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Updated: 10 सितम्बर, 2015 08:43 PM
गौरव चितरंजन सावंत
गौरव चितरंजन सावंत
  @gaurav.c.sawant
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क्या 1965 में भारत और पाकिस्तान के बीच का युद्ध बिना निर्णय के समाप्त हो गया था. अब तक भारतीय सेना का इतिहास भी इस युद्ध को ड्रॉ के रूप में देखता था – न भारत की निर्णायक जीत और न ही पाकिस्तान की पूर्ण पराजय. किंतु 1965 के युद्ध की स्वर्ण जयंती वर्ष में रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर ने 1965 को भारत की निर्णायक जीत घोषित किया. वहीं उस यु्द्ध में सेना में एक कप्तान रहे पंजाब को पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह युद्ध को ड्रा के रूप में देखते हैं हालांकि वो इस बात को मानते हैं कि भारत का पलड़ा भारी था. 

1965 के युद्ध पर अब कई नई किताबें लिखी जा रही हैं और युद्ध को भी नई नज़र से देखा जा रहा है. यह एक ऐसा युद्ध था जो भारत पर थोपा गया था. पाकिस्तान ने पहले गुजरात के कच्छ के रण में टोह लेने की कोशिश की. भारत को ललकारा. पाकिस्तान में सोच यह थी कि भारत 1962 के भारत-चीन युद्ध से उबर नहीं पाया है – भारतीय सेना का ही नहीं बल्कि देश का मनोबल कमज़ोर है. देश एक भयंकर सूखे की मार झेल चुका है और एक नए प्रधानमंत्री – लाल बहादुर शास्त्री के हाथ में देश की कमान है जो इस समय खासे कमज़ोर हैं. दूसरी तरफ पाकिस्तान के पास नए अमरीकी टैंक और लड़ाकू विमान थे. और इससे पहले कि भारत अपने पैरों पर दोबारा खड़ा हो पाता पाकिस्तान ने एक बार फिर जम्मू और कश्मीर में आतंकवादी ऑपरेशन जिबरॉल्टर के तहत भेजने शुरू कर दिए. मंशा यह थी कि कश्मीर का जनता पाकिस्तानियों का साथ देगी. किंतु हुआ इसके ठीक विपरीत. जनता ने पाकिस्तानी आतंकियो और सिपाहियों को पुलिस और सेना के हवाले कर दिया. 

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भारतीय सेनाओं ने खेमकरन को पाकिस्‍तान के पैटन टैंकों की कब्रगाह बना दिया था.

इसी बीच पाकिस्तान ने जम्मू और कश्मीर में अपनी सेना भी भेज दी. हालांकि यहां भी भारतीय सेना ने पाकिस्तान को मुंह तोड़ जवाब दिया और 28 अगस्त 1965 को जम्मू और कश्मीर में एक अहम दर्रा – हाजीपीर पास को अपने कब्ज़े में कर लिया. इसके बाद पाकिस्तान की पकड़ ढीली करने के लिए – प्रधानमंत्री शास्त्री ने दूसरा मोर्चा खोलने का आदेश दे दिया. पाकिस्तान ने अपने सबसे बुरे सपने में भी नहीं सोचा था कि भारत दूसरा मोर्चा खोल कर पाकिस्तानी सेना की रणनीति को पूरी तरह से विफल कर देगा. भारतीय सेना लाहौर के दरवाज़े तक पहुंच गई और वो भी ऐसे समय जब पाकिस्तानी सेना के डिविज़न कमांडर मेजर जनरल सरफराज़ आराम से अपने घर पर सो रहे थे और पाकिस्तानी सेना पी टी कर रही थी. युद्ध के हर क्षेत्र में भारतीय सेना ने पाकिस्तान को मुंह तोड़ जवाब दिया.

युद्ध में जीत और हार कैसे निर्धारित होते हैं? पाकिस्तान का उद्देश्य क्या था? पाकिस्तान का मकसद था जम्मू और कश्मीर पर कब्ज़ा करना. क्या पाकिस्तान अपने लक्ष्य को प्राप्त करने में सफल रहा – नहीं. भारत का मकसद क्या था – जम्मू और कश्मीर से पाकिस्तान को खदेड़ना. क्या भारत सफल हुआ – हां. भारत का दूसरा मकसद था पाकिस्तान के टैंको और विमानों को तबाह करना. क्या भारत सफल हुआ – पाकिस्तान की कई टैंक रेजीमेंट खत्म हो गई. उस समय अत्याधुनिक पैटन टैंक पाकिस्तान के पास थे और भारत नें 165 पैंटन टैंक ध्वस्त कर दिए. पाकिस्तान का ऑपरेशन जिबरॉलटर और ऑपरेशन ग्रैंड स्लैम दोनों विफल हो गए. हाजीपीर पास पाकिस्तान के हाथ से निकल गया. भारतीय सेना लाहौर के दरवाज़े तक पहुंच गई. पाकिस्तान के ज़्यादा इलाके भारत के कब्ज़े में थे और पाकिस्तानी सेना के ज़्यादा सिपाही मारे गए. यही नहीं पाकिस्तान का 80 प्रतिशत गोला बारूद खत्म हो गया था जबकि भारत के केवल 14 प्रतिशत गोला बारूद खत्म हुआ था.

इसमें दो राय नहीं कि युद्ध में क्षति दोनों देशों को हुई. किंतु युद्ध के पचास साल बाद यह साफ है कि जीत भारत की ही थी, क्योंकि भारत ने पाकिस्तान के नापाक इरादों को एक बार फिर विफल कर दिया था.

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लेखक

गौरव चितरंजन सावंत गौरव चितरंजन सावंत @gaurav.c.sawant

लेखक इंडिया टुडे टेलीविजन में एडिटर (स्ट्रैटेजिक अफेयर्स) हैं.

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