New

होम -> सियासत

 |  4-मिनट में पढ़ें  |  
Updated: 20 जून, 2015 02:41 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
  @msTalkiesHindi
  • Total Shares

  • वक्त हर किसी को मौका देता है. कुछ को मौका मिलता है. कुछ मौका ले लेते हैं.
  • जो मौके की नजाकत को समझ ले वो नेता होता है. जो मौके को परख कर राजनीतिक फैसला ले वो राजनेता होता है.
  • यही मौका उस नेता की राजनीति की आगे की दशा और दिशा दोनों तय करता है.

रथयात्रा का रोका जाना

90 के दशक में लालकृष्ण आडवाणी के रथ को रोकना लालू प्रसाद का ऐसा ही एक फैसला था. लालू के उस फैसले से जो राजनीतिक समीकरण बने उसकी फसल वो हाल तक काटते आए हैं. लालू के इस करतब से मुस्लिम वोट कांग्रेस के हाथ से फिसल कर लालू की झोली में आ गिरे थे.

लालू प्रसाद ने उसी फैसले की बदौलत 'माय' यानी मुस्लिम-यादव फॉर्मूला इजाद किया. ये फॉर्मूला उन्हें लगातार कामयाबी दिलाता रहा है.

नीतीश कुमार को महागठबंधन का नेता मानते हुए भी उन्होंने जो कहा वो उसी फैसले का एक एक्सटेंशन रहा. आखिर लालू ने किसलिए जहर पिया?

लालू के लिए नीतीश कुमार का नेता बनना अगर जहर था तो वो जहर भी तो उन्होंने मुस्लिम वोट बैंक के लिए ही पिया है. सांप्रदायिकता के कोबरा से बिहार को बचाने के लिए. दिल्ली की प्रेस कांफ्रेंस में यही तो समझाने की कोशिश की गई.

मोदी विरोध पॉलिसी

नीतीश कुमार की मोदी विरोध पॉलिसी भी तो मुस्लिम वोट बैंक के लिए ही थी. गोधरा के मुद्दे पर ही तो नीतीश मोदी को घेरते रहे - और आखिरकार 17 साल का एनडीए का साथ खत्म भी तो उसी वजह से किया. लालू और नीतीश का गठबंधन खड़ा करने में मुलायम सिंह ने जहां कड़ी मेहनत की वहीं कांग्रेस ने दूर रह कर भी बड़ा रोल निभाया. मुलायम सिंह वोट बैंक की खातिर ही तो रेप जैसे अतिसंवेदनशील मसले पर न जाने क्या क्या बयान दे बैठते हैं. मुलायम का ऐसा साथ मिल जाने के बाद लालू की भी कोशिश होगी कि राज्य के ज्यादा से ज्यादा मुसलमान लालटेन ही जलाएं.

अब चाहे लालू हों, मुलायम हों या कांग्रेस या फिर लेफ्ट - धर्म निरपेक्षता के नाम पर हर किसी की कोशिश और मकसद तो मुस्लिम वोट बैंक ही है.

इस तरह बिहार में जो दो गठबंधन बने हैं उनका भी मूल आधार मुस्लिम वोट बैंक ही तो है.

बिहार में मुसलमानों का 16.5 फीसदी वोट शेयर है. यहां के 13 लोक सभा क्षेत्र ऐसे हैं जहां मुस्लिम आबादी 18 से 44 फीसदी के बीच बसती है. लोक जनशक्ति पार्टी और वामपंथी दल मुस्लिम वोटों के बड़े लाभार्थी रहे हैं. यही वजह है कि 2005 में मुस्लिम मुख्यमंत्री बनाने के नाम पर रामविलास पासवान की पार्टी को 29 सीटें मिली थीं.

साल 2010 के चुनाव में अलग अलग पार्टियों से कुल 19 मुस्लिम विधायक जीतकर विधानसभा पहुंचे थे.

वैसे नीतीश कुमार के खाते में 10 साल तक दंगामुक्त शासन देने का क्रेडिट जमा हैं. 2014 के लोक सभा चुनाव में तो नीतीश कुमार को इन सबके बावजूद मुंह की खानी पड़ी - असली इम्तिहान विधानसभा चुनाव में होना है.

बदलाव के रास्ते पर बीजेपी

माना जाता है कि मुस्लिम वोट बैंक नेताओँ को कुर्सी नवाजने और उस पर से उतारने में बड़ी भूमिका निभाते हैं. देखा ये भी गया है कि मुस्लिम वोटों के ध्रुवीकरण का फायदा बीजेपी को जरूर मिलता है - और अपवादों की तो हमेशा ही गुंजाइश रहती है.

तो क्या इस बार भी बीजेपी का मज़बूत गढ़ वही बनेगा जहां मुस्लिम आबादी ज़्यादा है?

2014 के लोक सभा चुनाव ने काफी समीकरण बदल दिए हैं. शायद यही वजह है कि बीजेपी भी खुद को बदला हुआ बताने के लिए हर संभव हथकंडे अपना रही है.

बनारस की तरह बिहार में भी प्रचार के लिए गुजरात के मुसलमानों का एक जत्था बिहार पहुंच रहा है. बीजेपी अल्पसंख्यक सेल के संयोजक महबूब अली चिश्ती बताते हैं, "हम बिहार में मुसलमानों को गुजरात मॉडल के बारे में समझाएंगे. गुजरात में मुसलमानों की स्थिति और रहन-सहन आदि के बारे में भी पूरी बातों को उनके समक्ष रखेंगे."

चिश्ती बताते हैं कि गुजरात में मुसलमानों की साक्षरता दर 70 फीसदी से ज्यादा है - और उम्मीद जताते हैं, "हमें उम्मीद है कि बिहार में मौजूद 16.5 फीसदी मुस्लिमों को हम अपनी ओर आकर्षित करने में और गुजरात के मुसलमानों की तरह ही उन्हें भी अच्छी जिंदगी देने में कामयाब रहेंगे."

जो इफ्तार पार्टी पिछले साल तक सिर्फ शाहनवाज हुसैन के घर तक सीमित रहती रही, इस बार प्रधानमंत्री निवास 7, आरसीआर में भी होने जा रही है, ऐसे संकेत हैं. साल भर पहले भागलपुर में मिली शिकस्त के बावजूद शाहनवाज बोरिया बिस्तर लेकर बिहार में जमे हुए हैं. कयासों की मानें तो शाहनवाज को तो मुख्यमंत्री पद की रेस में डार्क हॉर्स तक माना जा रहा है.

कोशिशें जितनी और जैसी भी हों, इतना तो तय है कि मुस्लिम मतदाता वेट एंड वाच की पॉलिसी पर ही चलेंगे - और आखिरी वक्त में फैसला लेंगे. ये तो जनता का दरबार है. अपनी अपनी किस्मत है जिसको जो सौगात मिले.

#मुस्लिम वोट, #नीतीश कुमार, #लालू यादव, मुस्लिम वोट, नीतीश कुमार, लालू यादव

लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

iChowk का खास कंटेंट पाने के लिए फेसबुक पर लाइक करें.

आपकी राय