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Updated: 20 सितम्बर, 2016 02:19 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
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यूपी में विपक्षी दल अक्सर साढ़े चार सीएम की बात करते रहे हैं. इसमें आधा हिस्सा ही अखिलेश यादव को मिलता रहा है. समाजवादी पार्टी और उसकी सरकार में हाल फिलहाल जो कुछ हुआ उन्हें देख कर लगा कि विपक्ष काफी हद तक ठीक ही कहा करता है.

सबने सुना भी, अखिलेश यादव ने मान भी लिया कि जो भी किया नेताजी की मर्जी से किया - लेकिन लगे हाथ कुछ फैसले खुद भी कर लिये.

फैसले का अधिकार

खबरों से मालूम हुआ कि राम गोपाल यादव ने इस बात पर हैरानी जताई कि अगर कुछ फैसले सीएम ने खुद लिये तो इसमें अस्वाभाविक क्या है? अरे भई जब कुछ ही फैसले सीएम लेंगे तो हैरानी तो होगी ही. फिर सोनिया गांधी पर रिमोट कंट्रोल से सरकार चलाने की तोहमत क्यों मढ़ी जाती रही. क्या तेजस्वी और तेज प्रताप भी कुछ फैसले खुद लेते हैं? ये तो सबको पता है कि तेज प्रताप के बदले स्वास्थ्य विभाग के कार्यक्रम में एक बार लालू प्रसाद खुद ही पहुंच गये थे. लेकिन वो वाकया कम ही लोगों को मालूम होगा जब स्वास्थ्य विभाग के एक अफसर तेज प्रताप से मिलने उनके आवास पर पहुंचे. इतने में लालू प्रसाद भी पहुंच गये. फिर बताते हैं कि लालू ने तेज प्रताप को कमरे से बाहर भेज दिया. मालूम हुआ, लालू प्रसाद उस अफसर से कुछ ऐसी बात करना चाहते थे जो तेज प्रताप के लिए शायद सुनना शायद उचित नहीं होता.

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खैर, अखिलेश यादव को भी अपने बर्खास्त मंत्री की बहाली की खबर तब पता चली जब वो एक टीवी चैनल के कार्यक्रम में शिरकत कर रहे थे. उन्हें पता भी नहीं चला और समाजवादी पार्टी सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव ने मंत्रियों की बर्खास्तगी रद्द किये जाने का एलान कर दिया.

वीटो पावर कितना

अखिलेश ने कहीं बातचीत में कहा था कि इतना तो तय है कि चुनाव होने तक वो मुख्यमंत्री हैं. समाजवादी पार्टी के यूपी अध्यक्ष का पद तो अखिलेश से ले लिया गया है, लेकिन उन्हें संसदीय बोर्ड का अध्यक्ष जरूर बनाया गया है. पहले जो पार्टी का अध्यक्ष होता था वही संसदीय बोर्ड का भी अध्यक्ष रहता था. अब तक अखिलेश के पास ये दोनों जिम्मेदारी थी.

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किस पर किसका वीटो चलेगा?

जब मुलायम ने अखिलेश से अध्यक्ष पद लेकर शिवपाल को थमाया तो संसदीय बोर्ड अध्यक्ष की जिम्मेदारी अलग करते हुए उन्होंने अखिलेश को सौंप दी.

इस व्यवस्था का मतलब ये हुआ कि आने वाले विधान सभा चुनाव में शिवपाल जिस किसी को भी टिकट देंगे उसमें अखिलेश यादव की सहमति जरूरी होगी. साथ ही अखिलेश के पास वीटो पावर भी होगा, लेकिन मुलायम सिंह ने सुपर-वीटो का पावर अपने पास रखा है. यानी अखिलेश यहां भी वीटो का इस्तेमाल पूछ कर के ही कर पाएंगे. हां, कुछ अपने मन से भी कर सकते हैं.

अधिकार मिलते ही शिवपाल ने धड़ाधड़ इस्तेमाल करना शुरू कर दिया है. सबसे पहले उन्होंने अपने चचरे भाई राम गोपाल के भांजे एमएलसी अरविंद यादव को ठिकाने लगाया. उसके बाद बारी बारी उन सभी नेताओं का पत्ता साफ कर रहे हैं जो अखिलेश की कलम से पार्टी में अब तक काबिज रहे. हर एक्शन के रिएक्शन वाला न्यूटन का तीसरा नियम फिलहाल समाजवादी पार्टी में खूब फलफूल रहा है. ये बात अलग है कि मुलायम का चौथा नियम सब कुछ न्यूट्रलाइज कर दे रहा है.

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सबसे बड़ी बात, आखिर अखिलेश के ट्रंप कार्ड का राज क्या है? अखिलेश ने शिवपाल को सारे मंत्रालय तो वापस कर दिये लेकिन PWD अपने पास ही रखा. निश्चित रूप से शिवपाल को बेटे जैसे मुख्यमंत्री की ये बात तो साल ही रही होगी. तो क्या शिवपाल समाजवादी पार्टी में सर्जिकल ऑपरेशन सिर्फ इसलिए कर रहे हैं क्योंकि ठिकाने लगाये गये नेताओं ने जमीनों पर अवैध कब्जा कर रखा था या उन खास दिनों में अखिलेश के समर्थन में नारे लगाये थे?

तो अखिलेश कितने मुख्यमंत्री? और मुलायम मुलायम और शिवपाल यादव? लगा, मायावती ऐसा कुछ बताएंगी. जो भला बुरा शिवपाल ने उनके लिए कभी कहा था वो सारी बातें भूल कर उन्होंने तो शिवपाल के साथ सहानुभूति जता कर इतिश्री कर ही ली. बताया भी नहीं कि कौन डबल सीएम है और कौन हाफ?

लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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