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Updated: 07 फरवरी, 2022 03:08 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
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चरणजीत सिंह चन्नी (Charanjit Singh Channi) भारी पड़े हैं. नवजोत सिंह सिद्धू (Navjot Singh Sidhu) दर्शानी घोड़ा बन कर रह गये हैं. अभी तो ऐसा ही लगता है. आगे का क्या पता. पंजाब के लोगों ने क्या तय कर रखा है.

नवजोत सिंह सिद्धू को एक बार फिर मन मसोस कर रह जाना पड़ा है. आखिरी वक्त तक सिद्धू आउट होने को तैयार न थे. दरअसल, सिद्धू राहुल गांधी को कैप्टन मानते थे, लेकिन राहुल गांधी ने क्रिकेट का पुराना किस्सा सुना डाला.

राहुल गांधी ने बताया कि वो सिद्धू को 40 साल से जानते हैं. फिर बाकियों की कौन कहे, खुद सिद्धू भी चक्कर में पड़ गये. क्योंकि राहुल गांधी ने बताया कि वो बात सिद्धू भी नहीं जानते.

राहुल गांधी (Rahul Gandhi) ने बताया कि सिद्धू को जब पहली बार वो देखे, संयोग से उस दिन भी सनडे ही रहा. तब की बात है जब राहुल गांधी दून स्कूल में पढ़ते थे. तभी किसी ने राहुल को बताया कि वो सिद्धू है - ये फास्ट बॉलर है. सिद्धू ने तब छह विकेट लिये थे - और फिर ओपनिंग करते हुए 98 रन भी बनाये थे. सिद्धू की टीम जीत गयी.

राहुल गांधी कहते हैं, 'मैंने उस दिन नवजोत सिंह सिद्धू को पहचाना... नेता बनता है... इस व्यक्ति में दृढ़ता है... ये व्यक्ति प्रैक्टिस कर सकता है... घंटों दे सकता है... उसके बाद क्रिकेटर बने... कमेंटेटर बने... कॉमेडियन बने... उसके बाद राजनेता बने... कभी-कभी इमोशनल हो जाते हैं... हो जाते हैं तो क्या? सिद्धू जी का विजन है.'

क्या राहुल गांधी ने स्कूल में ही तय कर लिया होगा कि एक दिन सिद्धू को नेता बनाएंगे? कॅरिअर काउंसिलिंग की तो राहुल गांधी को कभी जरूरत पड़ी नहीं होगी. खानदानी पेशे के बारे में पता ही था. करना क्या है, बिजनेस संभालना ही तो है. संभालने से पहले काम सीखना होता है. तभी तो राहुल गांधी ने सीखना जारी रखा है.

सिद्धू के कहने पर अपने पिता राजीव गांधी के साथी रहे कैप्टन अमरिंदर सिंह को एक दिन हटा देंगे, राहुल गांधी ने ये नहीं सोचा होगा. कैप्टन अमरिंदर सिंह और राजीव गांधी दोनों दून स्कूल के ही साथी रहे हैं. कैप्टन अमरिंदर सिंह को हटाने के राहुल गांधी के फैसले को काफी बोल्ड स्टेप माना गया था. फैसले में प्रशांत किशोर की छाप देखी जा रही थी. क्योंकि तब प्रशांत किशोर और राहुल गांधी के बीच कांग्रेस ज्वाइन करने को लेकर बातचीत चल रही थी.

लेकिन सिद्धू की तमाम पैंतरेबाजियों को दरकिनार करते हुए उनकी दावेदारी को खारिज कर देना ज्यादा बड़ा बोल्ड स्टेप लगता है. चरणजीत सिंह चन्नी को पंजाब में कांग्रेस के मुख्यमंत्री पद का चेहरा घोषित करना तो राहुल गांधी की मजबूरी थी, लेकिन आगे से सिद्धू को काबू में रखना काफी मुश्किल काम होगा.

