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Updated: 29 मार्च, 2020 05:16 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
  @msTalkiesHindi
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दिल्ली की सीमाओं पर जमा हुए लोगों की तस्वीरें परेशान करने वाली हैं. ये वे लोग हैं जो कोरोना वायरस से कहीं ज्यादा इस बात को लेकर डरे हुए हैं कि लॉकडाउन (Coronavirus lockdown) की हालत में भूख कैसे मिटेगी? ये लोग बहुत ही बेहाल और दहशत में हैं. महिलाएं बच्चों के साथ जहां तहां परेशान है. जहां तक पहुंचे हैं वहीं रुकना पड़ा है क्योंकि पुलिस आगे नहीं जाने दे रही है. दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल भी लोगों से वही अपील कर रहे हैं जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सलाह है - जहां हैं वहीं रहें. प्रधानमंत्री मोदी तो मन की बात में क्षमा मांगते हुए लॉकडाउन के बाद पैदा हुए हालात पर चिंता जतायी है.

नेशनल सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल (NCDC) ने उन इलाकों को हाई रिस्क जोन में डाल दिया है जहां घर लौटने वालों की वजह से खतरा बढ़ सकता है - एनसीडीसी अब इस नतीजे पर पहुंचा है कि घर लौटने वाले मजदूरों की तादाद उत्तर प्रदेश, बिहार और राजस्थान में ज्यादा होने वाली है.

सबसे ज्यादा चिंता की बात ये है कि लौटने वालों के घर गांवों में हैं जहां मेडिकल सुविधाएं जरूरत के पैमानों के मुकाबले नाम मात्र ही हैं. अब ये राज्य सरकारों के लिए चुनौती है कि कैसे बाहर से लौटने वालों को हैंडल करती हैं - क्योंकि ये अंदाजा लगाना मुश्किल है कि कोरोना वायरस किसकी वजह से फैल सकता है.

हर तरफ एक जैसा हाल है

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की अपील है कि लोग जहां भी हैं वहीं बने रहें. वो भरोसा दिलाने की कोशिश कर रहे हैं कि सरकार किसी को भी भूखा नहीं रहने देगी. कोरोना वायरस से संक्रमण की स्थिति में दिल्ली में अरविंद के केजरीवाल इलाज के भी पूरे इंतजाम का दावा कर रहे हैं - कहते हैं, हर रोज 1 हजार केस आयें तो भी परेशान होने की जरूरत नहीं पड़ेगी. सारा इंतजाम हो रखा है. फिर भी दिहाड़ी मजदूर केजरीवाल की बातें सुनने को तैयार नहीं हैं - और तो और सोशल मीडिया पर केजरीवाल के खिलाफ कैंपेन भी चल रहा है.

सरकार दावा जो भी करे, लेकिन ऐसी खबरें भी आ रही हैं कि महिलाएं बच्चों को लिए जहां तहां बैठी हैं. ऐसे केस भी हैं जिनके पति गांव गये थे तभी लॉकडाउन हो गया और मकान मालिक ने बोल गांव चले जाओ. घर बस अड्डे के लिए निकली थी कि पुलिस ने रास्ते में रोक दिया. साल दो साल के बच्चे हैं भूख लगी है और दूध लेने तक के पैसे नहीं हैं. लेकिन ये हाल सिर्फ दिल्ली में हो ऐसा नहीं है. हर तरफ आलम एक जैसा ही है. कई जगह तो स्थिति ऐसी हो चली है कि लोग 1947 में भारत-पाक बंटवारे की स्थिति से तुलना करने लगे हैं. मीडिया रिपोर्ट बताती हैं कि रतनपुर बॉर्डर पर भी दिल्ली जैसे ही नजारे देखने को मिल रहे हैं. राजस्थान और गुजरात की सीमा को जोड़ने वाले रतनपुर में वे लोग जमा हो रहे हैं जो रोजगार की तलाश में गुजरात और महाराष्ट्र गये हुए थे, लेकिन लॉकडाउन के बाद वे घरों की ओर पर जैसे संभव हुआ चल पड़े हैं.

