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Updated: 16 अगस्त, 2016 01:37 PM
अशोक उपाध्याय
अशोक उपाध्याय
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भारत के 70वें स्वतंत्रता दिवस के मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लाल किले की प्राचीर से देश को संबोधित करते हुए 90 मिनट का लंबा भाषण दिया. लोगों को आशा थी की प्रधानमंत्री अपने भाषण में कश्मीर घाटी के हालात पर कुछ बोलेंगे. पर उन्होंने इसके बारे में एक शब्द भी नहीं बोला. वो बोले बलूचिस्तान, पाक अधिकृत कश्मीर और गिलगित-बल्तिस्तान के बारे में. पिछले तीन दिनों में दूसरी बार उन्होंने बलूचिस्तान का मुद्दा उठाया. आखिर क्या कारण है की वह बलूचिस्तान पर बोले रहे हैं लेकिन कश्मीर पर वह चुप हैं?

घाटी में हिजबुल कमांडर बुरहान वानी की मौत के बाद हिंसा का माहौल है और पिछले 38 दिनों से कर्फ्यू लगा हुआ है. कश्मीर की अशांति में हर जगह पाकिस्तान का हाथ दिखाई दे रहा है. भारत के स्वतंत्रता दिवस से एक दिन पहले, 14 अगस्त को पाकिस्तान का स्वतंत्रता दिवस था. पूरे घाटी में जगह जगह पाकिस्तानी झंडे फहराये गए. पिछले 38 दिनों से जगह जगह पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे और बुलंदी से लगाए जा रहे हैं. पाकिस्तान ने न केवल बुरहान वानी को शहीद घोषित किया बल्कि वहां 19 जुलाई को ब्लैक डे भी मनाया गया.

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कश्मीर के ख़राब हालात बता रहे हैं कि पाकिस्तान अपने उद्देश्य, जो की घाटी के लोगों को भारत के खिलाफ उकसाना है, में सफल हो रहा है. नरेंद्र मोदी एवं महबूबा मुफ़्ती की सरकार हालात को सामान्य करने में अभी तक विफल रही है. यह ये भी दर्शा रहा है की प्रधान मंत्री की कश्मीर एवं पाकिस्तान नीति अभी तक सफल नहीं हो पाई.

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 प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी

अभी तक नरेंद्र मोदी की पाकिस्तान नीति कभी प्यार-भाईचारा तो कभी तकरार की रही है. पर पिछले 3 दिनों में दो बार बलूचिस्तान का मुद्दा उठाकर उन्होंने इस नीति को एक नया आयाम दिया है. अब उन्होंने इसको तकरार से टकराव की तरफ मोड़ दिया है. उन्होंने बलूचिस्तान के लोगों को ना केवल नैतिक समर्थन दिया है बल्कि पाकिस्तान को भी ये जता दिया है कि भारत के आतंरिक मामलों में हस्तक्षेप का जबाब पाकिस्तान के आंतरिक मामले में हस्तक्षेप से दिया जायेगा.

लेकिन इस आक्रामक रुख की वजह क्या है?

बीजेपी ने 2014 के लोक सभा चुनाव में बड़े बड़े वादे - जैसे भ्रष्टाचार एवं महंगाई खत्म करने, विदेशों से कालाधन लाने, युवाओं को रोजगार देने, किसानों को कृषि उपज पर लागत का डेढ़ गुना समर्थन मूल्य देने, किसानों की आत्महत्या रोकने - करके वोट बटोरे. लेकिन अभी तक लोगों की अपेक्षाओं पर खरी नहीं उतरी. हाल में हुए विधान सभा चुनावों में असम के अलावा लगभग हर जगह ये लोक सभा के प्रदर्शन को दोहरा नहीं पाई. आने वाले विधान सभा चुनाओं में अच्छे प्रदर्शन की उम्मीद भी नहीं है. गुजरात में भी भाजपा की हालत पस्त है.

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हिंदूवादी संगठनों द्वारा उठाये जाने वाले मुद्दे जैसे लव जेहाद, घर वापसी, इनटॉलरेंस एवं राष्ट्रीयता ना केवल अल्पसंख्यकों के मन में डर पैदा कर रहा है बल्कि उन लोगों का भी मोदी सरकार से मोह भंग करा रहा है जिन्होंने विकास के नाम पे वोट दिया था. रोहित वेमुला एवं उना की घटनाओं ने दलितों के एक बड़े वर्ग को भाजपा विरोधी बना दिया.

नरेंद्र मोदी अभी तक अपनों वादों पर खरे नहीं उतरे हैं. समाज बंटा हुआ है. अभी की स्थिति में अगर लोकसभा चुनाव हुआ तो भाजपा का जीतना मुश्किल हो जायेगा. पाकिस्तान से टकराव एक ऐसा मुद्दा है जो न केवल लोगों को एक साथ लाकर खड़ा कर देगा बल्कि वो भी मोदी को समर्थन दे सकते हैं जो सामान्य परिस्थिति में ऐसा नहीं करते. 1999 लोक सभा चुनाव में अटल बिहारी वाजपेयी की जीत की एक बड़ी वजह थी पाकिस्तान के साथ कारगिल की लड़ाई.

लेखक

अशोक उपाध्याय अशोक उपाध्याय @ashok.upadhyay.12

लेखक इंडिया टुडे चैनल में एडिटर हैं.

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