चन्नी को इग्नोर करना जोखिमभरा होता

ये तो करीब करीब तय था कि 6 फरवरी को ही पंजाब में कांग्रेस की रैली में मुख्यमंत्री पद का चेहरा घोषित किया जाएगा. ये भी करीब करीब ही तय था कि राहुल गांधी रैली में शामिल होंगे - सर्वे और फीडबैक के बावजूद आखिर तक ये नहीं तय हो पाया था चन्नी या सिद्धू किसके नाम पर मुहर लगेगी.

charanjit singh channi, rahul gandhi, navjot singh sidhuदर्शानी की जगह सिद्धू को राहुल गांधी ने कहीं बेलगाम घोड़ा तो नहीं बना दिया?

लुधियाना में दोपहर दो बजे कांग्रेस की रैली होनी थी. राहुल गांधी करीब 12 बजे पहुंच भी गये. होटल में वो चन्नी और सिद्धू दोनों से बात करते रहे. अपनी बात समझाने के लिए राहुल गांधी को करीब दो घंटे तक जूझना भी पड़ा. नतीजा ये हुआ कि रैली के लिए भी डेढ़ घंटे देर हो गयी.

राहुल को गरीब परिवार का मुख्यमंत्री चाहिये था: पंजाब में कांग्रेस के मुख्यमंत्री चेहरे के तौर पर जब राहुल गांधी ने चन्नी का घोषित किया तो सिद्धू ने उनका हाथ पकड़ कर ऊपर उठा कर एनडोर्समेंट का इजहार किया. पंजाब के पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष सुनील जाखड़ भी वहां मौजूद थे - और राहुल गांधी ने तीनों को हीरा बता कर नाराज न होने देने का प्रयास भी किया.

चन्नी को का नाम लेने से पहले राहुल गांधी ने कहा, 'हमें गरीब घर का मुख्यमंत्री चाहिये... हमें वो व्यक्ति चाहिये जो गरीबी को समझे... भूख को समझे... जो गरीब व्यक्तियों के दिल की घबराहट को समझे - क्योंकि पंजाब को उस व्यक्ति की जरूरत है...'

बोले, 'मुश्किल फैसला था... आपने आसान बना दिया' - और फिर घोषणा भी कर डाली, 'पंजाब के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार चरणजीत सिंह चन्नी जी होंगे.'

2017 के विधानसभा चुनाव में चन्नी ने जो एफिडेविट दाखिल किया है, उसमें उनके पास तब करीब 14.33 करोड़ की संपत्ति बतायी गयी है - और ये पांच साल पुरानी बात है. तीन महीने पहले मुख्यमंत्री बनने से पहले भी चन्नी कैप्टन सरकार में मंत्री थे.

बीबीसी के मुताबिक, चन्नी के परिवार के पास रोपड़ में एक पेट्रोल पंप और एक गैस एजेंसी है - और मुख्यमंत्री चन्नी की पत्नी पेशे से डॉक्टर हैं.

चन्नी के पिता का टेंट हाउस का कारोबार रहा है. पहले वो अरब देशों में काम करते थे लेकिन बाद में लौट कर टेंट का काम संभाल लिया, जिसमें चन्नी भी हाथ बंटाया करते थे - तब भी जब वो नगर पालिका के पार्षद बन चुके थे.

भला चन्नी के नाम से पीछे कैसे हटते: चन्नी के नाम पर पीछे हटना राहुल गांधी के लिए काफी मुश्किल था - और ये सिर्फ पंजाब की ही बात नहीं थी. अभी तो अभी आगे के चुनावों में भी असर देखने को मिलता.

चन्नी के रूप में पंजाब को पहला दलित मुख्यमंत्री देने के बाद भी मायावती पूरे यूपी में घूम घूम कर कांग्रेस को दलित विरोधी बता रही हैं. शिकायतों की वही सूची हर जगह दोहराने लगी हैं. कांग्रेस शासन में अंबेडकर को भारत रत्न नहीं दिया गया. कांग्रेस की सरकार ने कांशीराम के निधन पर राजकीय शोक की घोषणा नहीं की.

