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Updated: 24 अगस्त, 2016 08:56 PM
आशुतोष शुक्ला
आशुतोष शुक्ला
  @ashutosh.shukla.90
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दरअसल बलूचिस्तान की जड़ें भारत विभाजन से जुडी हुई हैं. विभाजन में तय हुआ कि भारत और पाकिस्तान दो अलग राष्ट्र होंगे. लेकिन उन रियासतों को लेकर कोई सीधा फैसला नहीं हुआ जो ब्रिटिश साम्राज्य के आधीन तो थी पर उनपर ब्रिटिश हुकूमत का सीधा शासन नहीं था. ऐसी रियासतें अपने आंतरिक फैसले लेने के लिए स्वतंत्र थी और कुछ संधियों के तहत ब्रिटिश साम्राज्य का हिस्सा थी. बलूचिस्तान (कलात,  खारान, लॉस बुला, मकरान) ऐसी रियासत थी जिस पर ब्रिटिश साम्राज्य का सीधा शासन नहीं था. इन रियासतों को ये अधिकार दिया गया कि ये भारत और पाकिस्तान दोनों में से किसी भी देश के साथ विलय कर सकती हैं या फिर स्वयं को स्वतंत्र राष्ट्र घोषित कर सकते है. यही से समस्या की शुरूआत होती है.

मकरान, लास बेला और ख़रान ने तो मोहम्मद अली जिन्ना के दबाव में पाकिस्तान में अपना विलय कर लिया लेकिन कलात के खान मीर अहमद ख़ान ने ख़ुद को स्वतंत्र घोषित कर दिया. मार्च 1948 को पाकिस्तानी सेना ने कलात को जबरन पाकिस्तान में मिला लिया और खान ऑफ कलात मीर अहमद यार खान को जेल में डाल दिया.

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खान ऑफ कलात मीर अहमद यार ख़ान जिसने कि पाकिस्तान के निर्माण को लेकर उत्साह दिखाया था, जिन्ना को अपना कानून सलाहकार नियुक्त किया. ताकि वह ब्रिटेन के सामने अपना पक्ष रख सके. 1946 में जब कैबिनेट मिशन भारत आया तो उसने इस पक्ष को मजबूती से रखा कि उसकी संधि ब्रिटेश इंडिया साम्राज्य के साथ नहीं बल्कि सीधे ब्रिटिश क्राउन (वाइट हाल) के साथ थी. कैबिनेट मिशन इसका कोई कानूनी समाधान नहीं ढूंढ पाई और मामले को बिना सुलझाए छोड़ दिया. इसके बाद 4 अगस्त 1947 को दिल्ली में एक राउंड टेबल मीटिंग हुई जिसमें लॉर्ड माउंटबेटन, खान ऑफ कलात, चीफ मिनिस्टर ऑफ कलात और मोहम्मद अली जिन्ना मौजूद थे जिसमें जिन्ना ने उनका पक्ष रखा. मुलाकात में तय हुआ कि 5 अगस्त 1947 को कलात ब्रिटिश साम्राज्य से स्वतंत्र होगा. साथ ही खारान, लॉस बुला को कहा गया कि वे अपना विलय कलात में करे. साथ ही मारी और बुग्ती इलाके भी कलात में शामिल हो ताकि पूरा बलूचिस्तान कलात में शामिल हो सके.

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 खान ऑफ कलात मीर अहमद यार ख़ान

कलात का कानूनी दर्जा अन्य भारतीय प्रिंसली स्टेट्स से अलग था. जहां 560 भारतीय राज्य कैटेगरी A के तहत आते थे, वही कलात, सिक्किम और भूटान कैटेगरी B में शामिल थे. 1876 की संधि के अनुसार ब्रिटेन ने उन्हें आतंरिक स्वतंत्रता दे रखी थी, साथ ही आतंरिक मामलों में हस्तक्षेप ना करने का वादा भी था. वो कभी भी चेंबर ऑफ प्रिंसली स्टेट्स का सदस्य भी नहीं रहा. यही आधार था कि कलात भारत या पाकिस्तान दोनों में से किसी के साथ शामिल होने को मजबूर नहीं था. अंत में कलात के अंतिम शासक मीर अहमद खान ने दोनों देश से अलग एक स्वतंत्र राष्ट्र बनाने का फैसला किया. 15 अगस्त 1947 को पाकिस्तान के निर्माण के एक दिन बाद कलात ने स्वंय को एक स्वतंत्र राष्ट्र घोषित कर दिया. स्वतंत्रता की घोषणा के साथ ही खान ने कलात संसद के उच्च और निम्न सदन बनाए. कलात की नेशनल असेम्बली में 15 अगस्त 1947 को एक बैठक में यह निर्णय लिया गया कि कलात एक स्वतंत्र राष्ट्र होगा और पाकिस्तान के साथ उसका संबंध दोस्ताना रहेगा.

11 अगस्त 1947 को मुस्लिम लीग और कलात के बीच एक साझा घोषणा पत्र पर हस्ताक्षर भी हुए जिसमें माना गया कि कलात एक भारतीय राज्य नहीं है और उसकी अपनी एक अलग पहचान है और मुस्लिम लीग कलात की स्वतंत्रता का सम्मान करती है. कलात के खान जिनके की जिन्ना के साथ अच्छे संबंध थे और जिन्होंने मुस्लिम लीग को काफी आर्थिक मदद की थी. इन सबके बावजूद 1 अप्रैल 1948 को पाकिस्तानी सेना ने कलात पर हमला कर दिया और कलात के खान ने आत्मसमर्पण कर दिया और विलय के दस्तावेज पर हस्ताक्षर कर दिये. इसी के साथ ही 225 दिनों के आजाद कलात का पाकिस्तान में विलय हो गया. 

