मांझी के लिए बिहार में ऑप्शन ही ऑप्शन
मांझी ऐसे नेता हैं जो कांग्रेस, आरजेडी और जेडीयू तीनों ही पार्टियों में रह चुके हैं. इतना ही नहीं वो इन तीनों पार्टियों की सरकारों में मंत्री भी रह चुके हैं.
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बिहार में नतीजे जो भी हों. फिलहाल चुनावी वैतरणी पार करने के लिए हर किसी को एक ही शख्स पतवार नजर आ रहा है, और वो है - जीतन राम मांझी. आखिर ऐसा क्यों है? क्योंकि मांझी के साथ बहुत सारे प्लस प्वाइंट हैं. मांझी ऐसे नेता हैं जो कांग्रेस, आरजेडी और जेडीयू तीनों ही पार्टियों में रह चुके हैं. इतना ही नहीं वो इन तीनों पार्टियों की सरकारों में मंत्री भी रह चुके हैं. उसके बाद मुख्यमंत्री बने.
वैसे मांझी के ताकतवर होने की तात्कालिक वजह उनका दलितों के नेता के रूप में उभरना है. ऐसे में हर पार्टी को लगता है कि जिस किसी को भी मांझी का सपोर्ट मिलेगा वो बीस तो पड़ेगा ही. अब ये मांझी पर ही निर्भर करता है कि वो किसे अपना दामन देते हैं या किसका दामन थामते हैं?
1. चाहें तो लालू के साथ हो लें - आरजेडी अध्यक्ष लालू प्रसाद ने मांझी को ताजा ताजा ऑफर दिया है. लालू का कहना है कि सांप्रदायिक ताकतों को रोकने के लिए सेक्युलर दलों को एकजुट होना चाहिए और इसी वजह से वो मांझी को साथ लेना चाहते हैं. नीतीश को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित करने से इंकार कर देने वाले लालू, संभव है, मांझी के नाम पर राजी भी हो जाएं. हालांकि उन्होंने पत्ते नहीं खोले हैं.
2. चाहें तो नया गठबंधन खड़ा कर लें - आरजेडी से निकाले गए मधेपुरा सांसद राजेश रंजन यानी पप्पू यादव ने बिहार में तीसरे मोर्चे का प्रस्ताव रखा है. पप्पू चाहते हैं कि उनका जनक्रांति अधिकार मोर्चा, मांझी का हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा और कांग्रेस मिलकर तीसरा मोर्चा खड़ा करें और जनता को एक मजबूत विकल्प दें. पप्पू शुरू से ही मांझी के हिमायती रहे हैं. लालू से पहले ये पप्पू यादव ही थे जो मांझी को जनता परिवार में भी शामिल किए जाने की वकालत कर रहे थे.
3. चाहें तो नीतीश से हाथ मिला लें - वैसे ये ऑप्शन पहले दो के उलट है. लेकिन अगर दोनों नेताओं में समझौता हो सके तो ये मुमकिन है. मांझी, हालांकि, कह चुके हैं कि नीतीश कुमार मुख्यमंत्री पद उन्हें लौटा दें तो दोस्ती हो सकती है. खैर, ये तो नहीं संभव है. हां, अगर मांझी डिप्टी सीएम की पोस्ट पर तैयार हों तो शायद बात बन सकती है. वैसे भी नीतीश को मांझी जरूरत तो होगी ही. अगर मांझी की राजनीतिक अहमियत नहीं होती तो वो उन्हें कुर्सी नहीं सौंपते.
4. चाहें तो बीजेपी के साथ गठबंधन कर लें - मांझी के लिए ये शायद सबसे आसान ऑप्शन होगा. जिस तरह उपेंद्र कुशवाहा और राम विलास पासवान बीजेपी के साथ हैं उसी तरह मांझी भी एक पॉलिटिकल एक्सटेंशन हो सकते हैं. बीजेपी को मांझी के साथ का ये शायद बेहतरीन फॉर्म होगा.
5. या फिर, चाहें तो... एकला चलो रे - मांझी को दलितों के नेता के तौर पर पहचान मिली है. मुख्यमंत्री रहते मांझी ने दलितों के हित में कई फैसले लिए थे जिन्हें नीतीश सरकार ने खत्म कर दिए. उनके नाम पर मांझी खुद मैदान में उतर सकते हैं.
साल भर पहले समाज के फर्श पर बैठे मांझी आज राजनीति के अर्श पर पहुंच चुके हैं. कहने का मतलब ये कि जिस मांझी के पास 2014 में लोक सभा चुनाव लड़ते वक्त कदम कदम पर फंड की कमी आड़े आ रही थी - उनकी ओर अब हर तरफ से मदद के हाथ बढ़े चले आ रहे हैं. एक तरफ लालू उन्हें साथ लेने की बात कर रहे हैं तो दूसरी तरफ बीजेपी उन्हें हाथ से जाने नहीं देना चाहती.
चुनावों के दौरान देश में नरेंद्र मोदी या दिल्ली में अरविंद केजरीवाल जैसे भले न हों पर बिहार में एक अतिमहत्वपूर्ण-नेता तो हो ही गए हैं.

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