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Updated: 26 जनवरी, 2021 10:16 PM
देवेश त्रिपाठी
देवेश त्रिपाठी
  @devesh.r.tripathi
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अगले साल 2022 के फरवरी-मार्च में देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव होने हैं. सत्तासीन भाजपा 2022 के आगामी विधानसभा चुनाव में अपनी जीत को लेकर अभी से आश्वस्त नजर आ रही है. योगी सरकार के मंत्रियों और नेताओं के बयानों से ये साफ जाहिर हो रहा है. सूबे के उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य का हालिया बयान इस पर मुहर लगा रहा है. केशव प्रसाद मौर्य ने एक कार्यक्रम के दौरान कहा कि सपा मतलब समाप्त, बसपा मतलब बिल्कुल समाप्त और कांग्रेस अब सिर्फ फोटो की पार्टी रह गई है. भाजपा नेता का ये बयान राजनीतिक गलियारों में चर्चा का विषय बना हुआ है. ऐसे में सवाल उठना लाजिमी है कि क्या सचमुच उत्तर प्रदेश में सपा, बसपा और कांग्रेस जैसे मुख्य विपक्षी दल भाजपा के सामने अब बड़ी चुनौती नही रह गए हैं?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी यूपी के वाराणसी से लगातार दो बार लोकसभा सांसद बने हैं.प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी यूपी के वाराणसी से लगातार दो बार लोकसभा सांसद बने हैं.

सूबे में लगातार बढ़ रहा है भाजपा का वोट शेयर

2017 में हुए उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में भाजपा को 39.7 फीसदी वोटों के साथ 312 सीटें जीती थीं. कांग्रेस 6.2 फीसदी वोट के साथ सिर्फ 7 सीटों पर सिमट गई थी. बहुजन समाज पार्टी (बसपा) को 22.2 फीसदी वोटों के साथ केवल 19 सीटों से संतोष करना पड़ा था. समाजवादी पार्टी (सपा) ने 2012 में 29.1 फीसदी वोटों के साथ सत्ता में आई थी. लेकिन, 2017 में सपा को 21.8 फीसदी वोट मिले थे और 47 सीटें ही जीत सकी थी. विधानसभा चुनाव के लिए सपा ने कांग्रेस के साथ गठबंधन किया था. वहीं, लोकसभा चुनाव 2019 में भाजपा को उत्तर प्रदेश में 2014 की तुलना में 9 सीटों का नुकसान हुआ था. लेकिन, पार्टी का वोट शेयर 49.6 फीसदी हो गया था. भाजपा का ये बढ़ा हुआ वोट प्रतिशत मतदाताओं की संख्या का लगभग आधा है. बहुजन समाज पार्टी को 19.3 फीसदी और समाजवादी पार्टी को 18 फीसदी वोट हासिल हुए थे. लोकसभा चुनाव के लिए सपा, बसपा और राष्ट्रीय लोकदल (आरएलडी) में गठबंधन हुआ था. लेकिन, इसका चुनाव में खास असर नहीं दिखा. लोकसभा और विधानसभा चुनाव के आंकड़ों से साफ है कि भाजपा ने सपा, बसपा और कांग्रेस के वोटबैंक में सीधे तर पर सेंध लगाई है. उत्तर प्रदेश में भाजपा का वोट शेयर 2017 विधानसभा चुनाव के बाद 2019 लोकसभा चुनाव में भी बढ़ा था.

लोकसभा और विधानसभा चुनाव में किसी भी गठबंधन का जादू चल नहीं सका.लोकसभा और विधानसभा चुनाव में किसी भी गठबंधन का जादू चल नहीं सका.