ऐसा भी नहीं कि हर तरफ सड़कों पर सिर्फ दिहाड़ी मजदूर ही हैं, इनमें ऐसे लोग भी शामिल हैं जो छोटी-मोटी नौकरी कर गुजारा करते हैं - और कई छात्र भी हैं जिनसे पेइंग-गेस्ट या हॉस्टल खाली करने को बोल दिया गया और वे अचानक सड़क पर आ गये. ये लोग सड़कों पर बाइक, साइकिल या रिक्शा लेकर चल पड़े हैं. कहीं कहीं तो आइसक्रीम के ठेले के साथ ही निकल पड़े हैं. जिसके पास कुछ नहीं पैदल ही चला जा रहा है. ज्यादातर राज्यों की सीमाओं पर एक जैसा नजारा देखने को मिल रहा है और उन्हीं के बीच से हादसों की भी खबरें आ रही हैं. कोरोना वायरस से उपजी स्थिति में भूख के डर से भागे लोगों को नहीं पता कि सड़क पर हादसे के शिकार भी हो सकते हैं.

दिल्ली से मध्य प्रदेश के मुरैना के लिए निकले एक व्यक्ति की रास्ते में ही मौत हो जाने की खबर आयी है. 35 साल के रणवीर दिल्ली में डिलीवरी सेवा से जुड़े थे, लॉकडाउन के बाद पैदल ही घर निकल पड़े. 200 किलोमीटर तक चलते चलते थक गये. मंजिल से 80 किलोमीटर पहले ही हालत बिगड़ गयी और जान चली गयी. डॉक्टरों ने मौत का कारण हार्ट अटैक माना लेकिन ये भी समझा गया कि ये थकावट के चलते भी हो सकता है.

migrant workersमहानगरों से गांव लौट रहे लोगों के जरिये कोरोना वायरस के गांवों में फैलने का खतरा है

हैदराबाद में हुए एक हादसे में कर्नाटक से लौट रहे 8 लोगों की जान चली गयी जिनमें तीन साल का एक बच्चा भी शामिल है. ये लोग जिस वाहन से लौट रहे थे उसकी आम से भरे एक ट्रक से टक्कर हई और हादसा हो गया. ऐसे ही एक हादसे की खबर मुंबई-अहमदाबाद हाइवे से मिली है. पैदल घर लौट रहे लोगों को हाइवे पर ही एक ट्रक ने टक्कर मार दी. चार लोगों की मौत हो गयी जबकि तीन जख्मी हो गये. ट्रक अस्पताल जा रहा था - मेडिकल सप्लाई लेकर.

मजबूरी अपनी जगह है लेकिन एक सच ये भी है कि महानगरों से पलायन कर घर की तरफ चल पड़े लोग गांवों में भी कोरोना वायरस के संक्रमण का खतरा बढ़ाने लगे हैं. राजस्थान से एक ऐसा ही केस आया है - और ये सब सरकारी इंतजामों से ही सख्ती के साथ रोका जा सकता है. हां, मानवीयता ध्यान जरूर रखा जाना चाहिये.

हाई रिस्क जोन में तत्परता जरूरी है

अब तक तो यही सुनने को मिलता रहा है कि लोगों को विदेश यात्रा के दौरान कोरोना संक्रमण का खतरा रहा है - और आने के बाद हर किसी को 14 दिन क्वारंटीन में रहना है. ये प्रोटोकॉल है और प्रोटोकॉल तोड़ना कानूनन अपराध है.

राजस्थान के डूंगरपुर में जब दो लोगों में कोरोना वायरस के संक्रमण की रिपोर्ट पॉजिटिव आयी तो हड़कंप मच गया. ये दोनों पिता-पुत्र हैं और काम के सिलसिले में इंदौर में रहते रहे. लॉकडाउन के बाद दोनों इंदौर से बाइक पर सवार होकर निकल पड़े और डूंगरपुर पहुंच गये.

अब जरा सोचिये - इंदौर को देश का सबसे स्वच्छ शहर होने का पुरस्कार मिल चुका है - और वो दिल्ली, मुंबई, कोलकाता और चेन्नई वाली सूची से भी बाहर है. फिर भी वहां से राजस्थान पहुंचने वाला व्यक्ति कोरोना वायरस का कैरियर बन जाता है.

ये केस ऐसे नहीं समझा जा सकता कि जो दो लोग डूंगरपुर लौटे हैं वे इंदौर में ही संक्रमण के शिकार हुए होंगे. इंदौर से डूंगरपुर की दूरी 327 किलोमीटर है और सामान्य ट्रैफिक की स्थिति में करीब पौने सात घंटे का रास्ता है. ये कैसे समझा जाये कि इतने लंबे रास्ते में संक्रमण कहां हुआ होगा. किस जगह किसी ऐसे शख्स से मुलाकात हुई होगी जो कोरोना वायरस के संक्रमण का शिकार है.

