उद्धव की सेक्युलर सरकार के लिए पहली मुसीबत नागरिकता बिल ही है
उद्धव ठाकरे ने शिवसैनिक को महाराष्ट्र का मुख्यमंत्री बनाने की जिद तो पूरी कर ली, लेकिन उसका राजनीतिक खामियाजा कुर्सी पर मंडराने लगा है. नागरिकता संशोधन बिल (Citizenship Amendment Bill) पर शिवसेना के सपोर्ट को लेकर कांग्रेस उद्धव ठाकरे से सफाई मांगने वाली है.
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उद्धव ठाकरे को कुर्सी संभाले अभी 10 दिन भी नहीं हुए हैं - और मुसीबतें हैं कि दस्तक देने लगी हैं. सबसे ताजा मुसीबत तो नागरिकता संशोधन बिल (Citizenship Amendment Bill) ही बन पड़ा है.
नागरिकता संशोधन विधेयक पर महाराष्ट्र की उद्धव ठाकरे सरकार में टकराव शुरू हो गया है - और इसकी वजह है बिल को शिवसेना के सपोर्ट का ऐलान. शिवसेना का ये कदम कांग्रेस खेमे में सेक्युलर भावनाओं पर बनी सहमति के खिलाफ समझा जा रहा है.
कांग्रेस सूत्रों के हवाले से मीडिया में आयी खबर से बताती कि कांग्रेस और एनसीपी इसी मुद्दे पर शिवसेना को कोई छूट देने के मूड में नहीं हैं - और वाकई अगर इससे उद्धव ठाकरे परेशान होते हैं तो यही बात अमित शाह और देवेंद्र फडणवीस के पक्ष में जाती है.
नागरिकता बिल के लपेटे में उद्धव सरकार
नागरिकता संशोधन बिल (Citizenship Amendment Bill) बीजेपी के चुनावी वादों में से एक रहा है - और केंद्र की मोदी सरकार की इसके पीछे एक दूरगामी सोच भी है, लेकिन अमित शाह को इसमें तात्कालिक फायदा भी मिल रहा है - और वो सिर्फ आने वाले विधानसभा चुनाव नहीं हैं.
Citizenship Amendment Bill का सबसे बड़ा तात्कालिक फायदा बीजेपी नेतृत्व को महाराष्ट्र में होता नजर आ रहा है. ज्यादा कुछ हो न हो - उद्धव ठाकरे के लिए इतनी मुश्किलें तो पैदा हो ही रही हैं कि वो डिस्टर्ब हो जायें.
अभी नागरिकता बिल संसद भी नहीं पहुंचा है कि शिवसेना अपने प्रवक्ता संजय राउत के एक बयान से मुश्किलों में घिरने लगी है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कैबिनेट की नागरिकता संशोधन बिल (CAB) को मंजूरी मिलने के बाद संजय राउत ने साफ तौर पर कहा था कि राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े मुद्दों पर शिवसेना का सपोर्ट जारी रहेगा और इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि केंद्र की सत्ता किस राजनीतिक दल के पास है.
उद्धव ठाकरे की राह में कांग्रेस नेता रोड़े अटकाने लगे हैं, लेकिन लेकिन तभी तक जब तक सरकार है!
अब खबर आयी है कि कांग्रेस नेता इस सिलसिले में महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे से बात करने की तैयारी कर रहे हैं. कांग्रेस का कहना है कि नागरिकता संशोधन विधेयक पर शिवसेना का स्टैंड महाविकास अघाड़ी सरकार के कॉमन मिनिमम प्रोग्राम (CMP) का सीधा सीधा उल्लंघन है.
Congress Sources: In the Common Minimum Program (of Congress-NCP-Shiv Sena) it was decided that stand on national issues (Citizenship Amendment Bill) will be taken after consensus. Congress will talk to Uddhav Thackeray over it. pic.twitter.com/lpWUhku5dV
— ANI (@ANI) December 5, 2019
कांग्रेस नेता अब उद्धव ठाकरे से मिल कर कॉमन मिनिमम प्रोग्राम में तय चीजों की ओर ध्यान दिलाने की कोशिश करेंगे. कांग्रेस बताना चाहती है कि साझा कार्यक्रम में साफ तौर पर तय हुआ है कि राज्य ही नहीं राष्ट्रीय स्तर के मुद्दों पर भी आम सहमति के बाद ही कोई कदम उठाया जाएगा.
निश्चित तौर पर शिवसेना और कांग्रेस-एनसीपी के बीच सरकार बनाने पर सहमति इसी शर्त पर आखिरी शक्ल ले सकी कि सरकार सेक्युलर भावनाओं के साथ काम करेगी. ऐसे में शिवसेना का ये स्टैंड तो वास्तव में तीनों दलों के बीच बनी आम सहमति के खिलाफ जाती है.
सोनिया गांधी की अगुवाई में कांग्रेस की ही तरह शरद पवार की NCP ने भी केंद्र सरकार के नागरिकता संशोधन बिल का विरोध किया है. बिल का विरोध करने वालों में ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस भी शामिल है.
