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Updated: 08 अप्रिल, 2015 02:17 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
  @msTalkiesHindi
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लोक सभा चुनाव में शिकस्त के बाद कांग्रेस को दो चीजों की तत्काल जरूरत थी. पहला, केंद्र सरकार को कठघरे में खड़ा करने का कारगर हथियार - और, दूसरा,  राहुल गांधी के लिए एक मजबूत लांचिंग पैड. लैंड बिल का मसला इन दोनों मामलों में पूरी तरह फिट बैठ गया. दूसरी तरफ, इसी लैंड बिल ने केंद्र में सत्तारुढ़ बीजेपी के लिए सांप-छछूंदर का हाल कर दिया है. अब न तो उसे निगलते बन रहा है, न उगलते.

सोनिया का मिशन डबल बेनिफिटजैसे ही लैंड बिल का मामला सामने आया कांग्रेस ने उसे ठीक से जांचा परखा. छोटे-मोटे टेस्ट में जब ये हथियार पास हो गया तो कांग्रेस ने इसके बूते बड़े ऑपरेशन की तैयारी शुरू कर दी. सोनिया के सलाहकारों ने समझाया कि किसानों और गांव के गरीबों से सीधे जुड़ने के लिए लैंड बिल असरदार साबित हो सकता है. सोनिया ने 2009 के लोक सभा चुनाव में मनरेगा का चमत्कार देखा ही था. बस फिर क्या था, सोनिया और उनकी टीम ऑपरेशन डबल मिशन की तैयारी में जुट गई.  सोनिया गांधी इन दिनों देश के विभिन्न हिस्सों का दौरा कर रही है. हर जगह वो किसानों और गांव के लोगों से मिलकर लैंड बिल के खतरे समझाती हैं. सोनिया बताती हैं कि किस तरह सरकार बड़े कारोबारी घरानों को फायदा पहुंचाने के लिए ये बिल ला रही है. इसके साथ ही 19 अप्रैल को दिल्ली में कांग्रेस की रैली की तैयारी भी जोर शोर से चल रही है. इसी रैली में राहुल गांधी के छुट्टी से लौट कर हिस्सा लेने की बात है. लंबे चिंतन और मनन के बाद राहुल गांधी पूरे जोश से जुट जाएंगे, ऐसी कार्यकर्ताओं को उम्मीद है.

बीजेपी करे तो क्या करे?लैंड बिल पर विपक्ष के हमलावर तेवर के बाद बीजेपी रक्षात्मक नजर आ रही है. खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, जब भी मौका मिल रहा है, लैंड बिल के फायदे और विपक्ष के गुमराह करने की साजिश के बारे में लोगों को समझाने की पूरी कोशिश कर रहे हैं. बिल को पास कराने के लिए सरकार के पास एक ही उपाय है - संसद का संयुक्त अधिवेशन. क्योंकि अल्पमत में होने की वजह से एनडीए इसे चाह कर भी राज्य सभा में पास नहीं करा सकता. अब अगर ऐसा किया गया तो गलत मैसेज जाएगा कि सरकार का मकसद सिर्फ बिल को पास कराना था, चाहे इसके लिए जो हथकंडे अपनाने पड़े. वो भी उस वक्त जब एक के बाद एक तीन राज्यों में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं. इस साल के अंत में बिहार, अगले साल पश्चिम बंगाल और 2017 में उत्तर प्रदेश में चुनाव होने हैं. बिहार में सारे दल मिल कर लोगों को समझाएंगे कि किस तरह बीजेपी किसानों के हितों को नजरअंदाज कर औद्योगिक घरानों को फायदा पहुंचाना चाहती है. यही हाल पश्चिम बंगाल और उत्तर प्रदेश में भी होना तय है.  

बेमौसम की बरसात ने पहले से ही किसानों की कमर तोड़ दी है. ऐसे में लैंड बिल पर कोई भी चूक बीजेपी के लिए घातक साबित हो सकती है. लैंड बिल के रूप में एक मजबूत मुद्दा हाथ लगने का अहसास तो कांग्रेस को उसी दिन हो गया जब सोनिया गांधी ने राष्ट्रपति भवन तक मार्च किया. जमीन की सियासत सरकारों के लिए इस कदर भारी पड़ती है कि सियासी जमीन खिसकाने की कूव्वत रखती है. सिंगूर और नंदीग्राम के मामले इस बात के मिसाल हैं, जिन्होंने वाम मोर्चा को पश्चिम बंगाल की सत्ता से बेदखल करने में सबसे बड़ी भूमिका निभाई.

लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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