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इसके बाद खान के भाई प्रिंस अब्दुल करीम के नेतृत्व में पहला विद्रोह हुआ. लेकिन उन्हें भी जल्द गिरफ्तार कर लिया गया. लेकिन इतिहास में सबसे बड़ा मोड़ आया वो साल 1954 था जब पाकिस्तान के प्रधानमंत्री मोहम्मद अली बोगरा ने पाकिस्तान को वन यूनिट बनाने का फैसला किया. ईस्ट पाकिस्तान और वेस्ट पाकिस्तान और साल 1955 में अयूब खान ने इस पर मोहर लगा दी. वेस्ट पाकिस्तान के सभी स्टेट्स, प्रोविंसिज और कबिलाई इलाकों को मिलाकर वेस्ट पाकिस्तान बनाया गया. इन इलाकों के सारे अधिकार और स्वायत्ता छिन ली गई. बलूचिस्तान में इसका जबरदस्त विरोध हुआ. अक्टूबर 1957 में बलूच नेताओं ने पाकिस्तानी राष्ट्रपति इस्कन्दर मिर्ज़ा से मुलाकात कर कलात को वन यूनिट से बाहर रखने की मांग की. लेकिन अयूब खान ने ऐसा करने से मना कर दिया और इसके बाद वहां विद्रोह शुरू हो गया. 6 अक्टूबर 1958 को अयूब खान ने पाकिस्तानी आर्मी को बलूचिस्तान में भेज कलात के खान और उनके सहयोगियों को गिरफ्तार कर लिया. लेकिन खान के सहयोगी नवाब नवरोज खान ने संघर्ष जारी रखा लेकिन उन्हें भी जल्द गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया गया और नवरोज खान के बेटों और भतीजों को फांसी दे दी गई. नवरोज खान की भी जेल में रहने के दौरान मौत हो गई. इस पूरे संघर्ष में हजारों बलूच मारे गए.

इसके बाद साल 1973-74 में एक बार फिर बलूच और पाकिस्तान आर्मी के बीच संघर्ष हुआ जिसमें हजारों की संख्या में लोग मारे गए. 1971 के चुनाव में जहां पश्चिमी पाकिस्तान के सभी प्रांतों में पीपीपी की जीत हुई वही बलूचिस्तान और एनडब्लूएफपी (North-West Frontier Province) में नेशनल अवामी पार्टी की जीत हुई जो कि नेशनलिस्ट बलूचों की पार्टी थी. बलूचों पर आरोप लगे कि वो ईरान के साथ मिलकर एक बड़ा संघर्ष करने वाले है नतीजतन वहां की सरकार को बर्खास्त कर दिया गया और जनरल टिक्का खान को बलूचिस्तान भेजा गया. पाकिस्तान 1971 की घटना से उभर नहीं पाया था और उसने बलूच आंदोलनकारियों पर बड़ी ही सख्ती से कार्रवाई की. वहां लगभग 80 हजारों पाकिस्तानी सैनिकों को भेजा गया और बलूचों पर हवाई हमले भी किये. बलूचिस्तान की तरफ जाने वाले सभी रास्ते बंद कर दिये गए. ज्यादातर बलूच नेता अफगानिस्तान भाग गए. ये 60 के दशक में हुए विद्रोह से काफी बड़ा था.

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 1973-74 में एक बार फिर बलूच और पाकिस्तान आर्मी के बीच संघर्ष हुआ जिसमें हजारों की संख्या में लोग मारे गए

इसके बाद साल 2005 में बलूच नेता नवाब अकबर खान बुग्ती और मीर मार्री ने पाक सरकार के सामने 15 सूत्री मांग रखी. जिसमें प्रांत के संसाधनों पर ज्यादा नियंत्रण और सैनिक ठिकानों के निर्माण पर रोक जैसे मुद्दे शामिल थे. इनकी यह मांग खारिज कर दी गई और संघर्ष चलता रहा. अगस्त 2006 में 79 साल के अकबर बुग्ती की सेना से मुठभेड़ में मौत हो गई. इसी संघर्ष में 60 पाकिस्तानी सैनिक और 7 अधिकारियों की भी मौत हो गई. बुग्ती की हत्या कराने का इल्ज़ाम परवेज़ मुशर्फ के ऊपर लगा हुआ है. इस घटना के कुछ दिन बाद सशस्त्र आंदोलनकारियों द्वारा परवेज मुशर्रफ के ऊपर राकेट से हमला किया गया जिसमें वे बाल-बाल बचे.

1948 से लेकर आज तक बलूच का विद्रोह जारी है. बलूच का मानना है कि वो पूर्व में एक स्वतंत्र राष्ट्र थे और सामाजिक और सांस्कृतिक रूप से वो एक अलग पहचान रखते है. पाकिस्तान ने कलात के खान से बंदूक की नोंक पर विलय करवाया. आज बलूचिस्तान में हजारों बलूच लड़ाके पाकिस्तानी सेना के खिलाफ लड़ रहे है. बलूचिस्तान के लोग चाहते है कि भारत मामले में दखल दे जिस तरह उसने बांग्लादेश के मामले में किया था. लेकिन भारत अभी तक इसे पाकिस्तान का आंतरिक मामला मान चुप बैठा था. लेकिन लालकिले की प्राचीर से नरेंद्र मोदी द्वारा बलूचिस्तान का जिक्र आने के बाद लगता है कि भारत ने अपनी रणनीति बदली है. इससे बलूच लोगों में भी एक बार फिर आशा जगी है कि वो भारत की मदद से अपना हक पा सकेंगे.

लेखक

आशुतोष शुक्ला आशुतोष शुक्ला @ashutosh.shukla.90

लेखक आजतक में प्रोड्यूसर हैं

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