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बड़ा आर्टिकल  |  
Updated: 04 अक्टूबर, 2016 01:52 PM
आर.के.सिन्हा
आर.के.सिन्हा
  @RKSinha.Official
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सारे देश के लिए एक महीने पहले ही आ गई दिवाली. गुलाम कश्मीर में भारतीय सेना के रणबांकुरों ने आतंकी शिविरों को नष्ट करके देश की 125 करोड़ जनता का मानो मुंह मीठा कर दिया है. सेना के इस सर्जिकल आपरेशन से भारत ने सारी दुनिया को यह साफ संदेश दे दिया कि उसकी संप्रभुता से किसी भी परिस्थिति में समझौता नहीं होगा. आतंकवाद को बर्दाशत नहीं किया जाएगा. बेशक, इस सैन्य कार्रवाई से दुनिया को यह भी मालूम चल जाएगा कि बौद्ध, गांधी और महावीर की प्रेम और मैत्री का संदेश देने वाली धरती, समय आने पर शत्रु का समूल नाश भी कर सकती है.

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 भारत की बड़ी कुटनीतिक सफलता रही ये सर्जिकल स्ट्राइक

यह सैन्य सर्जिकल स्ट्राइक भारत की बड़ी कुटनीतिक सफलता के रूप में भी देखा जा रहा है, क्योंकि, इस सर्जिकल स्ट्राइक की लगभग सभी पडोसी देशों ने इसे भारत के द्वारा की गयी एक जरूरी कारवाई बताकर सराहना की और अमेरिका, ब्रिटेन, फ़्रांस, जर्मनी, जापान यहां तक कि चीन ने भी मौन रहकर और कोई प्रतिक्रिया न देकर ‘मौनम स्वीकृति लक्षणम’ सूत्र के अनुसार भारत की आतंकवाद के विरुद्ध की गई इस जरूरी करवाई को स्वीकृति प्रदान की. यह एक बड़ी कुटनीतिक सफलता है जिसके लिए जाहिर है कि प्रधानमंत्री ने स्वयं और विदेश मंत्री सुषमा स्वराज की पूरी टीम ने दस दिनों तक दिन-रात मेहनत की होगी.

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दरअसल पाकिस्तान के लिए बीता गुरुवार (29 सितंबर) मनहूस रहा. उसे उस दिन दोहरी मार पड़ी. जहां उसकी पूर्वी सीमा पर भारतीय सेना ने सर्जिकल स्ट्राइक किया, वहीं पश्चिमी बॉर्डर पर ईरान की सेना ने उसपर शक्तिशाली मोर्टार दाग दिए. ईरान की तरफ से ये मोर्टार बलूचिस्तान के इलाके में दागे गए थे. बलूचिस्तान के अधिकारियों ने इसे अचानक होने वाला हमला बताया. मोर्टार ईरान की सेना द्वारा पंजोर जिले में दागे गए थे. ईरान की सेना द्वारा तीन मोर्टार दागे गए. दो मोर्टार फ्रंटीयर चेकपोस्ट के पास आकर गिरे थे. वहीं तीसरा मोर्टार किली करीमदाद इलाके में गिरा था. मोर्टार गिरने के बाद वहां आसपास रहने वाले लोग डर गए थे. पाकिस्तान और ईरान के बॉर्डर की लंबाई 900 किलोमीटर है. ईरान बार-बार आरोप लगाता रहता है कि पाकिस्तान बॉर्डर के पास वाले इलाके का इस्तेमाल आतंकियों को शरण देने के लिए करता है, जो इरान पर हमला करते रहते हैं. दोनों देशों के बीच पहले भी लड़इयां होती रही हैं. यानी पाकिस्तान अपने सभी पड़ोसियों के लिए समस्या बना हुआ है. अफगानिस्तान तो उससे नफरत करता ही है. बीते दिनों जब भारत ने सार्क सम्मेलन का बहिष्कार करने की घोषणा की तो अफगानिस्तान ने भी सम्मेलन से दूर रहने का फैसला किया. और तो और, कभी उसका हिस्सा रहे बांग्लादेश ने भी सार्क सम्मेलन से अपने को अलग रखने का निश्चय किया. पाकिस्तान-बांग्लादेश के संबंधों में हाल के दौर में खासी खटास आ चुकी है. इसकी वजह यही है कि पाकिस्तान उसके आतंरिक मामलों में हस्तेक्ष करता है. यही तो है ‘आतंकवादी राष्ट्र’ कहलाने का लक्षण जिसमें पाकिस्तान 100 प्रतिशत मार्क लेकर अव्वल है. सिर्फ संयुक्त राष्ट्र संघ की मुहर लगने की देर है. आज लगे या कल वाली बात है.

