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Updated: 07 मई, 2017 05:38 PM
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महबूबा मुफ्ती ने अप्रैल 2016 में मुख्यमंत्री की कुर्सी संभाली थी. तीन महीने बीते जब जुलाई में हिज्बुल आतंकी बुरहान वानी एनकाउंटर में मारा गया - और तब से अब तक जम्मू कश्मीर की हालत लगातार बदतर होती जा रही है. महबूबा के 13 महीने के शासन में से आम कश्मीरियों के 10 महीने या तो हिंसा की भेंट चढ़ गये या फिर कर्फ्यू के साये में गुजर गये.

महबूबा मुफ्ती का बयान आया है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ही कश्मीर समस्या को सुलझा सकते हैं. क्या मोदी के नाम पर महबूबा बच निकलने के किसी सुरक्षित रास्ते की तलाश में हैं?

महबूबा बोलीं - 'मोदी-मोदी'

जम्मू कश्मीर की मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने हाल ही में दिल्ली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात की. करीब 40 मिनट की मुलाकात के बाद महबूबा मुफ्ती ने कश्मीर समस्या को सुलझाने के लिए बातचीत का रास्ता अख्तियार करने पर जोर दिया. हालांकि, ये भी माना कि पत्थरबाजी और फायरिंग के बीच मौजूदा हालात में ये आसान नहीं है.

महबूबा और मोदी जब भी मिलते हैं वाजपेयी के 'जम्हूरियत, कश्मीरियत और इंसानियत' फॉर्मूले का जिक्र जरूर आता है. वाजपेयी से आगे बढ़ते हुए महबूबा अब मोदी-मोदी करने लगी हैं.

mehbooba mufti, narendra modiवाजपेयी फॉर्मूले से मोदी-मोदी तक

महबूबा का ताजा बयान है, "हमें दलदल से कोई निकाल सकता है तो वो पीएम मोदी हैं, वो जो भी फैसला करेंगे मुल्क उनका समर्थन करेगा." मोदी की तारीफ करते करते महबूबा पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को भी घसीट लेती हैं. कहती हैं, "पहले वाले प्रधानमंत्री भी पाकिस्तान जाना चाहते, मगर जुर्रत नहीं की. मगर, पीएम मोदी लाहौर गए ये उनकी ताकत की निशानी है."

दिल्ली दौरे पर महबूबा गृह मंत्री राजनाथ सिंह से भी मिली थीं जिसमें तीन महीने के भीतर हालात सुधारने के उपायों पर चर्चा हुई थी. इसमें राज्य सरकार की ओर से शांति व्यवस्था कायम कर बातचीत का माहौल तैयार करने की कोशिश होनी है.

उसी वक्त महबूबा ने प्रधानमंत्री से अपील की थी कि घाटी के लोगों और अलगाववादी नेताओं से बातचीत का सिलसिला आगे बढ़ाया जाना चाहिए. बुरहान वानी के मारे जाने के बाद राजनाथ सिंह के साथ एक सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल भी गया था. प्रतिनिधिमंडल में शामिल नेताओं ने जब अलगाववादी नेताओं से मुलाकात करनी चाही तो उन्होंने बैरंग लौटा दिया. बाद में आर्ट ऑफ लिविंग वाले श्रीश्री रविशंकर और फिर बीजेपी नेता यशवंत सिन्हा की ओर से भी बातचीत आगे बढ़ाने की कोशिशें हुईं लेकिन कोई नतीजा नहीं निकल सका.

एक बार फिर महबूबा का जोर ऐसे ही प्रयासों पर है - लेकिन अब वो कह रही हैं कि जो कुछ भी हो सकता है वो सिर्फ मोदी द्वारा ही संभव है.

शासन की नाकामी

हंदवाड़ा में छात्रों और पुलिस की झड़प ऐसे घटनाक्रम में ताजातरीन है. पत्थरबाजों में स्कूली छात्रों के अलावा अब हरदम हिजाब में नजर आने वाली लड़कियां भी शामिल हो गयी हैं.

हाल ही में पता चला था कि कैसे कश्मीरी नौजवानों को पैसे देकर पत्थरबाज बनाया जा रहा है. अब मालूम हुआ है कि इन पत्थरबाजों को पैसे पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई की ओर से पैसे मिल रहे हैं - और इस काम में अलगाववादी नेता शब्बीर शाह का नाम सबसे ऊपर लिया जा रहा है. खबर है कि आईएसआई की ओर से अहमद सागर नाम के शख्स ने शब्बीर शाह को 70 लाख रुपये दिये. अहमद सागर के भारत में पाक उच्चायुक्त अब्दुल बासित से सीधे रिश्ते बताये जा रहे हैं.अभी अभी सुरक्षा बलों ने एक सघन तलाशी अभियान चलाया जो पिछले 15 साल में सबसे बड़ा अभियान था. इस अभियान का मकसद कश्मीरियों के घरों में डेरा जमाये आतंकियों को बाहर निकालना रहा. शायद ही ऐसा कोई ऑपरेशन रहा हो जिसके रास्ते में पत्थरबाज आड़े न आते हों. वैसे भी रिहाइशी इलाकों में सेना के दखल को लेकर स्थानीय कश्मीरी लंबे अरसे से नाराजगी जताते रहे हैं. बेहतर तो ये होता कि रिहाइशी इलाकों में सिविल पुलिस मोर्चा संभालती क्योंकि वही हमेशा जनता की बीच रहती है इसलिए उसका सीधा संवाद कायम रहता है. जरूरत पड़ने पर सेना तो मदद के लिए तैयार ही रहती है.

कहीं महबूबा को ये तो नहीं लगने लगा है कि हालात पर काबू पाने में वो इसलिए नाकाम रहीं क्योंकि बुरहान के केस को ठीक से हैंडल नहीं किया. बुरहान के एनकाउंटर पर तब महबूबा ने कहा था - अगर सुरक्षाबलों को बुरहान वानी की मौजूदगी के बारे में पता होता तो जैसे हालात आज हैं उसे रोका जा सकता था.

तब महबूबा ने कहा था, ‘‘जहां तक मुझे पता है, जैसा कि मैंने पुलिस और थलसेना से सुना, कि उन्हें सिर्फ इतना पता था कि घर के भीतर तीन आतंकवादी मौजूद हैं, लेकिन ये नहीं पता था कि वे कौन हैं. मुझे लगता है कि अगर उन्हें पता होता, तो हमारे सामने ऐसी स्थिति नहीं होती... जब राज्य में हालात बेहतर हो रहे थे.”

इस बयान के जरिये महबूबा बुरहान के समर्थकों को अपना मैसेज देना चाहती थीं. या तो उन लोगों को या तो मैसेज समझ में नहीं आया या फिर उन्हें महबूबा पर भरोसा नहीं हुआ. उन्हें भी तो लगता होगा जो महबूबा कुर्सी संभालने से पहले सुरक्षा बलों के खिलाफ उनके साथ खड़ी रहती थीं, वो पाला बदल चुकी हैं. उसकी वजह संवैधानिक मर्यादा हो या फिर बीजेपी से गठबंधन की मजबूरी.

ऐसा तो नहीं कि नाकामी का पूरा ठीकरा राज्य सरकार पर थोप दिया जाये उससे पहले महबूबा 'मोदी-मोदी' करने लगी हैं. वैसे भी मोदी से महबूबा के मुलाकात से पहले से ही जम्मू कश्मीर में गवर्नर रूल की चर्चा होने लगी थी - और माना जा रहा है कि फिलहाल महबूबा सरकार को केंद्र की ओर से तीन महीने का अभयदान मिला हुआ है.

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