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Updated: 14 सितम्बर, 2018 06:30 PM
गिरिजेश वशिष्ठ
गिरिजेश वशिष्ठ
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ज्यादा डीटेल में जाने से पहले सवाल ये उठता है कि माल्या संसद में पहुंचा कैसे, उसकी हैसियत सेन्ट्रल हॉल में जाने की कैसे बनी. तो जवाब मिलेगा कि वो राज्यसभा का सदस्य था और उस हैसियत से संसद में था. लेकिन ये राज्यसभा की सदस्यता उसे कैसे मिली. उसने कोई जनहित का काम किया ? उसने देश की प्रगति में कोई योगदान किया ? देश के लिए कोई बलिदान दिया ? (कुछ लोग उल्टे सीधे तरीके से पैसे बनाने और उद्योग खड़े कर देने को आजकल देश सेवा करार देने की कोशिश कर रहे हैं, मैं उनकी बात नहीं कर रहा.)

हकीकत कड़वी है लेकिन उसने संसद की सदस्यता खरीदी. बाकायदा मोटे पैसे खर्च करके वो संसद में गया. वो उन सैकड़ों राज्यसभा सदस्यों में से एक है जो हर दो साल में चुनकर आते हैं और साबित करते हैं कि इस देश की संसद की सदस्यता अपरोक्ष रूप से बिकाऊ है.

vijay mallyaबीजेपी के विधायकों ने विजय माल्या के पक्ष में वोट किया

जब विजय माल्या संसद पहुंचे तो बाकायदा बीजेपी के विधायकों ने उनके पक्ष में वोट किया. यानी क्रॉस वोटिंग. हर पार्टी के विधायक राज्यसभा चुनाव में बिकते हैं और बाकायदा ये अखबारों में छपता है और हम सब जानते हैं. यानी लोकतंत्र बिके हुए लोग हर दो साल बाद माल्या जैसे लोगों की झोली में डाल देते हैं. माल्या जब पहली बार राज्यसभा में गए थे तो अखबारों ने लिखा कि उन्होंने 46 वोट पाने के लिए 11 अरब पचास करोड़ रुपये बांटे. सभी 46 लोगों को 25 करोड़ देकर खरीदा गया.

लेकिन बात सिर्फ इनके संसद पहुंचने की नहीं है. ये लोग वहां जाकर नेटवर्किंग करते हैं. सौदे करते हैं. ये भारत जैसे लोकतंत्र में कितनी चिंता की बात है कि एक उद्योगपति पैसे के दम पर राज्यसभा जाता है या अपने किसी गुर्गे को पहुंचा देता है. वो उद्योगपति खुद अपने धंधे से जुड़े मंत्रालय की स्थायी समिति में सदस्य बन जाता है और नीतियां बनाता है. विजय माल्या खुद एवियेशन की स्टैंडिंग कमिटी का सदस्य था और बाकायदा इस क्षेत्र को लेकर सरकारी नीतियां बनाने का अधिकार रखता था. उसने घरेलू उड़ानों में बीयर परोसने का प्रस्ताव रखा. उसके समय में वो नियम बदला गया जिसके तहत वही एयरलाइन अंतर्राष्ट्रीय उड़ाने भर सकती है जिसके पास पांच साल का अनुभव हो और कम से कम 20 विमान हों. किंग फिशर ने नियम बनाया और अपने विमान में बीयर परोसना शुरू कर दिया.

विजय माल्या चूंकि विषय है वर्ना कैसे फार्मास्यूटिकल कंपनियों के लोग देश की स्वास्थ्य नीति बनाने में दखल रखते हैं. कैसे और कैसे नीति नियंताओं का conflict of interest होता है.

लोग बनाना रिपब्लिक को सिर्फ मुहावरा मानते हैं उन्हें इस उदाहरण से अंदाज़ा लग गया होगा कि हम किसी भी तरह से बनाना रिपब्लिक की परिभाषा से बाहर नहीं हैं.

vijay mallyaविजय माल्या एवियेशन की स्टैंडिंग कमिटी का सदस्य था और बाकायदा इस क्षेत्र को लेकर सरकारी नीतियां बनाने का अधिकार रखता था

सिर्फ नीति निर्माण ही नहीं. हाल ही में मोदी सरकार ने एक और नीति बनाई है. इस नीति के तहत बड़े कॉर्पोरेट हाऊस के अफसरों को आईएएस वाली पोस्ट पर रखा जा सकेगा. यानी यहां भी उद्योगपितों की बैकडोर एंट्री.

ब्यूरोक्रेसी में लेटरल एंट्री का ये प्रस्ताव मोदी सरकार ने पास किया है लेकिन 2005 से लगातार इसे लागू करने की कोशिशें हो रही थीं. बताया जाता है कि देश के सबसे बड़े और बदनाम उद्योगपतियों में से एक लगातार तभी से इस फैसले को लागू कराने के पीछे कोशिशें कर रहे थे.

शुरुआती पहल के अनुसार अभी सरकार 10 मंत्रालयों में एक्सपर्ट जॉइंट सेक्रटरी को नियुक्त करेगी. ये 10 मंत्रालय और विभाग हैं- फाइनैंस सर्विस, इकनॉमिक अफेयर्स, ऐग्रिकल्चर, रोड ट्रांसपोर्ट, शिपिंग, पर्यावरण, रिन्यूअबल एनर्जी, सिविल एविएशन और कॉमर्स. इन मंत्रालयों और विभागों में नियुक्ति कर विशेषज्ञता के हिसाब से ही पोस्टिंग होगी.

यानी अईएएस की परीक्षा देने के लिए दिन रात एक करने वाले विद्यार्थियों को एक और चोट, दुर्भाग्य से आरक्षण का विरोध करने वालों की नज़र इस आरक्षण पर कभी जाती ही नहीं जो लगातार चल रहा है. नोटों की दम पर रिजर्वेशन.

बहरहाल इस हमाम में सभी नंगे हैं. सब खेल में लगे हैं. बड़े पदों पर बैठे लोग, बड़े उद्योगपति, बड़े नेता सब एक दूसरे से मिले हुए हैं. एक दूसरे के हितों का खयाल रखते हैं. ये देश का दोहन कर रहे हैं. टाटा राडिया केस के टेप सामने आते हैं तो बाकायदा देश की सबसे बड़ी अदालत उन्हें जनता से छिपाने का आदेश देती है. उसके बाद वो टेप नष्ट करने का आदेश होता है. यानी बड़े मतलब सभी बड़े किसी भी तंत्र के हों, लोकतंत्र के किसी भी स्तंभ से आते हों. सभी एक दूसरे के बारे में सोचते हैं. जनता को झुनझुना थमया जाता है क्योंकि संविधान में लिखा है कि सरकार वोट से बनती है.

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लेखक

गिरिजेश वशिष्ठ गिरिजेश वशिष्ठ @girijeshv

लेखक दिल्ली आजतक से जुडे पत्रकार हैं

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