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Updated: 04 मार्च, 2016 07:50 PM
सुनीता मिश्रा
सुनीता मिश्रा
  @sunita.mishra.9480
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आखिरकार कन्हैया कुमार की जेएनयू में वापसी हो गई. उसकी इस रिहाई से कहीं खुशी की लहर है, तो कहीं दुख के बादल. जमानत और फिर जेएनयू पहुंचने के बाद कन्हैया ने लाल सलाम के नारे लगाए. उसने कहा हम भारत से आजादी नहीं, बल्कि भारत में आजादी चाहते हैं. उसने आरएसएस और प्रधानमंत्री पर भी हमला बोला और कहा कि जेनयू से शुरू हुई लड़ाई को रुकने नहीं देंगे.

कम से कम इन सब गतिविधियों से यह तो जाहिर हो चुका है कि शिक्षा परिसरों में अब पढ़ाई से अधिक महत्व राजनीति को दिया जाने लगा है. फिर चाहे वह हैदराबाद यूनिवर्सिटी हो या जवाहर लाल यूनिवर्सिटी. इनकी आड़ में कई राजनीतिक दल भी अपनी-अपनी रोटियां सेंक रहे हैं. यहां तक कि कई पत्रकार और टीवी चैनलों ने इसके पक्ष और विपक्ष में फैसला सुनाना शुरू कर दिया है. हार्दिक पटेल, उमर खालिद, कन्हैया कुमार जैसे पढ़े-लिखे नौजवानों का इस तरह से राजनीति की ओर अग्रसर होना, कहीं न कहीं यह दर्शाता है कि वह पढ़ाई से अधिक तवज्जो राजनीति को दे रहे हैं.

शोर-शराबा कर अपनी मांगों को राजनीतिक रंग देना, उन्हें मनवाने के लिए आंदोलनकारी रुख इख्तियार करना कहां कि समझदारी है. माना कन्हैया का आरोप सिद्ध नहीं हुआ. तो क्या वह दोबारा इस तरह के कृत्य को अंजाम देने में जुट गया है? वरना, वह देर रात जेनयू परिसर में आकर नारे बुलंद न करता. यदि वह सही हैं, तो देश की आम जनता को अपने आंदोलन का शिकार न बनाए. जो बच्चे पढ़ना चाहते हैं, कम से कम उन्हें पढ़ने दे. इस पूरे प्रकरण को हवा देने में कहीं न कहीं लोकतंत्र का चौथा स्तंभ भी शामिल है, उसे भी अपने दायित्व का निर्वहन करते हुए तटस्थ रहने की आवश्यकता है.

पिछले 20 दिनों में जो भी हुआ है, उसमें जेएनयू छात्रों के साथ-साथ कहीं न कहीं सरकार भी इस मुद्दे से निपटने में उतनी सक्षम नहीं दिखी. वर्ना कोर्ट परिसर में शिक्षकों, छात्रों और पत्रकारों पर एक दिन के भीतर दो बार हमले नहीं होते और पुलिस मूकदर्शक न बनी रहती. क्यों उन हमलावर वकीलों पर अब तक कार्रवाई नहीं की गई? दरअसल यहां सवाल उठता है कि कन्हैया कैसे छात्र संघ के नेता से इतना बड़ा स्टार बन गया? उसे स्टार बनाने वाला कहीं न कहीं चौथा स्तंभ है? इनके लिए जेल जाना कोई बड़ी बात नहीं है, लेकिन कन्हैया तिहाड़ जेल गया, उसे संसद हमले के दोषी अफजल गुरु के बैरक नंबर 3 में रखा गया, उसने क्या खाया, क्या पीया. यह सब बता-बता कर कहीं-कहीं उसके हौंसलों को और बुलंद किया है.

इस आंदोलन में और भी लोग शामिल थे, आखिर उन्हें क्यों नहीं आगे लाया गया? गौरतलब है कि नई दिल्ली के जिला मजिस्टैट संजय कुमार ने कई वीडियो देखे, जेनयू के सिक्योरिटी ऑफिसर्स को गवाह के तौर पर बुलाया. वीडियो और गवा​हों के बयानों के आधार पर आरोपी छात्र की भूमिका के बारे 112 पेज की जांच रिपोर्ट सरकार को सौंपी, जिसमें कहा गया है कि कोई भी गवाह और विडियो ऐसा नहीं है, जो यह साबित करे कि कन्हैया ने देश के खिलाफ नारेबाजी की है. उमर खालिद, जो कार्यक्रम का मुख्य आयोजक था, जिसने आवेदन प्रपत्र को भरा था. अनिर्बान और आशुतोष जिन्होंने खालिद के साथ नारे लगाए थे. इनकी भी इस मामले में अहम भूमिका है. चूंकि इन सबसे पूरा देश प्रभावित हो रहा है, तो इस मसले को अब आगे बढ़ने से रोकना होगा. आरोप—प्रत्यारोप से हटकर इसकी गहराई में जाना होगा, वरना देखते ही देखते हमारे देश की जड़े खोखली हो जाएंगी और हम हाथ पर हाथ धरे बैठे रह जाएंगे.

इसलिए अब इन्हें सुनकर जानना होगा कि यह किस तरह की आजादी चाहते हैं भारत में. कुछ दिनों के भीतर धर्म, जाति और आंतकवाद ने जिस तरह से देश में अपने पैर पसारने शुरू कर दिए हैं, उससे निजात पाने के लिए पुख्ता मार्ग अपनाने की आवश्यकता है, जिससे शिक्षा परिसरों के साथ-साथ सरकार की विश्वसनियता भी बनी रहे.

लेखक

सुनीता मिश्रा सुनीता मिश्रा @sunita.mishra.9480

लेखिका पेशे से पत्रकार हैं

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