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Updated: 17 दिसम्बर, 2020 04:36 PM
आर.के.सिन्हा
आर.के.सिन्हा
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आजकल मुख्य रूप से पंजाब और आंशिक तौर पर हरियाणा के हजारों किसान आंदोलन (Farmer Protest) कर रहे हैं. कुछ नाम गिनाने भर के लिये कुछ स्वयंभू नेता पश्चिम उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) और उत्तराखंड (Uttarakhand) से भी हैं. इनकी अपनी कुछ मांगे हैं. सरकार उन पर विचार भी कर रही है. पर इस आंदोलन को समर्थन कुछ वे जाने-माने लोग भी कर रहे हैं जिन्होंने इनके बारे में पहले कभी नहीं सोचा और यदि सोचा तो अबतक नहीं बोला. इसी तरह से कुछ भ्रष्ट पुलिस अफसर और कुख्यात वामपंथी और अलगाववादी भी अपने को इनके साथ खड़ा करने की कोशिश कर रहे हैं. मजे की बात यह है कि कोई भी किसान नेता इन्हें कुछ कह भी नहीं रहा है. इसका तो यही मतलब निकाला जायेगा कि सबकुछ अंदरखाने मिलीभगत से ही हो रहा है.

Farmer Protest, Punjabi Farmer, Farmer, Modi Government, Prime Minister, Narendra Modiफार्म बिल 2020 के विरोध में दिल्ली की सीमाओं पर प्रदर्शन करते पंजाब और हरियाणा के किसान

किसानों का हितैषी भ्रष्ट पुलिस अफसर

पंजाब में एक पुलिस अफसर है लखमिंदर सिंह जाखड़, जो डीआईजी जेल के पद पर थे. उनके ऊपर रिश्वत व भ्रष्टाचार के कई मामले चल रहे थे. निलंबन भी हो चुका था. अब बस सरकारी नौकरी से बेदखली की प्रक्रिया भी पूरी ही होने वाली थी. तो उन्होंने सोचा क्यों न वे भी अपनी अंगुली कटा के शहीद ही हो जायें? उसने किसान आंदोलन की आड़ लेकर अपनी जाती हुई नौकरी से इस्तीफ़ा दे दिया और अंगुली कटा कर शहीद होने का दावा करने लग गया.

हालांकि, पता चला है कि उसका दूरगामी लक्ष्य राजनीति में हाथ आजमा कर लक्ष्मी मैया की और कृपा हासिल करना है. लखमिंदर सिंह जाखड़, फाजिल्का जिले के अबोहर के निवासी हैं। उसके कार्यकाल से जुड़ा एक दिलचस्प वाकया ये भी है कि जब जाखड़ पटियाला जेल के अधीक्षक थे, उस समय उन्होंने आतंकवादी बलवंत सिंह राजोआना का मृत्यु समन वापस लौटा दिया था.

उन्हें भ्रष्टाचार के आरोपों के कारण निलंबित भी किया गया था. जय हो ऐसे किसान हितैषियों की. ऐसे ही लोग जिनका किसानी से दूर-दूर का बास्ता नहीं रहा है इस आन्दोलन का नेतृत्व कर रहे हैं.

कभी किसानों के साथ रात बिताओ थरूर

अब किसानों के हक में कांग्रेस सांसद शशि थरूर भी सामने आ गए हैं. ये न जाने कब के किसान हो गये. कम से कम पिछले तीन पुश्तों से कोलकत्ता और मुंबई में ही पूरा जीवन बिताने वाले न जाने कब और कैसे किसान हो गये. ये भी किसानों और गरीबों के कल्याण के लिए ज्ञान बांटते फिर रहे हैं. इनसे अच्छे तो सलमान खान हैं, जिन्होंने कोविड-19 के दौरान सोनू सूद की तुलना में काफी कम, लेकिन कुछ किया तो सही.

क्या जनता को अब इन दोगले चरित्र के ज्ञान बांटने वालों से सावधान नहीं रहना चाहिए? तीन कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों के विरोध पर केंद्र पर निशाना साधते हुए, शशि थरूर ने कहा कि सरकार ने देश और किसानों को विफल कर दिया है. थरूर ने कहा, 'सरकार ने राष्ट्र और किसानों को विफल कर दिया है.

सरकार से परामर्श किए बिना कानून को इतनी जल्दबाजी में पारित क्यों किया?' थरूर जी, जरा ये बता दीजिए कि आपने अब तक किसानों के हक में क्या किया है? आप जंतर- मंतर पर कुछ देर बैठने के बाद लुटियन दिल्ली के अपने बंगले में चले गए. वहां पर आपने आराम से दिन बिताया. अगर आप सच में किसानों के हित में लड़ने वाले होते तो आप भी सिंघू बॉर्डर या टिकरी जैसे इलाकों में होते. इन्हीं इलाकों में ही तो किसान दिन-रात बैठे हैं.

