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Updated: 30 जून, 2015 03:04 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
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बिहार विधान सभा चुनाव में अभी थोड़ा वक्त है. उससे पहले विधान परिषद की 24 सीटों के लिए चुनाव होने वाले हैं. इस चुनाव में भी मुकाबला दो गठबंधनों के बीच ही होगा.

किसके पास कितनी सीट

विधान परिषद के स्थानीय निकाय कोटे की जिन 24 सीटों के लिए चुनाव होने जा रहे हैं उनमें बीजेपी के पास इस वक्त छह सीटें हैं जबकि लालू-नीतीश-कांग्रेस गठबंधन के पास 18 सीटें हैं.

जेडीयू (15) : औरंगाबाद, आरा (भोजपुर-बक्सर), गोपालगंज, सासाराम (रोहतास- कैमूर), मुजफ्फरपुर, वैशाली, सारण, गया, नवादा, पटना, नालंदा, सहरसा (मधेपुरा-सुपौल), भागलपुर और बांका, मधुबनी, बगहा (प. चम्पारण)

आरजेडी (3) : दरभंगा, समस्तीपुर, मुंगेर (जमुई-लखीसराय-शेखपुरा)

बीजेपी (6) : कटिहार, पूर्णिया, सीतामढ़ी एवं शिवहर, बेगूसराय एवं खगडिया, सीवान, मोतिहारी (पूर्वी चम्पारण)

सीटों का बंटवारा

बिहार विधान परिषद के स्थानीय निकाय कोटे की जून में खाली हो रही 24 सीटों पर होने वाले चुनाव की. यह चुनाव जून में ही होना है. एक बार फिर जदयू और राजद इस चुनाव को मिलकर लड़ने की तैयारी में हैं.

कहने को तो सीटों का बंटवारा हो गया है, लेकिन मनपसंद सीटें न मिलने से कांग्रेस खफा है और उसे मनाने की कोशिशें जारी हैं. फिलहाल आरजेडी और जेडीयू के बीच 10-10 सीटों पर समझौता हुआ है और गठबंधन के तहत कांग्रेस के लिए चार सीटें छोड़ी गई हैं. कौन किस सीट पर लड़ेगा ये बात अभी सामने नहीं आई है. कुछ सीटों को लेकर दोनों पक्ष अपनी अपनी दावेदारी जता रहे हैं लेकिन वरिष्ठ नेताओं को उम्मीद है कि इसे सुलझा लिया जाएगा.

कार्यकर्ताओं की चुनौतियां

पहले नीतीश और लालू ने हाथ मिलाया. फिर लालू ने जहर भी पी लिया. अब दिलों की दूरियां मिटीं या नहीं ये न तो मालूम है और न सियासत में मायने रखती है.

क्या स्थानीय नेताओं और कार्यकर्ताओं के साथ भी ऐसा ही है? शायद नहीं. कार्यकर्ताओं के लिए 20 साल मोर्च पर एक दूसरे के खिलाफ डटे रहना और अब सारी बातें भूल कर साथ देना बहुत मुश्किल होगा. यही गठबंधन की सबसे बड़ी चुनौती है. ऐसी चुनौतियों से कांग्रेस के मुकाबले आरजेडी और जेडीयू को कहीं अधिक जूझना है. बूथ स्तर तक कार्यकर्ताओं को एक करना, दुश्मनी की जगह दोस्ती का अहसास कराना और पूरे मन से काम करने के लिए मोटिवेट करना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन सा होगा.

साल 2014 के लोक सभा चुनावों के तीन महीने बाद ही बिहार में विधान सभा की 10 सीटों के लिए उपचुनाव हुए थे. इसमें पहली बार लालू-नीतीश और कांग्रेस का महागठबंधन मैदान में साथ उतरा था. तब इस गठबंधन ने 10 में छह सीटें अपनी झोली में डाल ली. खास बात ये थी कि इनमें से दो सीटें गठबंधन ने मोदी लहर के बावजूद बीजेपी के कब्जे से छीन ली थी.

लालू प्रसाद और नीतीश कुमार के लिए विधान परिषद के चुनाव आगे की रणनीति तय करने के लिए एक बेहतरीन मौका साबित हो सकता है. सीट बंटवारे से लेकर कार्यकर्ताओं की सक्रियता और नतीजे सभी बिहार के असली समर के लिए एग्जिट पोल से ज्यादा विश्वसनीय रास्ता दिखाएंगे.

लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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