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Updated: 19 जुलाई, 2015 12:51 PM
विनीत कुमार
विनीत कुमार
  @vineet.dubey.98
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गजेंद्र चौहान को फिल्म एंड टेलीविजन इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (FTII) का प्रमुख बनाए जाने पर रार जारी है. FTII छात्र आर-पार की लड़ाई के मूड में हैं. जबकि धर्मराज गजेंद्र चौहान वर्षों के वनवास और अज्ञातवास के बाद मिली गद्दी छोड़ना नहीं चाहते. संधि की सारी कोशिशें बेकार होती दिख रही हैं. नहीं मालूम, इस विवाद का नतीजा क्या होगा. लेकिन 'कुरुक्षेत्र' में दोनों ओर से सेनाएं सज गई हैं और अब तो 'गीता का ज्ञान' भी आ आया है. आरएसएस ने कहा है कि जो गजेंद्र चौहान का विरोध कर रहे हैं वे एंटी-हिंदू यानि हिंदुओं की मुखालफत करने वाले लोग हैं. ऐसा ज्ञान तो उस महाभारत में भगवान कृष्ण ने भी नहीं दिया था. यह और बात है कि वहां भी गजेंद्र या कहें युधिष्ठिर को ही गद्दी देने से कौरव इंकार कर रहे थे. अब इसे गजेंद्र चौहान की किस्मत कह लीजिए या कुछ और....   

FTII से हिंदुत्व का कैसा रिश्ता!

RSS इस पूरे विवाद को हिुंदूत्व से जोड़ने की कोशिश क्यों कर रहा है? यह कैसा तर्क है और इससे क्या हासिल होगा? RSS ने अपने मुखपत्र ऑर्गनाइजर में यह भी लिखा है कि गजेंद्र का विरोध करने वाले लोग मानसिक तौर पर विक्षिप्त हैं. आरएसएस के अनुसार गजेंद्र की नियुक्ति के फैसले के बाद 'एंटी हिंदू' गुटों ने वही किया जिसमें वे सबसे अच्छे हैं. आरएसएस ने साथ ही गजेंद्र चौहान के 150 फिल्मों और 600 से ज्यादा टीवी सीरीयलों का हवाला देते हुए सबसे अच्छा उम्मीदवार बता दिया.  

दरअसल, FTII का मुद्दा भले ही बॉलीवुड या देश के कुछ बुद्धिजीवियों के लिए बड़ा हो लेकिन सच्चाई यह है कि आम लोगों के लिए इसके कोई खास मायने नहीं हैं. इसका कारण है. कहने को FTII देश की प्रतिष्ठित संस्थानों में शामिल है लेकिन हमने कभी उसे IIT या MBA टाइप वाले इंस्टीट्यूट का दर्जा नहीं दिया. कई ऐसे लोग होंगे जिन्होंने इस विवाद से पहले FTII का नाम तक नहीं सुना होगा. हमारे यहां फिल्मों को लेकर एक दिवानगी तो है लेकिन इसकी समझ समाज में अब बन रही है. आरएसएस शायद इसी नब्ज को पकड़ने की कोशिश में है. RSS को उम्मीद है कि हिंदुत्व के साथ इस विवाद को जोड़ने के साथ ही एक खास किस्म की जिज्ञासा और लोगों का साथ उसे मिल सकता है.   

दोनों पक्ष हैं बराबर जिम्मेदार

FTII, जहां से हिंदी फिल्म जगत को कई बड़े कलाकार, निर्देशक, कैमरामैन आदि मिले हैं, उसका नाम आज अगर किसी एक धर्म या संप्रदाय से जोड़ने की कोशिश हो रही है तो इसका श्रेय दोनों पक्षों को बराबर मिलना चाहिए. विरोध करने वालों को भी और पक्ष में खड़े गुट को भी. गजेंद्र के बहाने दोनों ओर से राजनीति हो रही है. अगर गजेंद्र किसी विरोध या हाई प्रोफाइल ड्रामे के बगैर FTII के प्रमुख पद की कुर्सी संभाल लेते तो क्या हो जाता. कम से कम उनके मैनेजेरियल स्किल का तो पता चलता. शायद वह बेहद काबिल या फिर फिसड्डी साबित होते. फिर उस विरोध का कारण ठीक-ठीक समझा जा सकता था. जिसने अपने पद पर काम ही नहीं किया हो, उसे लेकर क्या टिप्पणी की जाए. दरअसल, गजेंद्र के विरोध का बड़ा कारण बी या सी ग्रेड की फिल्में नहीं उनके आरएसएस और बीजेपी से जुड़ाव को लेकर है.

उनके नाम को अगर राजू हिरानी, विधु विनोद चोपड़ा या किसी और बड़े नाम के आगे तवज्जो दी गई तो इसका कारण उनका केंद्र में सत्ताधारी बीजेपी से जुड़ाव है. मान लेते हैं ऐसा हुआ है. पर इस बारे में आखिरी निर्णय सरकार को ही करना पड़ता है. ऐसे में बेहतर होता कि कुछ मौका गजेंद्र को भी दिया जाता. जहां तक विचारधारा की लड़ाई है तो जनाब FTII या JNU को ही ले लीजिए. यह हर जगह है. यह बात तो किसी से छिपी नहीं है कि महान फिल्म निर्देशक मृणाल सेन मार्क्सवाद के बड़े समर्थक रहे हैं. ऐसे ही पैरलल सिनेमा के काल की पीढ़ी के कई और लोग कम्यूनिस्ट सोच के रहे हैं. तो इससे क्या हो गया? आज की फिल्मों में आपको मार्क्सवाद..समाजवाद दिखता है क्या? सब अपनी पसंद और मर्जी के अनुसार फिल्में बनाते हैं. इन पूर्व FTII प्रमुखों ने अपनी सोच तो कभी संस्थान पर नहीं थोपी. ऐसी ही उम्मीद गजेंद्र चौहान से भी हम और आप कर ही सकते हैं. लेकिन इसके लिए जरूरी है कि उन्हें मौका दिया जाए.

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लेखक

विनीत कुमार विनीत कुमार @vineet.dubey.98

लेखक आईचौक.इन में सीनियर सब एडिटर हैं.

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