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दरअसल पूरे भारत के कोने-कोने में उरी की घटना के बाद पूरे देश की आम जनता सरकार से पाकिस्तान के खिलाफ किसी कठोर एक्शन की अपेक्षा कर रही थी. जनता अब सिर्फ निंदा या कठोर निंदा से संतुष्ट नहीं थी. देश की जनता में निराशा घर करती जा रही थी. जनता को लग रहा था कि भारत सरकार भी एक कागजी शेर है. लेकिन, ताजा सर्जिकल एक्शन ने देश की छवि को एक दम से बदला. सरकार के आदेश मिलने के बाद भारतीय सेना ने गुलाम कश्मीर में आतंकियों के सात शिविरों को आनन-फानन में नष्ट कर दिया. इस एक्शन में बड़ी संख्या में आतंकी ढेर हुए. सरकारी आंकड़ा तो 42 कहता है. 38 आतंकी और 4 उनकी सुरक्षा में तैनात पाकिस्तानी रेंजर्स. पाकिस्तानी रक्षा मंत्री के अनुसार करीब 10 रेंजर्स घायल हैं. लेकिन, यह आंकड़ा ज्यादा भी हो सकता है क्योंकि, आतंकियों के एक लांचिंग पैड में 10 से 15 की संख्या में आतंकियों को रखा जाता है और सात लांचिंग पैड पूरी तरह ध्वस्त किये गए हैं. इसे आप उरी में शहीद हुए भारतीय सेना के वीरों के बलिदान के बदले के रूप में भी देख सकते हैं. पहले पठानकोट और अब उरी की घटना से सारा देश बेहद खफा था.

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 उरी की घटना के बाद पूरा देश सरकार से पाकिस्तान के खिलाफ किसी कठोर एक्शन की अपेक्षा कर रहा था

सारा देश खुश

सबसे अहम बात ये है कि सेना की कार्रवाई का सारे देश ने, सभी राजनीतिक दलों ने समर्थन किया है. साफ है कि उरी की घटना से सारा भारत आहत हुआ था. दरअसल सेना की कार्रवाई इस ‘अत्यंत विशिष्ट सूचना’ के बाद की गई कि आतंकवादी नियंत्रण रेखा के पास डेरा डाल रहे हैं और पाकिस्तान में पल रहे आतंवादियों पर यह एक्शन बेहद जरूरी हो गया था. पाकिस्तान को उसकी औकात बताने की जरूरत आ गयी थी.

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दुष्ट देश

अफसोस होता है कि पाकिस्तान हमारा पड़ोसी है. जिस देश का रक्षा मंत्री बार-बार भारत पर परमाणु बम से हमले की धमकी दे, तो समझ लेना चाहिए कि वह वास्तव में आतंकी देश है. आपने कभी नहीं सुना होगा कि किसी जिम्मेदार देश का रक्षा मंत्री बेशर्मी से यह धमकी देता फिरे कि 'यदि भारत ने हम पर हमला किया तो हम उस पर एटम बम फोड़ कर उसे नेस्तनाबूद कर देंगे'. बीते कई दिनों से यह धमकी संवैधानिक पद पर बैठे पाकिस्तानी रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ मुहम्मद दे रहे थे. मैं मानता हूं कि यह कुबूलनामा है पाकिस्तान के एक आतंकी देश होने का. हैरानी होती है कि ख्वाजा की इस धमकी को संयुक्त राष्ट्र से लेकर अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, रूप जैसे देश देखते रहे. उन्होंने जाहिल-गलीज ख्वाजा की बेशर्म टिप्पणी पर कोई प्रतिक्रया नहीं दी.

