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Updated: 17 दिसम्बर, 2015 06:39 PM
राहुल मिश्र
राहुल मिश्र
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नेशनल हेराल्ड केस नेशनल ड्रामा बन चुका है. अगले एक्ट में शनिवार को दिल्ली के पटियाला हाउस कोर्ट में है. कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और उपाध्यक्ष राहुल गांधी की पेशी वैसे तो यह एक आसान सी जुडीशियल प्रक्रिया है. सोनिया और राहुल को कोर्ट के सामने पेश होकर एक पर्सनल बॉन्ड भरना होगा जिसके बाद वह कोर्ट से जाने के लिए स्वतंत्र होंगे. लेकिन कांग्रेस पार्टी इसे नैशनल ईवेंट की शक्ल देना चाहती है.

कांग्रेस का प्लान है कि शनिवार दोपहर पूरा देश आश्चर्यचकित होकर राजनीति की तथाकथित साजिश का चश्मदीद बने. कांग्रेस चाहती है कि पूरा देश यह देखे कि किस तरह सत्ता के गुरूर में मोदी सरकार एक ऐसे परिवार को मामूली चोर-उच्चकों की तरह बेबुनियाद आरोपों में घसीट कर अदालत के कठघरे में खड़ा करने जा रही है, जिसने आजादी के बाद न सिर्फ देश की पहली लोकतांत्रिक सरकार को नेतृत्व दिया बल्कि सरकार दर सरकार नेतृत्व का बोझ भी इसी परिवार पर पड़ा.

कांग्रेस चाहती है कि इस राजनीतिक उत्पीड़न से परिवार को पहुंच रही पीड़ा को पूरा देश महसूस करे. इसीलिए कांग्रेस आलाकमान पर आई इस संकट की घड़ी में देश के सभी राज्यों से कांग्रेस नेतृत्व को दिल्ली कूच करने का फरमान भेजा जा चुका है. कांग्रेस का मुख्यमंत्री हो या फिर मंत्री, प्रदेश अध्यक्ष या कार्यकर्ता, सभी स्तब्ध हैं और वेदना की इस घड़ी में पूरी संवेदना के साथ कांग्रेस आलाकमान के कदम से कदम मिलाते हुए अदालत तक मार्च करते देखे जाएं. संभव है कि जिस दौरान अदालत की कार्यवाही चले, भक्तों की भीड़ बाहर विलाप कर रही होगी जो इस एक्ट का आखिरी सीन होगा - क्योंकि उसके बाद अदालत के हुक्म पर कोई नया एक्ट शुरू हो जाएगा.

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दरअसल, सोनिया और राहुल के खिलाफ मामला बहुत ही मामूली स्तर का है. लगभग सभी बड़े राजनीतिक और कॉरपोरेट घरानों में पुश्तैनी संपत्ति पर कब्जा जमाने के लिए ऐसी ही तरीके अपनाए जाते हैं. यहां तो नेशनल हेराल्ड की चल-अचल संपत्ति के साथ-साथ पूर्वजों की अमूर्त संपत्ति का मामला भी है. देश के कई शहरों में करोड़ों की संपत्ति के साथ नेहरू-गांधी परिवार के आभामंडल को पुनर्स्थापित करने की लालसा भी है. यह बात अलग है कि अदालत को महज वित्तीय धांधली से मतलब है और वह इसकी तह तक जाना चाहती है कि कैसे आजादी के लिए बनाया गया जवाहर लाल नेहरू का नेशनल हेराल्ड नाम के हथियार में जंग लग गई. साथ ही, कैसे आजादी के इस हथियार के नाम पर पड़ी अकूत अचल संपदा कंपनी का रूप ले लेती है और किसे यह फायदा पहुंचा रही है?

मामला जब आजादी के पहले से शुरू हुआ है और परिवार के 60 वर्षों के शासन से जुड़ा रहा है तो इसमे पॉलिटिकल वेनडेटा की संभावनाओं को पूरी तरह नकारा नहीं जा सकता. आमतौर पर राजनीति में कानून के दायरे से बाहर पकड़े जाने पर पॉलिटिकल वेनडेटा का सहारा लिया जाता है क्योंकि इस दुनिया में आम धारणा है कि खुद जियो और औरों को भी जीने दो. खासतौर पर जब मामले को उजागर करने में सुब्रमण्यन स्वामी की अहम भूमिका रही हो. क्योंकि यह तो जगजाहिर है कि स्वामी को राजीव, सोनिया और राहुल से कुछ ज्यादा ही स्नेह रहा है.

अब देखना ये है कि पॉलिटिकल वेनडेटा से शुरू हुआ यह राजनीतिक षड़यंत्र किस करवट बैठता है. शनिवार को शुरू हो रहे एक्ट के आखिरी सीन में नए एक्ट की क्या पटकथा लिखी जाती है? फिलहाल कांग्रेसी खेमे ने जो स्ट्रैटेजी तैयार की है उससे ये तो सामने आ ही गया है कि सोनिया और राहुल मामले में बॉन्ड नहीं भरेंगे. ऐसा स्टंट दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने नितिन गडकरी द्वारा मानहानि के मामले में देखने को मिला था और दो दिन तिहाड़ जेल में काटने के बाद बाहर निकलने का कोई रास्ता नहीं दिखा तो बॉन्ड भी भर दिए. साल भी नहीं बीता कि इस स्टंट ने अपना रंग दिखाया और प्रचंड बहुमत के साथ उन्हें दिल्ली की गद्दी पर बिठा दिया. सोनिया और राहुल की भी अगर यही स्ट्रैटेजी है तो बॉन्ड तो उनको भी नहीं भरना चाहिए. क्योंकि यही तय करेगा कि क्या परिवार की चल-अचल संपत्ति के साथ-साथ अमूर्त संपत्ति पर भी उनका अधिकार कायम रहेगा.

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लेखक

राहुल मिश्र राहुल मिश्र @rmisra

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में असिस्‍टेंट एड‍िटर हैं

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