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Updated: 25 जून, 2015 01:12 PM
न्यूजफ्लिक्स
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40 साल पहले हिंदुस्तान हैरत में पड़ गया था. इंदिरा गांधी ने भारतीय लोकतंत्र पर तानाशाही का धब्बा लगाते हुए आपातकाल का एलान किया था. और देश दो साल के लिए नर्क जैसे हालात में पहुंच गया था. आज की पीढ़ी यदि इमरजेंसी और उसके दौर को समझना चाहे, तो उसके लिए ये 7 बिंदू काफी हैं...

ऐसे पड़ी नींव

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इलाहाबाद में इं‌दिरा गांधी पर चुनाव में धांधली का मुकदमा, जिसने उन्हें दोषी ठहराया. सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई, तो सशर्त स्थमगन मिला. उन्हें सांसद बने रहने का अधिकार मिला, लेकिन संसदीय कार्यवाही से दूर रहने के आदेश के साथ. इसे इमरजेंसी की तरफ पहला कदम माना जाता है.

जेपी की क्रांति

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दूसरा कदम जयप्रकाश नारायण रहे, जिन्होंने कोर्ट के आदेश के बाद इं‌दिरा गांधी के इस्तीफे की मांग की और 'संपूर्ण क्रांति' की पहल की. 25 जून को ही उन्होंने देश के अलग-अलग सूबों की राजधानी में प्रदर्शन करने आह्वान किया.

गिरफ्तारियां

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हालात काबू से बाहर होते देख इंदिरा गांधी ने भारतीय संविधान के आर्टिकल 352 के तहत आपातकाल लगा दिया, जिससे उन्हें असीम ताक़त मिल गई. जेपी, मोरारजी देसाई, विजयराजे सिंधिया, जीवतराम कृपलानी, लालकृष्ण  आडवाणी और कई दिग्गज नेताओं को जेल में डाल दिया गया. यही नहीं, कई लोगों को हिरासत के दौरान प्रताड़ित कर मार डाला गया. हालांकि सरकारी आंकड़ा सिर्फ 22 लोगों की मौत मानता है.

चुनाव पर रोक

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विरोध करने वाले नेताओं को जेल में डाल दिया गया, आम नागरिकों के सारे अधिकार रद्द कर दिए गए हैं, ऐसे में चुनावों का क्या मतलब? इंदिरा गांधी ने देश में होने वाले सभी संसदीय और विधानसभा चुनावों पर पाबंदी लगा दी. कुछ राज्य की सरकारें गिराकर वहां के नेताओं को हिरासत में ले लिया गया.

जबरन नसबंदी

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आपातकाल ने सिर्फ इंदिरा गांधी नहीं, बल्कि उनके बेटे संजय गांधी को भी असीम ताक़त दी. उन्होंने परिवार नियोजन के नाम पर जबरन नसबंदी करने का अभियान चलाया. ऐसा कहा जाता है कि करीब 9 लाख लोगों की नसबंदी की गई. इनमें वो लोग भी थे, जिनकी शादी तक नहीं हुई या जो बुजुर्ग थे.

मीडिया का संघर्ष

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लोकतंत्र का चौथा स्तम्भप आपातकाल के दौरान खुद को बचाने के लिए जूझ रहा था. अखबारों, टेलीविज़न और रेडियो पर कई पाबंदियां लगा दी गईं. कुछ अखबार-पत्रिकाओं ने विरोध जताने के लिए पन्ने खाली छापे, कुछ ने रबींद्रनाथ टैगोर की कविता प्रकाशित की और कुछ ने 'लोकतंत्र की मौत' पर मर्सिया पढ़ा.

कानून

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आपातकाल के दौरान इंदिरा गांधी ने अपनी मर्ज़ी से कानून लिखने शुरू कर दिए, क्योंकि उस वक़्कत उनकी पार्टी के पास लोकसभा में दो-तिहाई बहुमत था. उन्होंने अपने खिलाफ लगे सभी आरोप नए कानून पास कर हटा दिए. 42वां संशोधन आपातकाल की सारी कहानी कहता है.

आपातकाल का अंजाम

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करीब 21 महीने बाद इमरजेंसी हटी, हालांकि संजय गांधी की योजना इसे कई साल लगाए रखने की थी. आपातकाल के बाद हुए आम चुनावों में कांग्रेस को इसका अंजाम भुगतना पड़ा और वो बुरी तरह हारी. सलमान रश्दी की मिडनाइट चिल्ड्रन, वी एस नायपॉल के इंडिया-ए वूंडड कंट्री जैसे किताबें छपीं. किस्सा कुर्सी का जैसी फिल्म में सियासी हथकंडों पर तंज़ कसा गया. नसबंदी जैसी फिल्मों ने देश के हालात बताए.

 

 

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