सूबे में फेल हो चुकी है गठबंधन की 'गणित'

समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने 2017 विधानसभा चुनाव में भाजपा को रोकने के लिए कांग्रेस से गठबंधन किया था. हालांकि, उनका ये दांव कामयाब नहीं हुआ था. वहीं, 2019 के लोकसभा चुनाव में सपा ने बसपा और आरएलडी के साथ गठबंधन किया था. ये गठबंधन भी भाजपा को कोई खास नुकसान नहीं पहुंचा पाया था. कुल मिलाकर अखिलेश यादव ने सत्ता के सारे फॉर्मूले अपना के देख लिए हैं. लेकिन, कोई खास फायदा होता नहीं दिखा. 2017 विधानसभा चुनाव के बाद कांग्रेस से निर्वाचित दो विधायक बागी होकर भाजपा के समर्थन में, तो बसपा के 7 विधायक सपा को समर्थन देते दिखाई पड़ने लगे. उत्तर प्रदेश में प्रचंड बहुमत के साथ जीती भाजपा ने अपना दल (अनुप्रिया पटेल वाला) और सुलेहदेव भारतीय समाज पार्टी (सुभासपा) के साथ गठबंधन किया था. भाजपा ने सुलेहदेव भारतीय समाज पार्टी प्रमुख ओमप्रकाश राजभर को उनके बयानों के चलते मंत्रिमंडल से बाहर का रास्ता दिखा दिया था. इसके बाद से ही सुभासपा और बीजेपी के बीच 36 का आंकड़ा बना हुआ है. हाल ही में बिहार विधानसभा चुनाव में 5 सीटें जीतने वाले AIMIM चीफ और सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने भी सूबे में दस्तक दे दी है. असदुद्दीन ओवैसी को मुस्लिम मतदाताओं का साथ मिल सकता है. यूपी में ओवैसी की नजर सुभासपा जैसे छोटे दलों के साथ गठबंधन करने पर है. हालांकि, अगर यह गठबंधन भी होता है, तो इससे भाजपा को ही फायदा होता दिख रहा है. राज्य में मुस्लिम मतदाता सपा और बसपा के साथ रहा है. ऐसे में इस वोटबैंक में एक और हिस्सेदार आ जाने से सपा-बसपा की मुश्किलें बढ़ जाएंगी.

इस अभियान को भाजपा चुनाव पहले की तैयारी के रूप में एक बड़ी जनसंपर्क मुहिम के तौर पर देख रही है.इस अभियान को भाजपा चुनाव पहले की तैयारी के रूप में एक बड़ी जनसंपर्क मुहिम के तौर पर देख रही है.

राम मंदिर निर्माण भाजपा का 'ब्रह्मास्त्र'

राम मंदिर भाजपा के घोषणापत्र का एक अहम हिस्सा रहा है. रामलला विराजमान के पक्ष में सुप्रीम कोर्ट के फैसले और राम मंदिर निर्माण के लिए ट्रस्ट बनने के बाद अब भाजपा का ये वादा पूरा हो चुका है. वहीं, राम मंदिर निर्माण के लिए निधि समर्पण अभियान के तहत घर-घर जाकर चंदा भी एकत्रित किया जाना है. यह अभियान 27 फरवरी तक चलाया जाएगा. भाजपा, विहिप और आरएसएस के कार्यकर्ता इस दौरान घर-घर जाकर चंदा इकट्ठा करेंगे. इस अभियान को भाजपा चुनाव पहले की तैयारी के रूप में एक बड़ी जनसंपर्क मुहिम के तौर पर देख रही है. सीएम योगी फैजाबाद का नाम बदलकर पहले ही अयोध्या कर चुके हैं. राम मंदिर को मुद्दा बनाने के लिए भाजपा ने अभी से कमर कस ली है. ऐसे में कहा जा सकता है कि विधानसभा चुनाव 2022 में राम मंदिर निर्माण भाजपा के लिए अहम भूमिका निभाएगा.

योगी की वेशभूषा वाले योगी आदित्यनाथ बिना लाग-लपेट के सीधी बात करने वाले नेताओं में जाने जाते हैं.योगी की वेशभूषा वाले योगी आदित्यनाथ बिना लाग-लपेट के सीधी बात करने वाले नेताओं में जाने जाते हैं.