उद्धव की नींव ही मुसीबतों पर रखी हुई है
ये तो उद्धव ठाकरे को भी बखूबी मालूम है कि गठबंधन की सरकार चलाने के लिए क्या समझौते करने हैं. वैसे भी उद्धव ठाकरे अटल बिहारी वाजपेयी या मनमोहन सिंह जैसी सरकार नहीं चला रहे हैं - बल्कि उनसे कहीं ज्यादा कड़े नियमों तले बंधी सरकार की अगुवाई कर रहे हैं. गठबंधन सरकार चलाने को लेकर जो पीड़ा वाजपेयी या मनमोहन सिंह साझा कर चुके हैं, उद्धव की चुनौतियां उनके मुकाबले काफी ज्यादा हैं.
गठबंधन सरकार चलाने के लिए समझौता बीजेपी को भी करना पड़ा था. हिमाचल प्रदेश में हुई बीजेपी कार्यकारिणी में अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए आंदोलन को लेकर राजनीतिक प्रस्ताव लाया गया था - लेकिन जब चुनाव लड़ने के लिए एनडीए बना तो बीजेपी को मंदिर मुद्दा चुनाव घोषणा पत्र से अलग करना पड़ा था. चुनावी रैलियों में बीजेपी नेता राम मंदिर को लेकर चाहे जितने भी जोशीले भाषण देते रहे हों या बाबरी मस्जिद केस में चाहे बीजेपी के कितने ही नेता क्यों न मुकदमे झेल रहे हों - बीजेपी अदालत के फैसले के साथ जाने के आधिकारिक स्टैंड पर ही कायम रही. बहरहाल, अब तो सुप्रीम कोर्ट से फैसला भी वैसा ही आ चुका है जिसकी बीजेपी को दरकार रही. ये बात अलग है कि झारखंड चुनाव में बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह राम मंदिर पर अदालत के फैसले पर भी वैसा ही भाषण दे रहे हैं जैसे बीजेपी का भी कोई योगदान हो.
महाविकास अघाड़ी सरकार के साझा कार्यक्रम की जो नींव पड़ी उसी में उद्धव ठाकरे को कई सारे समझौते करने पड़े. उद्धव ठाकरे चाह कर भी गठबंधन के नाम शिवसेना तो दूर शिव नाम भी नहीं जोड़ने पर साथी दलों को राजी कर सके. वीर सावरकर को भारत रत्न देने की बात और अल्पसंख्यक छात्रों के लिए कांग्रेस-एनसीपी का कार्यक्रम कबूल कर लेना कोई मामूली बात तो है नहीं. और तो और सबसे ज्यादा जोर सेक्युलर शब्द पर दिया जाना भी उद्धव ठाकरे के लिए समझौता ही रहा.
नागरिकता बिल से पहले भी एक कांग्रेस नेता ने ऐसी डिमांड रखी है जो उद्धव ठाकरे सरकार के लिए स्पीड ब्रेकर जैसा ही साबित हो सकता है. कांग्रेस के राज्य सभा सांसद हुसैन दलवई की मांग है कि महाराष्ट्र सरकार हिंदूवादी सनातन संस्था पर तत्काल पाबंदी लगा दे. दरअसल, नरेंद्र दाभोलकर हत्याकांड में जांचकर्ताओं ने शक की सूई सनातन संस्था पर ही उठायी और फिर केस भी दर्ज हो गया. अब हुसैन दलवई जनवरी, 2018 की हिंसा को लेकर संभाजी भिड़े सहित दो हिंदूवादी नेताओं को गिरफ्तार कर जेल भेजने की भी मांग कर रहे हैं. उद्धव ठाकरे सरकार की मुश्किल ये है कि संभाजी भिड़े जैसे हिंदूवादी नेता पर हाथ भी लगायें तो कैसे. मातोश्री से संभाजी को उद्धव ठाकरे ने बैरंग भले लौटा दिया हो, लेकिन उनके खिलाफ कोई एक्शन लेना वहां के राजनीतिक समीकरणों में फिट नहीं हो सकता.
सवाल ये है कि क्या सत्ता के लिए बनाये गये गठबंधन का सहयोगी होना किसी दल की राजनीतिक अभिव्यक्ति पर भी पाबंदी लगा देगा?
ऐसे देखा जाये तो शिवसेना ने एक नहीं बल्कि कई बार एनडीए में रह कर भी बीजेपी के बिलकुल उलट कदम उठाया है. राष्ट्रपति चुनाव में तो डंके की चोट पर शिवसेना ने कांग्रेस की अगुवाई वाले गठबंधन का सपोर्ट कर किया है.
कांग्रेस आखिर ये कैसे भूल सकती है कि जो शिवसेना एनडीए में रहते हुए यूपीए का सपोर्ट कर चुकी है वो एक राज्य की सरकार में उसके साथ शामिल होने के चलते अपना राजनीतिक स्टैंड भी खुद नहीं तय कर सकती?
कांग्रेस के सामने एनडीए गठबंधन ने तो और भी मिसाल पेश की है - नीतीश कुमार और रामविलास पासवान की पार्टी झारखंड विधानसभा चुनाव में बीजेपी के ही खिलाफ मैदान में दो दो हाथ कर रही हैं.
कांग्रेस और एनसीपी को भी ये नहीं भूलना चाहिये कि शिवसेना की बदौलत ही वे महाराष्ट्र की सत्ता में हिस्सेदार हो पायी हैं, वरना चुनावों में तो दोनों के सामने अस्तिव बचाने के लिए ही संघर्ष की नौबत आ पड़ी थी.
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