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Updated: 12 दिसम्बर, 2015 03:09 PM
विनीत कुमार
विनीत कुमार
  @vineet.dubey.98
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इधर ट्रायल कोर्ट ने राहुल और सोनिया गांधी को नेशनल हेराल्ड मामले में सम्मन जारी किया. उधर संसद में 'तानाशाही नहीं चलेगी' और 'दमन की राजनीति बंद करो' के नारे गूंजने लगे. जाहिर है, पूरा हंगामा हेराल्ड मामले को लेकर ही था. पता नहीं ये सदबुद्धि कांग्रेस को किसने दी कि इस मामले को संसद में उठाने का उसे राजनीतिक लाभ मिलेगा. जबकि कांग्रेस के नेतृत्व को भी पता था कि खुल कर हेराल्ड मामले का जिक्र संसद में किया नहीं जा सकता. फिर भी उसने विरोध जताना उचित समझा. नतीजा ये कि अब पार्टी इस रणनीति के कारण खुद ही फंसती चली जा रही है. पिछले चार-पांच दिनों में जिस प्रकार किरकिरी हुई, उसके बाद कांग्रेस ने धीरे-धीरे 'गियर शिफ्ट' करना शुरू कर दिया है.

संसद में हंगामे का नेशनल हेराल्ड से संबंध नही!

अब तक तो सब यही समझ रहे थे और पूरा हंगामा हेराल्ड मामले को लेकर है. लेकिन पी चिंदबरम से लेकर राज्य सभा में विपक्ष के नेता गुलाम नबी आजाद अब सफाई देने में जुटे हैं कि संसद के हंगामे का हेराल्ड मामले से कोई लेना-देना नहीं है. आजाद ने पत्रकारों से कहा, 'हम बीजेपी के तीन मुख्यमंत्रियों, जिन पर भ्रष्टाचार के आरोप हैं, उन्हें लेकर अपना विरोध जता रहे हैं.' फिर वी. के सिंह के इस्तीफे की मांग भी जोड़ दी गई. गौरतलब है कि मानसून सत्र में मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, छत्तीसगढ़ के रमन सिंह और राजस्थान की वसुंधरा राजे के इस्तीफे की मांग को लेकर कांग्रेस ने हमलावर तेवर अपनाए थे.

अंदरखाने कांग्रेस के कई वरिष्ठ नेता मान रहे हैं कि हेराल्ड मामले को संसद में उठाने और कामकाज ठप कराने की रणनीति बुरी तरह से फ्लॉप साबित हुई है. जनता के बीच बहुत अच्छा संदेश नहीं गया है. बीजेपी लोगों के बीच यह संदेश देने में कामयाब रही कि कांग्रेस अपने शीर्ष नेताओं के दामन को बचाने के लिए संसद की कार्यवाही में बाधा डाल रही है.

कंप्यूज कांग्रेस

तो अब क्या समझा जाए. पूरा हफ्ता निकलने के बाद क्या कांग्रेस को यह अहसास होने लगा है कि उसने एक मुद्दे को गलत जगह उठाकर अपने लिए ही परेशानी मोल ली है. या फिर पूरी पार्टी ही कंफ्यूज है कि क्या करें और क्या न करें. क्योंकि नेतृत्व कुछ और कहता है और पार्टी के दूसरे नेता कुछ और. नेशनल हेराल्ड मामले को लेकर राहुल गांधी पत्रकारों से कहते हैं कि इस मामले की कानूनी प्रक्रियाएं प्रधानमंत्री कार्यालय से संचालित हो रही हैं. जबकि चिदंबरम और आजाद दूसरी लाइन पर चल पड़े हैं. वैसे भी, माजरा क्या है... ये सबको मालूम है क्योंकि संसद में हंगामे का खेल ही कोर्ट की ओर से सम्मन आने के बाद शुरू हुआ. अब स्टैंड बदलकर कांग्रेस वाकई और कंफ्यूज नजर आ रही है.

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लेखक

विनीत कुमार विनीत कुमार @vineet.dubey.98

लेखक आईचौक.इन में सीनियर सब एडिटर हैं.

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