भाजपा का फायर ब्रांड चेहरा योगी आदित्यनाथ

उत्तर प्रदेश की राजनीति में भाजपा के फायर ब्रांड नेता के तौर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का चेहरा काफी लोकप्रिय है. योगी की वेशभूषा वाले योगी आदित्यनाथ बिना लाग-लपेट के सीधी बात करने वाले नेताओं में जाने जाते हैं. सूबे में भाजपा की यूएसपी बन चुके योगी आदित्यनाथ की लोकप्रियता का अंदाजा इंडिया टुडे और कार्वी इनसाइट्स के 'मूड ऑफ द नेशन' सर्वे से लगाया जा सकता है. सर्वे के मुताबिक, नरेंद्र मोदी को 2024 में प्रधानमंत्री के तौर पर पसंद करने वाले 38 फीसदी लोग हैं. वहीं, मोदी के ठीक बाद 10 फीसदी लोग योगी आदित्यनाथ और 8 फीसदी लोग अमित शाह को प्रधानमंत्री बनाने के पक्ष में हैं. सर्वे के मुताबिक, देश का मूड पीएम मोदी के बाद सीधे योगी आदित्यनाथ के लिए है. 

विपक्षी दलों के धुंधले चेहरे

उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के पास मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से टक्कर लेता हुआ कोई चेहरा नही है. कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा प्रदेश में मेहनत तो कर रही हैं. लेकिन, ये मेहनत राज्य में कांग्रेस को फिर से जिंदा करने के लिए की जा रही है. प्रियंका गांधी वाड्रा आंतरिक रूप से राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस का प्रबंधन भी देख रही हैं. ऐसे में उनके यूपी में चुनाव लड़ने की संभावना बहुत ही कम है. सनद रहे कि लोकसभा चुनाव में रायबरेली से जीतकर सोनिया गांधी ही कांग्रेस के लिए इकलौती सीट ला पाई थीं. अमेठी से राहुल गांधी को भाजपा की प्रत्याशी स्मृति ईरानी ने पटखनी दे दी थी. कहना गलत नहीं होगा कि कांग्रेस के पास प्रदेश में मुख्यमंत्री पद का कोई चेहरा नहीं है. वहीं, बहुजन समाज पार्टी के पास भी मायावती के अलावा कोई चेहरा नहीं हैं. मायावती की राजनीतिक प्रासंगिकता अब लगातार घटती जा रही है. बसपा सुप्रीमो मायावती के आगे इस पार्टी के कार्यकर्ताओं को और कोई चेहरा पसंद भी नहीं आता है. उस पर उनका वोटबैंक भी धीरे-धीरे खसकता जा रहा है. हालांकि, काडर वोट की वजह से बसपा के वोट शेयर में इसका अंतर बहुत ज्यादा नहीं दिखता है. रही बात समाजवादी पार्टी की तो, अखिलेश यादव युवाओं के बीच एक चर्चित चेहरा थे. लेकिन, परिवारिक कलह और योगी आदित्यनाथ की फायर ब्रांड नेता की छवि ने उनके चेहरे को मुरझा दिया है. चाचा शिवपाल यादव के अलग पार्टी प्रगतिशील समाजवादी पार्टी बना लेने के बाद संगठन की देख-रेख करने में अखिलेश यादव और कमजोर होते गए. पार्टी में पहले ये काम शिवपाल यादव के पास था.

प्रदेश में विकास की योजनाएं

यह कहना गलत नहीं होगा कि केंद्र में भाजपा की सरकार होने का फायदा उत्तर प्रदेश को मिला है. प्रदेशभर में कई सौ करोड़ की अनेकों योजनाओं के शिलान्यास किए जा चुके हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी यूपी के वाराणसी से ही लगातार दो बार लोकसभा सांसद बने हैं. ऐसे में उत्तर प्रदेश में विकास की रफ्तार अन्य सरकारों की अपेक्षा कुछ ठीक है. केंद्र सरकार की उज्जवला योजना, आयुष्मान भारत योजना, किसान सम्मान निधि, प्रधानमंत्री आवास योजना जैसी योजनाओं ने विकास के नाम पर लोगों को भाजपा की ओर काफी आकर्षित किया है. एक समय में शहरी वोटर्स की पार्टी कही जाने वाली भाजपा को केंद्र और राज्य दोनों की योजनाओं के सहारे ग्रामीण जनता का दिल जीतने में कामयाब रही है.

लेखक

देवेश त्रिपाठी देवेश त्रिपाठी @devesh.r.tripathi

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं. राजनीतिक और समसामयिक मुद्दों पर लिखने का शौक है.

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