New

होम -> सियासत

 |  4-मिनट में पढ़ें  |  
Updated: 22 सितम्बर, 2016 03:55 PM
राकेश चंद्र
राकेश चंद्र
  @rakesh.dandriyal.3
  • Total Shares

कोपर्डी रेप कांड और एट्रोसिटी कानून के खिलाफ चुपचाप शुरू हुआ मराठा आंदोलन अब पूरे महाराष्ट्र में फैल गया है. आंदोलन की शुरुआत मराठवाड़ा के औरंगाबाद से हुई. आंदोलनकारियों की मांग है कि आर्थिक और सामाजिक तौर पर पिछड़े मराठाओं को आरक्षण दिया जाय. एट्रोसिटी कानून को खत्म किया जाए. क्योंकि एट्रोसिटी कानून का सबसे ज्यादा गलत इस्तेमाल मराठा लोगों के खिलाफ हुआ है. मराठा आंदोलन में शामिल लोग कोपर्डी रेप कांड के आरोपियों को फांसी की सजा देने की मांग कर रहे हैं. कोपर्डी रेप कांड की पीड़ित मराठा थी जबकि अत्याचार करने वाले दलित.

मराठवाड़ा में दलित और मराठा संघर्ष का पुराना इतिहास रहा है. अब एट्रोसिटी कानून को हटाने के मुद्दे पर एक बार फिर दलित और मराठा आमने सामने हैं.

सियासी संकट

महाराष्ट्र में कांग्रेस-राकांपा की पिछली सरकार ने 2014 में मराठा समाज को चुनाव से ठीक पहले 16 फिसदी आरक्षण दिया था. लेकिन विधानसभा चुनावों में इस गठबंधन की बुरी तरह हार हुई और भाजपा-शिवसेना सरकार बनी. अभी की फडणवीस सरकार ने भी मराठा आरक्षण का समर्थन किया और जब अदालत ने आरक्षण के खिलाफ फैसला दिया, तो उसे विधानसभा से पारित करवाया.

maratha-2-650_092216035003.jpg
 मराठा आरक्षण की सियासत में फंसा महाराष्ट्र..

राज्य में पहले से ही 49 फीसदी आरक्षण है. लिहाजा हाईकोर्ट ने मराठाओं को दिए गए इस आरक्षण को रद्द कर दिया. मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा. 20 सितम्बर 2016 को सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र में मराठों को 16 प्रतिशत आरक्षण दिए जाने के मामले में सुनवाई से इनकार कर दिया. सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता से कहा है कि वह मामले की जल्द सुनवाई के लिए बॉम्बे हाईकोर्ट में ही नई अर्जी दाखिल करे. लिहाजा अब मामला जहां से शुरू हुआ था वहीं पहुच गया है.

यह भी पढ़ें- गुजरात की बीजेपी पॉलिटिक्‍स का केंद्र बन गया है सौराष्ट्र !

कोर्ट और मराठाओं के बीच फंसे इस घमासान ने महाराष्ट्र में सियासी पार्टियों के लिए बड़ी मुसीबत खड़ी कर दी है. क्योंकि एक तरफ 32 फीसदी वोट बैंक वाला मराठा समाज है तो दूसरी ओर करीब 11 फीसदी वोट बैंक वाला दलित समाज.

महाराष्ट्र में अगले साल निकायों के चुनाव होने हैं, जिसे मिनी विधानसभा चुनाव के तौर पर भी देखा जाता है, राजनीतिज्ञ मान रहे हैं कि इन आंदोलनों का इस्तेमाल उन चुनावों के लिए जमीन तैयार करने के लिए किया जा रहा है.

इस आंदोलन का इस्तेमाल कई लोग महाराष्ट्र में 2017 में होनेवाले स्थानीय निकायों के चुनाव में अपना निशाना साधने में भी लगे हुए हैं . क्यूंकि महाराष्ट्र में स्थानीय निकायों के चुनाव को मिनी विधान सभा चुनाव के रूप में भी जाना जाता है . लिहाज मुख्यमंत्री फडणवीस लिए इस आंदोलन के दूरगामी परिणाम हो सकते हैं.