निश्चित रूप से भारत ने विगत जून में ही संदेश दे दिया था कि अब भारत में आतंकवादी गतिविधियों को अंजाम देने वालों को बख्शा नहीं जाएगा. तब भारतीय सेना ने एक क्रॉस बॉर्डर ऑपरेशन में म्यांमार की सीमा में घुसकर भारत पर हमले की साजिश रच रहे 15 उग्रवादियों को मौत की नींद सुला दिया था. भारतीय सेना ने मणिपुर के चंदेल में हुए हमले में 18 सैनिकों के मारे जाने के बाद यह बड़ी कार्रवाई की थी. म्यांमार में सेना की कार्रवाई एक विशेष सूचना के आधार पर कमांडो ने म्यांमार के अधिकारियों के साथ तालमेल कायम कर यह कारवाई की थी. सेना के एक्शन में दो उग्रवादी संगठनों को भारी नुकसान पहुंचा. इनके उग्रवादी गिरोह हमला करने के लिए सीमापार से मणिपुर आते थे और फिर म्यांमार की सीमा में लौट जाते थे.

हालांकि म्यांमार में की गई काईवाई में भारतीय सेना म्यामांर के अधिकारियों के संपर्क में थी. दोनों सेनाओं के बीच घनिष्ठ सहयोग का इतिहास भी रहा है. जाहिर है, आप इस तरह के सहयोग की अपेक्षा धूर्त पाकिस्तानी सेना से नहीं कर सकते थे जो कि स्वंय आतंकवादी संगठनों का पोषक था. यह जगजाहिर  है कि पाकिस्तानी सेना लश्करे-ए-तैयबा और जैश मोहम्मद जैसे खूंखार आतंकी संगठनों को संरक्षण ही नहीं, वित्तीय सहायता भी देती है. यानी आतंकवाद को खाद-पानी का पूरा इंतजाम.

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भारत रहे चौकस

भारत को अब लगातार चौकन्ना रहना होगा. पाकिस्तान में जब तक नवाज शरीफ जैसा सड़क छाप किस्म का इंसान प्रधानमंत्री है और राहील शरीफ जैसा भारत से निजी खुंदक रखने वाला सेना का चीफ है, तब तक भारत को सतर्क रहना ही होगा. दोनों घोर भारत विरोधी हैं. बस, दोनों के नामों में “शरीफ” आना संयोग मात्र ही माना जाएगा. उरी हमले के बाद कायदे से दोनों को अपने देश में चल रहे आंतकी शिविरों को ध्वस्त करना चाहिए था. पर बेशर्मी की हद देखिए, कि दोनों ही भारत को कोसते रहे. नवाज शरीफ ने संयुक्त राष्ट्र में उरी की घटना के लिए कश्मीर में बुरहानवानी की मौत के बाद पैदा हुए हालातों को जिम्मेदार घोषित कर दिया.

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'पाकिस्तान भारत से एक हजार साल तक दो-दो हाथ करने की ताकत रखता है'- राहील शरीफ

उधर, राहील शरीफ बार-बार कहते रहे हैं कि उनका देश भारत से एक हजार साल तक दो-दो हाथ करने की ताकत रखता है. नवाज शरीफ के कई मंत्री भी युद्धोन्माद का माहौल बनाते रहते हैं. क्या जिस देश के लाहौर और कराची जैसे शहरों में रोज दस-दस घंटे बिजली न आती हो, जहां बेरोजगारी लगातार संक्रामक बीमारी की तरह फैल रही हो और जिधर विदेशी निवेश भी नाम के लिए ही आता हो, वह देश भारत जैसी विश्व शक्ति से लड़ने के लिए क्या तैयार हो सकता है? कतई नहीं. दरअसल पाकिस्तान युद्ध के लिए तैयार नहीं है. हां, वह बंदरभभकी जरूर दिखाता है. नवाज शरीफ की पूरी राजनीति ही भारत विरोध पर टिकी है.