आपको भी पंजाब के किसानों के साथ रात में सोना चाहिए था. आप कतई किसानों के बीच में नहीं जाएंगे. आप घनघोर सुविधाभोगी हैं. यही आप की पार्टी का भी चरित्र है. इसलिए गलती आपकी भी नहीं है. आपको सत्ता का सुख लेने और पंजीरी खाने की आदत पड़ी हुई है. इसलिए आपसे संघर्ष करने की अपेक्षा करना ही गलत होगा.

नकाब उठते किस-किसके

दरअसल इस आंदोलन में भारतीय किसान यूनियन के कुछ किसान भी हैं जो एक प्रकार से सांकेतिक रूप से ही आंदोलन में शामिल हैं. उनका उद्देश्य पंजाब के किसानों के साथ समर्थन दिखाना भर है. याद रहे कि किसान कानून बनते ही भारतीय किसान यूनियन विगत 4 जून को किसान बिल पारित होने को बहुत बड़ी उपलब्धि बता चुकी है. अध्यक्ष राकेश टिकैत ने तो यहां तक कह दिया था कि बिल पास होने से महेन्द्र सिंह टिकैत की आत्मा शांत हो गई होगी.

वे इसी स्वतन्त्र अधिकार के लिए संघर्ष करते रहे थे. पंजाब में हित आड़े न आते तो अकाली कभी दिल्ली की गद्दी नहीं छोड़ते. और राकेश टिकट भी अनमने मन से अपने किसान धर्म निबाह रहे हैं. यह बात अब तो किसी से छिपी नहीं रह गई है कि इस आंदोलन के पीछे कौन है। वैसे तो आंदोलन मोटा-मोटी विशुद्ध रूप से पंजाब के किसानों का है.

पंजाब का कुख्यात माफिया और खालिस्तानी आतंकवादी इस आन्दोलन को फाइनेंस कर रहे हैं और विश्वभर में कुप्रचार कर रहे हैं. जिस तरह खुलेआम शाहीनबाग और दिल्ली दंगा कराने वालों की लॉबी इस आंदोलन से जुड़ रही है, कहना मुश्किल न होगा कि आंदोलन अब गम्भीर मोड़ पर आ खड़ा हुआ है. भारत सरकार को घेरने का पहला मौका बैठे बिठाए हाथ लग जाए तो भला उसे कौन गवाएं.

छह साल में पहली बार तो यह अवसर हाथ लगा है.बात अब इतनी लंबी हो गई है कि सरकार और आंदोलनकारी दोनों की प्रतिष्ठा दांव पर है.सरकार तो कुछ लचीला रवैया अपना रही है पर किसान नेता जरा भी झुकना नहीं चाहते. बहरहाल, बहती गंगा में अब अभिनेता कमल हसन ने भी डुबकी लगा ही दी है.

उन्होंने मोदी सरकार द्वारा नए संसद भवन के निर्माण की यह कह कर आलोचना की है कि जब आधा हिन्दुस्तान भूखे मर रहा है, लोग नौकरियों से हाथ धो रहे हैं और कोविड-19 से अर्थव्यवस्था बदहाल है, तो ऐसे में नए संसद भवन के निर्माण का कोई औचित्य नहीं है. पहली बात, हिन्दुस्तान भूखे नहीं मर रहा है. दूसरी बात, अर्थव्यवस्था कुप्रभावित जरूर हुई है, लेकिन बदहाल नहीं.

कमल हसन अपनी अर्थव्यवस्था की बदहाली का ज्ञान बघारना बंद करें. कमल हसन ने फिल्मी दुनिया में काम करके करोड़ों कमाए, लेकिन उनका कोई चैरिटी कार्य अब तक सामने नहीं आया. जबकि सोनू सूद जैसे कमतर अभिनेता ने कमाल का चैरिटी कार्य किया और वह भी ढंग से, जो उपयोगी साबित हुआ.

कमल हसन अब राजनीति में कूद गए हैं और अपनी राजनीतिक पार्टी के लिए चंदा भी एकत्र कर रहे हैं। यानी इसमें भी वे अपनी जेब से कुछ भी खर्च करने को तैयार नहीं. इसको दोगले चरित्र के अलावा और क्या संज्ञा दी जा सकती है. कुल मिलाकर किसान आंदोलन और नए संसद भवन के निर्माण पर मोदी विरोधी ताकतें एकत्र हो रही हैं. देश को इनसे सावधान रहना होगा.

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लेखक

आर.के.सिन्हा आर.के.सिन्हा @rksinha.official

लेखक वरिष्ठ संपादक, स्तभकार और पूर्व सांसद हैं.

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