नारेबाजी या शोरशराबा नहीं

मराठा आरक्षण की मांग को लेकर बुधवार को नवी मुंबई और सोलापुर में मोर्चा निकाला गया. नवी मुंबई के मोर्च में डेढ़ लाख लोगों के शामिल होने का दावा किया गया है. इससे पहले मराठा समाज बीड़, औरंगाबाद, परभणी व उस्मानाबाद में भी मोर्चा निकाल चुका है. और इसी माह लगातार रैलियां करने वाला है.

आरक्षण को लेकर अन्य राज्यों में भी चल रहे हैं आंदोलन

पाटीदार आंदोलन: गुजरात में जुलाई 2015 में पटेल आंदोलन शुरू हुआ . अप्रैल 2016 में गुजरात की बीजेपी सरकार ने आंदोलन के दबाव में सामान्य वर्ग में पाटीदारों सहित आर्थिक रूप से पिछड़े लोगों के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण की घोषणा की, जिस पर पहले गुजरात हाई कोर्ट और बाद में सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात हाईकोर्ट के उस आदेश पर रोक लगा दी.

यह भी पढ़ें- कोर्ट की कसौटी पर खरा नहीं उतरा आरक्षण!

जाट आरक्षण

हरियाणा सरकार ने 29 मार्च 2016 में जाटों और अन्य पांच समुदायों को सरकारी नौकरी और शिक्षण संस्थानों में आरक्षण के लिए विधेयक पास किया. इसके तहत पिछड़े वर्ग की नई कैटेगरी 'सी' को जोड़कर कोटे का प्रावधान किया गया था. पंजाब एंड हरियाणा हाइकोर्ट ने जाट आरक्षण पर 21 जुलाई तक की अंतरिम रोक लगा दी थी.अब 30 सितंबर को मामले में अगली सुनवाई होगी. यूपीए सरकार ने 2014 में सेंट्रल सर्विसेस में जाटों को आरक्षण दिया था, जिसे 17 मार्च 2015 को सुप्रीम कोर्ट ने खत्म कर दिया था.

गुर्जर

राजस्थान की बीजेपी सरकार ने 22 सितंबर 2015 को विधान सभा में गुर्जर और अन्य समुदायों को पांच फीसदी आरक्षण देने का विधेयक पास किया. इन्हें विशेष पिछड़ा वर्ग में रखा गया है. सवर्णों को खुश रखने के लिए राज्य सरकार ने आर्थिक रूप से पिछड़े सामान्य वर्ग को भी 14 फीसदी आरक्षण देना तय किया है. 49 फीसदी आरक्षण पहले से था, 19 प्रतिशत नया आरक्षण आया है, यानि कुल मिलाकर राजस्थान में रिजर्वेशन 68 फीसदी

केंद्र के द्वारा दिया गया आरक्षण

- अनुसूचित जाति (SC)15 %
- अनुसूचित जनजाति (ST)7.5 %
- अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC)27.5 %
- कुल आरक्षण: 50%.

50 फीसदी आरक्षण पार करने वाले राज्य

- तमिलनाडु 69 फीसदी
- राजस्थान में 68 प्रतिशत
- हरियाणा में 67 फीसदी(फ़िलहाल हाई कोर्ट में लंबित)
- महाराष्ट्र में 52 फीसदी
- झारखण्ड में 60 फीसदी
- मध्यप्रदेश 50 फीसदी
- छत्तीसगढ़ में 57 फीसदी

यह भी पढ़ें- आरक्षण पर एक खुला पत्र हमारे नीति-निर्माताओं के नाम

#आरक्षण, #मराठा, #चुनाव, Reservation, Maratha, Election

लेखक

राकेश चंद्र राकेश चंद्र @rakesh.dandriyal.3

लेखक आजतक में सीनियर प्रोड्यूसर हैं

iChowk का खास कंटेंट पाने के लिए फेसबुक पर लाइक करें.

आपकी राय