नवाज शरीफ के लिए कहा जाता है कि इनके लिए इनका परिवार ही पाकिस्तान है. इनका बड़ा औद्योगिक घराना भी है. ये जनता को झूठे सब्जबाग दिखा कर ही पिछले संसद का भी चुनाव जीते थे. कायदे से नवाज शऱीफ को देश की अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए सघन प्रयास करने चाहिए थे. लेकिन, उनसे यह हो न सका, या उन्होंने इसके लिए प्रयास ही नहीं किए. पाकिस्तान में मुद्रास्फीति से अवाम का बुरा हाल है और विकास की रफ्तार भी लगातार घट रही है. ग्रोथ रेट 3 फीसद से नीचे चल रही है. इसके बावजूद नवाज शरीफ और राहील शरीफ जंग के मैदान में उतरना चाहते हैं. वे भूल गए कि जंग होने की हालत में पाकिस्तान की जनता तो भूखों मर जाएगी. लेकिन, गैर-जिम्मेदारी का आलम ये है कि वे फिरभी भारत से युद्ध करने के लिए अपने को तैयार बताते हैं.

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नवाज शरीफ ने कभी अपने मुल्क के अल्पसंख्यकों के हक में कभी कोई कदम नहीं उठाया

नवाज शरीफ महज एक सड़कछाप किस्म के इंसान हैं. किन्तु अपने भाग्य की खा रहे हैं. वे युगदृष्टा तो छोड़िए, प्रखर वक्ता तक नहीं हैं. उनसे बेहतर वक्ता तो बेनजीर भुटटो थीं. इमरान खान भी उनसे कई मामलों में बेहतर ही नजर आते हैं. इन दोनों शरीफों ने (माफ करें बदमाशों ने) कभी अपने मुल्क के अल्पसंख्यकों के हक में कभी कोई कदम नहीं उठाया. भरपूर दमन जरूर किया. पाकिस्तान में सुन्नियों के अलावा सब असुरक्षित हैं. सब मारे जा रहे हैं. शिया, अहमदिया, ईसाई, सिख, हिन्दू भी. लाहौर से लेकर पेशावर तक ईसाई मारे जा रहे हैं.

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सेना में अल्पसंख्यकों की तो क्या शिया मुसलमान भी बहाल नहीं होते. विभिन्न देशों में बसे पाकिस्तानी तक अपने देश में वापस जाने से पहले दस बार सोचते हैं. मुझे हाल ही में अपनी लंदन यात्रा के दौरान एक नौजवान पाकिस्तानी वकील मिला. कहने लगा कि, वह पाकिस्तान जाने से डरता है. वहां पर कभी भी, किसी का भी कत्ल हो जाता है. एक दौर में नवाज शरीफ दावा करते थे कि इस्लाम और मुल्क के संविधान के मुताबिक, अल्पसंख्यकों को जिंदगी के सभी क्षेत्रों में मुसलमानों के बराबक हक मिलता रहेगा. लेकिन वे सारे वादे धूल में मिल चुके हैं. वहां पर गैर-मुसलमानों के लिए सामाजिक दायरा घटता जा रहा है. उनकी आबादी तेजी से घट रही है. किसी भी सरकार ने उनके हक में बड़े कदम नहीं उठाए. उदाहरण के रूप में पाकिस्तान की पहली कैबिनेट के हिन्दू सदस्य जोगेन्द्र नाथ मंडल और मुल्क का तराना लिखने वाले जगन्नाथ आजाद अंतत: मजबूरी में पाकिस्तान को छोडऩा पड़ा था. इससे अंदाजा लगा सकते हैं कि वहां पर अल्पसंख्यक कहां खड़े हैं. राहील शरीफ की भारत से खुंदक तो एक मिनट के लिए समझ आती भी है. उनके अपने अग्रज 1971 की जंग में भारतीय सेना के हाथों मारे गए थे. इसीलिए, वे कश्मीर के पत्थर फेंकने वाले प्रदर्शनकारियों के हक में बोलते हैं.

खैर, भारतीय सेना के ताजा एक्शन से इन दोनों कथित शरीफों को भी जन्नत की हकीकत समझ आ गई होगी.

लेखक

आर.के.सिन्हा आर.के.सिन्हा @rksinha.official

लेखक वरिष्ठ संपादक, स्तभकार और पूर्व सांसद हैं.

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