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Updated: 02 सितम्बर, 2015 02:26 PM
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1963 में हॉलीवुड की एक मूवी आई थी - द ग्रेड एस्केप (The Great Escape). इसकी कहानी उन 76 लोगों पर आधारित थी, जो वर्ल्ड वॉर-II के दौरान जर्मनी की कैद से भागने में सफल रहे थे. इनमें से आखिरी बचे दो लोगों में से एक पॉल रॉयल (ऑस्ट्रेलियन पायलट) की मौत 28 अगस्तख को ही हुई है.  यह कहानी इसलिए क्योंकि 1965 इंडिया-पाक युद्ध के दौरान भारतीय वायु सेना के एक पायलट भी इसी तरह पाकिस्तानियों को चकमा देते हुए वापस भारत लौटने में सफल रहे थे. हां, बॉलीवुड की नजर शायद उनकी कहानी पर नहीं पड़ी है! कोई बात नहीं. हम आपको बताएंगे फ्लाइंग ऑफिसर दारा फिरोज चिनॉय के पाकिस्तान से ग्रेट इस्केप के बारे में...

फ्लाइंग ऑफिसर दारा फिरोज चिनॉय 1965 के भारत-पाक युद्ध से मात्र दो साल पहले ही इंडियन एयर फोर्स में कमिशंड हुए थे. 10 सितंबर 1965 को पंजाब स्थित आदमपुर एयरबेस की यूनिट को दुश्मन सेना की एक आर्टिलरी पोजिशन को नेस्तानाबूद करने का ऑर्डर मिला. इसी यूनिट में 20 साल के फिरोज चिनॉय भी थे. वह भी अपने फ्रेंच दसॉ मिस्टियर फाइटर बॉम्बर के साथ उड़ लिए दुश्मन देश की सीमा के भीतर. हालांकि इससे पहले कि वह पाकिस्तानी आर्टिलरी को कुछ नुकसान पहुंचा पाते, उनके विमान में एक गोली लगी और इंजन जवाब दे गया. मजबूरन उन्हें इजेक्ट करना पड़ा.
                  
पैराशूट से फिरोज चिनॉय ने जहां लैंड किया, वो गन्ने का एक खेत था. लैंड करते वक्त भी पाकिस्तानी सेना नीचे से उन पर गोलियां बरसा रही थी. किसी तरह बचे. जब नीचे उतरे तो एक क्षण में लिया गया फैसला दुश्मन फौज को चकमा देने में कामयाब रहा. 6 से 7 फीट लंबे गन्ने के खेत में वो छिपते-छिपाते उत्तर दिशा की बढ़े जबकि पाकिस्तानी सेना उनके पूर्व की ओर बढ़ने का अंदेशा कर उसी रास्ते आगे बढ़ गई. एक समय के बाद जब खेत खत्म होने लगे तो फ्लाइंग ऑफिसर चिनॉय ने अंधेरा होने तक खुद को छिपाए रखने की रणनीति अपनाई.

जब अंधेरा हो गया तो फ्लाइंग ऑफिसर चिनॉय ने सबसे पहले अपने सारे डॉक्यूमेंट्स जला दिए और पूर्व की ओर बढ़ना शुरू किया. अगले पांच घंटों तक वे रनिंग, जॉगिंग और वॉकिंग को मिक्स करके भारत के बॉर्डर की ओर बढ़ते रहे. इस दौरान उन्होंगने मुख्य रास्तों, पाकिस्तानी नागरिकों और कुत्तों से बचने के लिए छोटी नदियां, नालों और सुनसान राहों को अपना मार्ग बनाया. 5 घंटों तक लगातार भागते रहने से शरीर में पानी की कमी इतनी हो गई थी कि उनकी हालत अब गिरे-तब गिरे वाली स्थिति तक पहुंच गई थी. तभी उन्हें अमृतसर-बटाला हाइवे दिखा. पर वे पूरी तरह यकीन नहीं कर पा रहे थे. असमंजस में थे - क्या करें, क्या न करें.

फिर उम्मीद की एक किरण दिखी. हाइवे के उस पार कुछ सैनिक दक्षिण भारतीय भाषा में बात कर रहे थे. फ्लाइंग ऑफिसर चिनॉय ने लगभग आदेश देते हुए पूछा - कौन है वहां? प्रतिक्रिया बहुत तेज हुई. चंद क्षणों में उनके चारों ओर बंदूके तनी थीं और आईडी मांगा जा रहा था, जो उन्होंने जला दिया था. किसी तरह वह समझाने में सफल रहे और सैनिकों को अपनी यूनिट से बात करवाने को कहा. फ्लाइंग ऑफिसर दारा फिरोज चिनॉय कुछ ही घंटों में अपनी यूनिट में थे - एक हीरो की तरह.

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लेखक

चंदन कुमार चंदन कुमार @chandank.journalist

लेखक iChowk.in में पत्रकार हैं.

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