फर्ज कीजिये चन्नी की जगह किसी और का नाम घोषित कर दिया जाता, फिर तो ये मुद्दा भी मायावती उसी सूची में जोड़ देतीं. फिर तो प्रियंका गांधी कांग्रेस के रूठे वोटर को मनाने की कोशिश कर रही हैं, पानी ही फिर जाता.

सिद्धू बेलगाम घोड़ा न बन जायें

दर्शानी घोड़े वाला सिद्धू के जुमले के हिसाब से ही देखें तो जो उनके साथ हुआ है, अब तो लगता है कहीं वो बेलगाम घोड़ा न बन जायें?

राहुल गांधी के लिए चन्नी के नाम से पीछे हटना जितना जोखिम भरा नहीं होता, उससे कहीं ज्यादा जोखिम भरा सिद्धू को मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित करना होता.

राहुल गांधी का ही कहना है कि सिद्धू कभी कभी इमोशनल हो जाते हैं. ये भी पंजाब कांग्रेस के प्रभारी रहे हरीश रावत के बयान जैसा ही लगता है, कभी कभी सिद्धू चौके की जगह छक्का जड़ देते हैं.

मतलब ये कि कांग्रेस को ये तो लगता है कि उसे सिद्धू की जरूरत है, लेकिन पक्का यकीन नहीं होता कि कब वो क्या कर बैठें. सिद्धू ने बीजेपी को लेकर कहा है कि वो 13 साल उस पार्टी में रहे, लेकिन सिर्फ प्रचार में उनका इस्तेमाल किया गया. देखा जाये तो कांग्रेस भी वैसा ही कर रही है. बस थोड़ा सा फर्क है. सिद्धू खुद बताते भी हैं, चार साल में कांग्रेस ने उनका पंजाब का अध्यक्ष बना दिया.

और उन चार साल में अगर किसी ने काफी करीब से सिद्धू को देखा है तो उनमें कैप्टन अमरिंदर सिंह का नाम तो शुमार है ही. सिद्धू को लेकर राहुल और रावत की तरह ही कैप्टन अमरिंदर सिंह की भी राय रही है.

हाल ही के एक इंटरव्यू में कैप्टन अमरिंदर ने बताया, 'मैंने एक बार कांग्रेस अध्यक्ष के कहने पर सिद्धू को लंच पर बुलाया... उसने बातचीत के दौरान बताया कि वो दिन में 6 घंटे मेडिटेशन करता है और उसमें सुबह-शाम 1-1 घंटे भगवान से बात करता है... मैंने उसकी बातें सुनी फिर कांग्रेस अध्यक्ष को कहा कि ये बिल्कुल अस्थिर आदमी है... इसे पता नहीं कि क्या बोलना है - और कब बोलना है?'

कैप्टन और सिद्धू की मुलाकात तब की है जब सिद्धू ने अभी कांग्रेस ज्वाइन नहीं किया था. सिद्धू के पाकिस्तान प्रेम को लेकर कैप्टन इस्तीफे के बाद से कहते रहे हैं कि वो सिद्धू को मुख्यमंत्री कभी नहीं बनने देंगे. चाहे जैसे हो रहा हो, हो तो यही रहा है. कम से कम अभी तो ऐसा ही लगता है.

कैप्टन ने ट्विटर पर एक तस्वीर शेयर करते हुए लिखा है - एक तस्वीर हजार शब्दों के बराबर होती है. हुआ ये था कि चन्नी का नाम घोषित करने के बाद राहुल गांधी ने कांग्रेस में एकता प्रदर्शित करने के लिए सबका हाथ पकड़ कर उठाया और तब सिद्धू के मुंह पर बार बार उनका शॉल आ रहा था - कैप्टन ने उसी मौके की एक तस्वीर निकाल ली है - और तस्वीर वाकई दिलचस्प है.

कहने को तो सिद्धू राहुल गांधी को अपना कैप्टन बताते आये हैं, लेकिन एक ही झटके में कांग्रेस सांसद ने सिद्धू को बता दिया है कि मजह कैप्टन ही नहीं, अंपायर भी वही हैं और रेफरी भी.

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लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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