का बाजार गर्म

क्यों नहीं योगी सरकार गोरखपुर के अस्पताल का नाम 'शिशु श्मशान गृह' रख देती?

एक ओर कुआं है, दूसरी तरफ खाई - मायावती को विपक्षी मदद की कीमत तो चुकानी होगी

लेखक

आईचौक आईचौक @ichowk

इंडिया टुडे ग्रुप का ऑनलाइन ओपिनियन प्लेटफॉर्म.

iChowk का खास कंटेंट पाने के लिए फेसबुक पर लाइक करें.

आपकी राय