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Updated: 02 मई, 2022 09:49 PM
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काशी विश्वनाथ मंदिर और ज्ञानवापी मस्जिद स्थित श्रृंगार गौरी मंदिर मामले में अदालत के सर्वे और वीडियोग्राफी कराने के निर्देश पर कार्रवाई होनी है. बताया जा रहा है कि ईद के बाद 6 और 7 अप्रैल को ज्ञानवापी परिसर का सर्वे और वीडियोग्राफी की जाएगी. लेकिन, अंजुमन ए इंतजामिया मस्जिद कमेटी कोर्ट के इस आदेश से भड़की हुई है. मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, ज्ञानवापी मस्जिद की बैरिकेडिंग के अंदर विग्रहों के सर्वे और वीडियोग्राफी की कार्रवाई का मुस्लिम समुदाय की ओर से विरोध किया जा रहा है. ज्ञानवापी मस्जिद की कमेटी के ज्वाइंट सेक्रेटरी एसएन यासीन का कहना है कि सर्वे और वीडियोग्राफी के लिए किसी भी गैर मुस्लिम को मस्जिद में घुसने नहीं दिया जाएगा. आज तक मुस्लिमों और सुरक्षाकर्मियों के अलावा किसी ने मस्जिद में प्रवेश नहीं किया है. और, आगे भी ऐसा करने की इजाजत किसी को नहीं दी जाएगी. इस स्थिति में सवाल उठना लाजिमी है कि आखिर सर्वे और वीडियोग्राफी का विरोध कमेटी क्यों कर रही है?

Kashi Vishwanath Temple Gyanvapi Masjidकमेटी का कहना है कि यहां की वीडियोग्राफी होगी, तो संभव है कि वीडियो को सोशल मीडिया पर भी शेयर किया जाए.

क्या है काशी विश्वनाथ मंदिर-ज्ञानवापी परिसर सुरक्षा प्लान?

कोर्ट के आदेश पर ज्ञानवापी मस्जिद की देखरेख करने वाली कमेटी के लोगों का कहना है कि यह श्रीकाशी विश्वनाथ मंदिर-ज्ञानवापी परिसर सुरक्षा प्लान का सरासर उल्लंघन है. यही वजह है कि मुस्लिम समुदाय कोर्ट के आदेश के बावजूद किसी भी हाल में कमीशन को सर्वे और वीडियोग्राफी के लिए मस्जिद में घुसने की इजाजत नही देगा. जनसत्ता में छपी एक रिपोर्ट के अनुसार, एसएन यासीन का कहना है कि 1993 में काशी विश्वनाथ मंदिर-ज्ञानवापी परिसर के लिए एक सुरक्षा प्लान बनाया गया था. इस सुरक्षा प्लान में फैसला लिया गया था कि ज्ञानवापी मस्जिद में मुस्लिमों और सुरक्षाकर्मियों के अलावा किसी और को प्रवेश की इजाजत नहीं दी जाएगी.

यासीन का कहना है कि यहां की वीडियोग्राफी होगी, तो संभव है कि वीडियो को सोशल मीडिया पर भी शेयर किया जाए. जिसके बाद ज्ञानवापी मस्जिद की सुरक्षा खतरे में पड़ सकती है. अगर ऐसा होता है, तो सुरक्षा प्लान का मतलब ही क्या रह जाएगा? कोर्ट के आदेश की अवहेलना के सवाल पर यासीन का कहना है कि वे अंजाम भुगतने के लिए तैयार हैं. लेकिन, मस्जिद की बैरिकेडिंग के अंदर किसी को भी घुसने नहीं दिया जाएगा. यासीन की कही पूरी बात को आसान शब्दों में कहा जाए, तो मुस्लिम पक्ष सुरक्षा का हवाला देकर मस्जिद की वीडियोग्राफी और सर्वे से बचना चाह रहा है.

आखिर क्या है मामला?

1991 में वाराणसी की जिला कोर्ट में हिंदू पक्ष ने एक मुकदमा दायर कर दावा किया गया कि मुगल शासक औरंगजेब के आदेश पर ज्ञानवापी मस्जिद को स्वयंभू भगवान विश्वेश्वर का मंदिर तोड़कर बनाया गया था. इसके साथ ही ज्ञानवापी मस्जिद की जगह पर श्रृंगार गौरी की पूजा होती थी. याचिकाकर्ताओं का दावा है कि ज्ञानवापी मस्जिद की दीवारों पर देवी-देवताओं के चित्र भी साफ नजर आते हैं. वहीं, ज्ञानवापी मस्जिद की देखरेख करने वाली कमेटी ने मुकदमे में प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट, 1991 का हवाला देकर स्टे ले लिया था. लेकिन, 2019 में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद काशी विश्वनाथ-ज्ञानवापी मस्जिद मामले की फिर से सुनवाई शुरू कर दी गई थी.

आखिर क्यों हो रहा है सर्वे और वीडियोग्राफी का विरोध?

काशी विश्वनाथ-ज्ञानवापी मस्जिद मामले में कोर्ट के आदेश पर मुस्लिम पक्ष ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका डाली थी. लेकिन, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने निचली अदालत के फैसले को बरकरार रखते हुए मुस्लिम पक्ष की याचिका को खारिज कर दिया है. इससे पहले भी निचली अदालत ने ज्ञानवापी मस्जिद परिसर के पुरातात्विक सर्वेक्षण का आदेश दिया था. जिस पर इलाहाबाद हाईकोर्ट की ओर से स्टे दे दिया गया था. आसान शब्दों में कहा जाए, तो निचली अदालत के हर निर्देश पर ज्ञानवापी मस्जिद के पक्षकार हाईकोर्ट से स्टे ले आते थे. लेकिन, इस बार उन्हें झटका लगा है.

दरअसल, ऐसे मामलों में इस तरह के साक्ष्य कोर्ट के फैसले में अहम भूमिका निभाते हैं. राम जन्मभूमि मामले में भी ऐसे ही साक्ष्यों को काफी तरजीह दी गई थी. कानून के जानकारों के अनुसार, इस तरह की रिपोर्ट को खारिज करना कोर्ट के लिए भी आसान नहीं होता है. आसान शब्दों में कहा जाए, तो मुस्लिम पक्ष को इस बात का डर सता रहा है कि अगर ज्ञानवापी मस्जिद के अंदर की वीडियोग्राफी और सर्वे किया जाता है. तो, हिंदू पक्ष के उन तमाम दावों को बल मिल जाएगा कि ज्ञानवापी मस्जिद को काशी विश्वनाथ मंदिर के अवशेषों से बनाया गया है.

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