रिपोर्ट तो यही बताती है कि राजस्थान के बॉर्डर सील कर दिये गये हैं और बाहर से आ रहे लोगों को रोक कर उनका मेडिकल चेकअप कराया जाता है. जांच में स्वस्थ पाये जाने पर उनके हाथों पर मुहर लगा दी जा रही है और घर पहुंच कर आइसोलेशन में रहने की सलाह दी जा रही है. साथ ही इस बात के लिए भी आगाह किया जा रहा है कि अगर सर्दी-जुकाम, खांसी और बुखार जैसे लक्षण दिखें तो फौरन अस्पताल पहुंच कर डॉक्टर को दिखायें.

राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने राज्य की सीमा से लोगों को गंतव्य तक पहुंचाने के लिए बसों के इंतजाम की बात कह रखी है. बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने तो लोगों से अपील की थी कि अगर वे बिहार से प्यार करते हैं तो जहां हैं वहीं रहें, वरना प्रधानमंत्री मोदी का लॉकडाउन फेल हो जाएगा. लेकिन ऐसी अपील का सड़क पर निकल पड़े लोगों पर फर्क कहां पड़ रहा है. लिहाजा नीतीश कुमार ने राज्य के अधिकारियों के साथ एक उच्चस्तरीय बैठक में 'आपदा सीमा राहत शिविर' बनाने के निर्देश दिये हैं. ऐसे शिविर नेपाल, झारखंड, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल की सीमा से सटे जिलों में बनाये जाएंगे. आपदा सीमा राहत शिविर में खाने और सोने के अलावा मेडिकल सुविधाएं भी होंगी, ऐसा बताया गया है.

उत्तर प्रदेश में तो मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने लोगों के लिए बसों का इंतजाम पहले से ही कर रखा है - लेकिन कई जिलों में लोग बाहर से आने वालों को न घुसने देने के लिए पत्थर, लकड़ी और कांटों से बैरियर बना रखा है - मुश्किल ये है कि अगर लोग लौट कर अपने गांव के करीब पहुंच भी गये तो एंट्री के रास्ते बंद हो गये हैं.

लोगों का जहां का तहां रोका जाना इसलिए भी जरूरी हो गया क्योंकि ये कोरोना वायरस के कैरियर साबित हो सकते हैं जिससे वायरस के कम्युनिटी ट्रांसमिशन का खतरा बढ़ जाता है. ऐसे में केंद्र सरकार ने राज्यों को निर्देश दिया है कि उन लोगों के खिलाफ सख्त एक्शन लिया जाये जो छात्रों और मजदूरों से घर खाली करने को कह रहे हैं. पहले ऐसे वाकये डॉक्टरों को लेकर भी सुने गये थे - वारंगल से भी और दिल्ली से भी.

केंद्र सरकार ने शहरों में भी लोगों की आवाजाही पर सख्ती से रोक लगाने को कहा है. साथ ही, राज्य और जिलों के बॉर्डर भी सील करने को कहा गया है ताकि एक राज्य से दूसरे राज्य ही नहीं बल्कि एक जिले से दूसरे जिले में कोई भी आ जा न सके. इस दौरान हाइवे पर भी किसी भी तरह के आवागमन की अनुमति न दिये जाने को कहा गया है - और लॉकडाउन लागू करने की पूरी जिम्मेदारी जिलाधिकारी और पुलिस अधीक्षक पर होगी. हाइवे पर भी छूट सिर्फ उन वाहनों को होगी जो जरूरी सामान पहुंचा रहे हैं.

कोरोना वायरस संक्रमण के तीसरे स्टेज की दहलीज पर है और ऐसे में लॉकडाउन सख्ती से लागू नहीं हुआ तो स्थिति को संभालना बहुत मुश्किल होगा. शहरों में सुविधायें थोड़ी बेहतर हैं, भले ही कोरोना संक्रमण की स्थिति में इलाज की स्थिति थोड़ी बेहतर भी है, लेकिन गांवों में तो तमाम तरह की चुनौतियां हैं - सुविधाओं के साथ साथ जागरुकता की कभी भी एक बड़ी चुनौती है.

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लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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