पाकिस्तान को रोने दो : पर्रिकर अपनी जगह ठीक हैं...
पाकिस्तान सेना से मिले हथियारों से लैस और प्रशिक्षित आतंकवादियों से मुकाबले में भारत को अपने सैनिकों या नागरिकों के अनमोल जीवन को क्यों गंवाना चाहिए?
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"पाकिस्तान ही क्यों, कोई देश अगर मेरे देश के खिलाफ कुछ साजिश कर रहा है तो मैं आगे रहकर कदम उठाऊंगा. बिल्कुल, वे सार्वजनिक नहीं होंगे. लेकिन मुझे जो करना है, मैं करूंगा. चाहे वह कूटनीतिक हो या फिर दबाव की रणनीति. या वो उसको बोलते हैं न मराठी में कांटे से कांटा निकालते हैं... हिंदी में भी रहेगा... आप आतंकवादी को आतंकवादी के जरिए ही बेअसर कर सकते हैं." - मनोहर पर्रीकर, केंद्रीय रक्षा मंत्री
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एक रक्षा मंत्री का काम देश को बाहरी आक्रमण और बाहरी खतरों से सुरक्षित रखना होता है. मौजूदा संदर्भों में खतरा मिलाजुला है- थोड़ा एक सेना से और थोड़ा उन नॉन-स्टेट एक्टर्स से जो दुश्मन की सेना से ट्रेनिंग, हथियार और पैसा ले रहे हैं.
पाकिस्तान की इस बात से कोई हैरानी नहीं होनी चाहिए कि वहां अलगाववादी और उनसे समान विचारधारा रखने वाले एकजुट हो रहे हैं. पाकिस्तान सेना से मिले हथियारों से लैस और प्रशिक्षित आतंकवादियों से मुकाबले में भारत को अपने सैनिकों या नागरिकों के अनमोल जीवन को क्यों गंवाना चाहिए? दशकों से हमारे दरवाजे पर या हमारे देश के अंदर आतंकियों को जवाब देने की भारत की प्रतिक्रियाशील नीति पर सामरिक समुदाय रोना-धोना शुरू कर देता है. आक्रामक रक्षा के हिस्से के रूप में- खतरे की जड़ को ही क्यों नहीं खत्म कर दिया जाता? पर्रीकर ने बुद्धिमानी दिखाई और बात को ज्यादा विस्तार नहीं दिया. लेकिन यह राष्ट्र हित में है, कि हम खतरे को अपनी सीमा से ज्यादा से ज्यादा दूरी पर खत्म कर दें. अपने लोगों और साजोसामान का इस्तेमाल किए बिना.
भारत के पास संसाधन हैं और पाकिस्तान में सही वातावरण है. अगर पाकिस्तान भारत केंद्रित आतंकवाद को यह बहाना बनाकर बंद नहीं करता कि वह खैबर-पख्तूनख्वा इलाके में करो या मरो की लड़ाई लड़ रहा है तो यह भारत की जिम्मेदारी है कि वह खतरे को बेहतर से बेहतर ढंग से खत्म करे. ओसामा बिन लादेन को मारने के लिए अमेरिकी कार्रवाई या मशहूर इंटेबी बंधक बचाव अभियान में इजरायल की भूमिका के विपरीत भारत को इस काम के लिए अपने विशेष बलों का इस्तेमाल करने की जरूरत नहीं है.
ये वो हालात हैं जिन्हें विशेषज्ञ सबसे अच्छे तरीके से काबू कर रहे हैं. आतंकवादी समूहों के भीतर असंतुष्ट तत्व काम करते हैं या विरोधी देश के सुरक्षा तंत्र में सही मानसिकता के लोग काम करते हैं- राजनीतिक या संसदीय सोच को अंतिम परिणाम से निपटने के लिए छोड़ देना चाहिए. आतंकवाद को अपने सैनिकों के अनमोल जीवन और परिसंपत्तियों को खोए बिना उसी के स्रोत से बेअसर किया जाना चाहिए. पर्रीकर अपनी जगह बिल्कुल सही हैं, जब वे कहते हैं कि आतंकवादियों से लड़ाई के दौरान शहीद हुए कर्नल एमएन राय और उन जैसे दूसरे अधिकारियों को खो देना बड़ा नुकसान होता है. उन्होंने सेना को आदेश दिए हैं कि बिना अपनों की जान गंवाए आतंक के सौदागरों को ज्यादा से ज्यादा नुकसान पहुंचाना सुनिश्चित किया जाए. और उस दौरान संपत्ति के नुकसान से भी बचा जाए. पर्रिकर ठीक बात करते हैं कि भारत ने शांति प्रचार करने के लिए 1.3 मिलियन वाली मजबूत सेना नहीं रखी है. यह भारत को नुकसान पहुंचाने वाले लोगों को मारने के लिए एक प्रशिक्षित पेशेवर सेना है.
भारत ने 1947 के बाद से पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद और सैन्य आक्रमण का अंत किया है. विभाजन के एक माह बाद ही मोहम्मद अली जिन्ना ने 1947 में जम्मू-कश्मीर में जबरन कब्जा करने के लिए कबाइलियों को मैदान में उतारा था. जल्द ही उन्हें पाकिस्तानी सेना का समर्थन भी मिलने लगा. पाकिस्तान भारत के खिलाफ सभी युद्ध हार गया वो चाहे 1947 हो या 1965. 1971 में पाकिस्तान का विभाजन हुआ और बांग्लादेश का जन्म. पाकिस्तानी सेना ने ढाका में आत्मसमर्पण कर दिया. पाकिस्तान ने एक बार फिर सियाचिन (ऑपरेशन मेघदूत) और 1999 में कारगिल (ऑपरेशन विजय) में मुंह की खाई.
1980 के दशक के बाद से ही पंजाब और जम्मू-कश्मीर में सुरक्षा बलों से लड़ने के लिए पाकिस्तान आतंकवादियों को ट्रेनिंग और हथियार देता रहा है. पाकिस्तान की शैतानी नीयत से भारत अच्छी तरह वाकिफ रहा है- जम्मू-कश्मीर में लोन वुल्फ हमलों से लेकर मुंबई में बड़े पैमाने पर दोहराए गए आतंकी हमलों तक चाहे वो 1993 हो 2006 या फिर 26/11 का हमला, सबके पीछे पाक की नापाक नीयत थी. इंडियन मुजाहिदीन के माध्यम से झवेरी बाज़ार, अहमदाबाद, सूरत, दिल्ली, जयपुर, बंगलौर और अन्य जगहों पर आतंकी हमले करने का काम भी इन्होंने अंजाम दिया. पाकिस्तानी सेना और आईएसआई को ही काबुल और हेरात में भारतीय दूतावास और मिशन पर आतंकी हमलों के लिए दोषी पाया गया. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ऐतिहासिक शपथ ग्रहण के दिन अफगानिस्तान के राष्ट्रपति हामिद करजई ने मुझे बताया था कि हेरात में भारतीय दूतावास पर हुए हमले के लिए लश्कर-ए-तैयबा जिम्मेदार था.
पाकिस्तान रोएगा और फिर पाकिस्तान का समर्थन करने वालों की आवाज़ें उठेंगी, लेकिन मेरी राय में उनके साथ ऐसा ही व्यवहार किया जाना चाहिए जिसके वे हकदार हैं. आखिरकार पर्रीकर के हाथ में बड़ा काम है- भारत को सुरक्षित बनाए रखने का, किसी के भी खिलाफ और किसी भी कीमत पर.


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