New

होम -> सियासत

 |  3-मिनट में पढ़ें  |  
Updated: 20 जुलाई, 2016 06:58 PM
अनूप श्रीवास्तव
अनूप श्रीवास्तव
  @anup.srivastava.798
  • Total Shares

बाबारी मस्जिद-राम जन्म भूमि के मुख्य पक्षकार हाशिम अंसारी का बुधवार सुबह निधन हो गया. वे 96 वर्ष के थे और लम्बे समय से अस्वस्थ्य चल रहे थे. 22/23 जनवरी 1949 को विवादित ढाँचे में राम लला के प्रकट होने की घटना को अयोध्या कोतवाली के तत्कालीन इन्स्पेक्टर ने दर्ज कराया था, जिसमें हाशिम अंसारी गवाह के रूप में सबसे पहले सामने आये और फिर 18 दिसंबर 1961 को एक दूसरा मुकदमा हाशिम अंसारी, हाजी फेंकू सहित 9 मुस्लिमों की ओर से मालिकाना हक के लिए फैजाबाद के सिविल कोर्ट में लाया गया. राम मंदिर के प्रमुख पक्षकार दिगंबर अखाड़ा के तत्कालीन महंत परमहंस राम चन्द्र दास जो बाद में श्री राम जन्म भूमि के अध्यक्ष हुए उनसे इनकी मित्रता चर्चा में रही.

हाशिम अंसारी बाबारी मस्जिद-राम जन्म भूमि मुद्दे के समाधान का लगातार प्रयास करते रहे. हनुमानगढ़ी के महंत और अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद् के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष ज्ञान दास के साथ मिलकर सुलह-समझौते की पहल भी शुरू की थी. उच्च न्यायालय के फैसले के बाद भी समझौते का दौर वे चलाते रहे, लेकिन सुलह-समझौता परवान चढ़ता कि इसी बीच अन्य पक्षकार सर्वोच्च न्यायालय चले गए और अंसारी के प्रयासों को धक्का लगा. फिर भी इन्होने अपने प्रयास नहीं छोड़े और इसीलिए कुछ लोग हाशिम अंसारी को अयोध्या का गांधी भी मानते हैं. हाशिम अंसारी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ख़ास मुरीद थे और मुस्लिम समुदाय से भी नरेंद्र मोदी का समर्थन करने की अपील करते रहे. अंसारी ने अपने जर्जर भवन में अभाव ग्रस्त जीवन व्यतीत किया और देश-दुनिया से समय-समय पर आये बड़े से बड़े प्रलोभनों को ठुकरा दिया.

क्या है हाशिम अंसारी का बाबरी मस्जिद कनेक्शन

फैजाबाद में रहने वाले हाशिम अंसारी उस समय सुर्खियों में आए जब उन्होंने ढाई दशक पहले बाबरी मस्जिद गिराए जाने के खिलाफ अपनी आवाज बुलंद की थी और घटना के विरोध में कोर्ट पहुंच गए थे. तब से लगातार अंसारी इस केस को लड़ रहे थे. खास बात यह है कि यह पूरा केस वे अपने दम पर लड़ रहे थे. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने जब पांच साल पहले रामलला और बाबरी मस्जिद के लिए जमीन बांटने की बात कही थी, तब भी हाशिम चर्चा में आए थे. बाबरी केस फिलहाल सुप्रीम कोर्ट में लंबित है.

hashim_650_072016064414.jpg
 राम जन्मभूमि पर कड़ा पहरा

रामलला मुकदमें के थे अहम गवाह

हाशिम अंसारी 22-23 दिसंबर, 1949 को अयोध्या अधिगृहित परिसर में प्रकट हुए रामलला के मुकदमे में अहम गवाह थे. अंसारी 1950 से बाबरी मस्जिद की पैरवी कर रहे थे. हाशिम अयोध्या के उन कुछ चुनिंदा बचे हुए लोगों में से थे जो लगातार 60 वर्षों से ज्यादा इस्लाम और बाबरी मस्जिद के लिए संविधान और क़ानून के दायरे में रहते हुए अदालती लड़ाई लड़ रहे थे.

करोड़ो की पेशकश को ठुकरा दिया था हाशिम अंसारी ने

6 दिसंबर 1992 की घटना आज भी प्रदेश के लोगो के जहन में बसी है. उस दिन बलवे में बाहर से आए दंगाइयों ने हाशिम अंसारी का घर तक जला दिया था. लेकिन अयोध्या के हिंदुओं ने उन्हें और उनके परिवार को बचाया. जिसके बाद हाशिम अंसारी को कुछ मुआवजा मिला और उन्होंने वहीं अपना नए घर का निर्माण कराया. हाशिम अंसारी का कहना था कि उन्होंने बाबरी मस्जिद की पैरवी कभी राजनीतिक फायदे के लिए नहीं की थी. लोगो का मानना है कि 6 दिसंबर, 1992 की घटना के बाद एक बड़े नेता ने उनको दो करोड़ रुपए और पेट्रोल पम्प देने की पेशकश की तो हाशिम ने उसे ठुकरा दिया. अंसारी की कोशिश अयोध्या के इस विवाद को मिलजुल कर सुलझाने की थी.

अब क्या होगा राम जन्मभूमि और बाबरी मस्जिद का?

मंदिर-मस्जिद मामले के कानूनी जानकारों का कहना है कि 1961 में बाबरी मस्जिद के मालिकाना हक को लेकर मुकदमा करने वाले 9 मुस्लिम पक्षकारों में हाशिम अब तक अकेले जीवित बचे थे. अब उनके भी न रहने पर मुकदमें पर कोई असर नहीं पडेगा, क्योंकि मुकदमा प्रतिनिधि नेचर का है, न कि व्यक्तिगत. महन्त ज्ञान दास ने हाशिम अंसारी के बारे में बताया कि हम यह चाहते थे की मंदिर और मस्जिद के मामले का वह अपने जिन्दा रहते समाधान कर लेते.

लेखक

अनूप श्रीवास्तव अनूप श्रीवास्तव @anup.srivastava.798

लेखक आज तक में पत्रकार हैं.

iChowk का खास कंटेंट पाने के लिए फेसबुक पर लाइक करें.

आपकी राय