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Updated: 17 जून, 2015 12:53 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
  @msTalkiesHindi
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राजनीति में जीत-हार मायने रखती है या चुनौती? अगर जीत-हार से फर्क पड़ता तो अरविंद केजरीवाल बनारस में नरेंद्र मोदी को चुनौती नहीं देते. कुमार विश्वास और स्मृति ईरानी अमेठी में राहुल गांधी के खिलाफ खड़े नहीं होते. या फिर, सुषमा स्वराज बेल्लारी में सोनिया के खिलाफ चुनाव नहीं लड़तीं.

बिहार में कांग्रेस नेताओं के दिमाग में यही सवाल लगातार गूंज रहा है. हालांकि, फैसला पहले आलाकमान के हाथ में है और फिर जनता के हाथ में.

गठबंधन तो जरूरी था

बिहार में कांग्रेस को अपनी भूमिका की तलाश थी. अचानक परिस्थियां ऐसी बनीं कि मुंहमांगी मुराद मिल गई. कांग्रेस ने नीतीश कुमार को नेता घोषित कराकर उन पर अहसान किया. सोनिया गांधी के मुकाबले राहुल गांधी वैसे भी लालू प्रसाद को कम पसंद करते नजर आते हैं. दागी नेताओं को बचाने वाले ऑर्डिनेंस की कॉपी को फाड़ना इसका सबूत है. माना जा रहा था कि लालू को बचाने के लिए ही तब की मनमोहन सिंह सरकार वो ऑर्डिनेंस ला रही थी. रेस से बाहर चल रही कांग्रेस ने मौका हाथ आते ही लालू को मजबूर कर गठबंधन में अपनी भूमिका बढ़ा ली है.

ताकि सम्मान कायम रहे

बिहार के कांग्रेस नेताओं को भी फिलहाल जीत-हार की परवाह नहीं लगती. हाल ही में बिहार के कांग्रेस नेता आलाकमान से मिले और अपनी बात रखी. नेताओं की राय थी कि अगर गठबंधन में सम्मानजनक सीटें नहीं मिलतीं तो कांग्रेस को अकेले दम पर चुनाव लड़ना चाहिए. फिलहाल कांग्रेस ने लालू-नीतीश गठबंधन में शामिल होकर चुनाव मैदान में उतरने का ही संकेत दिया है.

कांग्रेस फिलहाल बीजेपी के मुकाबले खड़े होना तो दूर, अभी तो अस्तित्व के लिए ही संघर्ष कर रही है. किस्मत से ही सही, दिल्ली में जो हुआ वो कांग्रेस के लिए खुशी की बात रही. बिहार में भी कांग्रेस का मकसद बीजेपी को सत्ता तक पहुंचने से रोकना है. बिहार के नेताओें का तर्क है कि कुछ सीटों पर सिमट कर रह जाने से तो बेहतर है लोगों को मैदान में बने रहने का मैसेज दिया जाए. आइडिया बुरा तो नहीं है. इस बार न सही - अगली बार सही. वैसे कांग्रेस नेतृत्व भी तो लांग टर्म एक्शन प्लान के साथ चल रहा है. आलाकमान का ताजा फैसला 'एरर ऑफ जजमेंट' भी तो हो सकता है.

अब बिहार के मामले में कांग्रेस नेतृत्व दूर की सोच रहा है या नजदीक की - ये बात वहां के कांग्रेस नेताओं के समझ में नहीं आ रही है.

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मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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