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Updated: 25 मार्च, 2016 07:14 PM
राहुल मिश्र
राहुल मिश्र
  @rmisra
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इस्लामिक स्टेट (आईएस) के निशाने पर दुनिया के 60 से ज्यादा देश हैं. इन देशों पर आईएस पेरिस और ब्रसल्स जैसे हमले करने की फिराक में है. ऐसा ही लक्ष्य अलकायदा का है जिसने अमेरिका में 9-11 हमलों को अंजाम देकर इन 60 देशों के खिलाफ जेहाद की शुरुआत की थी. आईएस और अलकायदा जैसे संगठनों की नींव बीते कुछ दशकों में नहीं पड़ी बल्की इसकी शुरुआत 1947 में पाकिस्तान की नींव रखने के साथ ही हो गई थी.

भारत को 1947 में ब्रिटिश हुकूमत से आजादी अपनी एक-तिहाई जमीन गंवाकर देनी पड़ी थी जिस पर आज पाकिस्तान मौजूद है. पाकिस्तान की मांग रखने वाले और पेशे से वकील मोहम्मद अली जिन्ना मुसलमानों के लिए एक अलग राष्ट्र चाहते थे क्योंकि उनका मानना था कि एक बड़ी हिंदू जनसंख्या के साथ मुसलमानों का हित सुरक्षित नहीं रहेगा. लिहाजा, 11 अगस्त 1947 को पाकिस्तान की नवगठित संविधान सभा को संबोधित करते हुए जिन्ना ने एक मुस्लिम बहुल राष्ट्र की परिभाषा देते हुए कहा ‘आने वाले समय में यहां हिंदू हिंदू नहीं रह जाएगा, मुसलमान मुसलमान नहीं रह जाएगा. जिन्ना ने अपने इस कथन को धर्म से अलग और महज राष्ट्र के संदर्भ में बताते हुए कहा कि पाकिस्तान में धर्म सभी नागरिकों की निजी आस्था है और वह हिंदू, मुसलमान, सिख या इसाई होने से पहले पाकिस्तानी होगा.’

अब अगर जिन्ना का सर्वधर्म वाला ही देश बनाना था तो सिर्फ मुसलमानों के लिए देश मांगने की क्या जरूरत थी. भारत तो खुद बहु धर्म वाला देश था. अंतर महज इतना था कि भारत हिंदू बहुल था और पाकिस्तान मुस्लिम बहुल. खैर, एक बात साफ है कि जिन्ना के उपरोक्त भाषण को पाकिस्तान ने अनसुना कर दिया. कुछ ही दिनों में पाकिस्तान को इस्लामिक राष्ट्र घोषित कर दिया गया. पाकिस्तान में नया संविधान धर्म को आगे रखकर बनाया गया. यह पूरी दुनिया में पहली कोशिश थी जब एक देश की स्थापना इस्लाम को खतरे में दिखाकर की गई.

धर्म के इतर राजनीति में भी वहां मुसलमान मुसलमान रहा और अल्पसंख्यक की संख्या 23 फीसदी से घटकर 3 फीसदी पहुंच गई. कुछ मारे गए और जो जान बचाकर भाग सके, उन्होंने कहीं और शरण ले ली.

बंटवारे के समय भारत में हुए दंगों को पाकिस्तान की मीडिया ने इस्लाम पर हमला बताया और इसी का नतीजा था कि पाकिस्तान ने जिन्ना के उस पाकिस्तान को दरकिनार कर दिया जहां अल्पसंख्यकों को बराबरी की नागरिकता दी जानी थी. हिंदू, सिख, इसाई और बौद्ध के साथ-साथ ईरान के अहमदिया समुदाय को भी गैर-इस्लामिक करार दिया गया. शिया मुसलमानों पर हमले होने लगे. इस्लाम छोड़ सभी धर्मों पर टैक्स थोप दिया गया. तमाम मंदिरों, गुरुद्वारों और पूजा स्थलों पर हमले होने लगे. उनके आतंकित अनुययी या तो पाकिस्तान से पलायन कर गए और जो नहीं कर सके उन्हें इस्लाम कुबूलने के सिवाए कोई विकल्प नहीं दिखा.

और इस तरह पाकिस्तान के रूप में दुनिया को पहला ‘इस्लामिक स्टेट’ मिला. जमात-ए-इस्लामी को शरीयत के मुताबिक राजनीति को चलाने की कमान दे दी गई.

बीते दशकों में एक के बाद एक शासकों ने चाहे वे सेना के तानाशाह रहे हों या फिर जम्हूरियत के चेहरे, सभी ने पाकिस्तान में धर्म, राजनीति और आतंकवाद को एक सूत में पिरोने की कोशिश की है. आज ईराक और सीरिया में खड़ी हुई आईएस और अफगानिस्तान-पाकिस्तान में अपनी जड़ें जमा चुके अलकायदा और तालिबान वहीं कर रहे हैं. 1947 से पाकिस्तान ही इसका प्रेरणास्रोत है.

लेखक

राहुल मिश्र राहुल मिश्र @rmisra

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में असिस्‍टेंट एड‍िटर हैं

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