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Updated: 27 जून, 2016 07:03 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
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महबूबा को कुछ साबित करने की जरूरत नहीं थी, फिर भी अनंतनाग में उन्हें अग्निपरीक्षा देनी पड़ी. कांग्रेस और नेशनल कांफ्रेंस ने चुनाव में महबूबा पर नागपुर से कंट्रोल होने का इल्जाम लगाया - यहां तक कि उनकी जीत का मतलब कश्मीर में भी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की एंट्री बताई, लेकिन लोगों ने ये सारी बातें खारिज कर दीं.

लेकिन पम्पोर हमले पर उनका ताजा बयान, क्या पीडीपी के स्टैंड में किसी बड़े बदलाव की ओर इशारा नहीं करता?

कांग्रेस मुक्त कश्मीर

बतौर मुख्यमंत्री महबूबा उस सीट से चुनाव लड़ रही थीं जो उनके पिता मुफ्ती मोहम्मद सईद के निधन से खाली हुई थी. ये जानते हुए भी कि अनंतनाग पीडीपी का गढ़ रहा है, सभी लोग महबूबा मुफ्ती की जीत को लेकर कतई आश्वस्त थे, जबकि महबूबा ने 2014 में अनंतनाग से ही लोक सभा चुनाव जीता था.

जिस तरह बिहार चुनाव में बीजेपी और महागठबंधन एक दूसरे को टारगेट करते थे, ठीक वैसे ही अनंतनाग का चुनावी माहौल रहा. कांग्रेस ने लोगों को बार बार समझाने की कोशिश की कि महबूबा मुफ्ती की जीत के बाद कश्मीर का संचालन नागपुर से होना तय है. मतलब ये कि आरएसएस को अगर कश्मीर से बाहर रखना है तो महबूबा को हराना जरूरी हो जाता है.

विरोधियों के हमले के बीच महबूबा अपनी बात तो रखती ही रहीं, उन्हें कदम कदम पर लोगों को समझाना पड़ता कि न तो वो बीजेपी या आरएसएस के किसी एजेंडे का हिस्सा हैं - और न किसी तरह खुद को किसी भी सूरत में इस्तेमाल होने देंगी.

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कांग्रेस द्वारा आरएसएस को निशाना बनाने पर बचाव में नौशेरा से बीजेपी विधायक रविंदर रैना आगे आए और जवाबी हमला किया. संघ के नेता रह चुके रैना ने कहा था कि 2014 लोक सभा चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सारे देश को कांग्रेस मुक्त कर दिया था - अब कश्मीर घाटी में भी बची-खुची कांग्रेस का भी सफाया होनेवाला है.

अनंतनाग के लोगों ने महबूबा को विजयी बनाकर रैना की बात पर मुहर लगा दी - कांग्रेस मुक्त कश्मीर!

महबूबा का बयान क्या कहता है?

पम्पोर के शहीदों को श्रद्धांजलि देते हुए महबूबा ने कहा, "मैं हमले की निंदा करती हूं. मुस्लिम होने के नाते मैं हमले से शर्मिदा हूं. इस तरह की घटना रमजान के महीने में हुई, जिसमें खुदा से अपने गुनाहों के लिए तौबा मांगी जाती है, भलाई के काम किए जाते हैं."

अपने इस बयान को लेकर महबूबा मुफ्ती एक बार फिर विरोधियों के निशाने पर हैं. विरोधी उनके पुराने स्टैंड को लेकर उन्हें निशाना बना रहे हैं - और वो काफी हद तक सूट भी करता है.

पम्पोर में लश्कर-ए-तैयबा के दो आत्मघाती हमलावरों से मुठभेड़ में एक सब इंस्पेक्टर सहित सीआरपीएफ के आठ जवान शहीद हो गये थे, जबकि 22 जख्मी हुए थे. एनकाउंटर में दोनों आतंकी भी मारे गये.

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अग्निपरीक्षा में पास होने से बढ़ा भरोसा

महबूबा ने इस मसले पर मीडिया से बातचीत में कहा था, "इससे कुछ भी हासिल होने वाला नहीं है... इस तरह की करतूत से हम केवल कश्मीर और सूबे को बदनाम कर रहे हैं. इससे हमारा धर्म भी बदनाम हो रहा है."

नेशनल कांफ्रेंस के प्रवक्ता जुनैद मट्टू ने महबूबा के बयान पर टिप्पणी में कहा, "यही महबूबा मुफ्ती हैं जो कहती थीं कि आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता. अब अचानक वह आतंकवाद को इस्लाम से जोड़ रही हैं जिसके लिए मुस्लिमों को शर्मिंदा होना चाहिए."

पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने अपने ट्वीट अटैक में कहा, "इस तरह से महबूबा मुफ्ती ‘इस्लामिक आतंकवाद’ के दल में शामिल हो गई हैं जबकि बरसों से कहती रही हैं कि आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता."

महबूबा के इस बयान पर विपक्ष के घेरने की खास वजह भी है. बीते बरसों की घटनाओं को देखें तो महबूबा हमेशा ही सुरक्षा बलों के खिलाफ स्टैंड लेती रहीं. अगर आंतकवादी गतिविधियों में शामिल घाटी का कोई जवान सुरक्षा बलों के एनकाउंटर में माना जाता तो महबूबा उसके घरवालों के साथ खड़ी होतीं. उनके साथ सहानुभूति जतातीं. इन नौजवानों के गमजदा परिवारों को रोने के लिए महबूबा का कंधा हमेशा हाजिर रहता.

ऐसे मामलों में मुफ्ती मोहम्मद सईद के मुख्यमंत्री रहने के दौरान भी महबूबा का अपना अलग स्टैंड होता. मुफ्ती सईद का झुकाव नई दिल्ली की ओर देखा जाता रहा जबकि महबूबा को कट्टरवादियों और घाटी के लोगों की आवाज के तौर पर.

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महबूबा ने बयान में वही कहा है जैसा किसी भी मुख्यमंत्री से अपेक्षा होनी चाहिए. हालांकि, ताजा बयान में महबूबा ने बिलकुल नया रुख अख्तियार किया है. महबूबा ने घाटी के अलगाववादियों के साथ साथ आतंकवादियों को भी कड़ा मैसेज देने की कोशिश की है.

महबूबा ऐसा बयान शायद इसलिए दे रही हैं क्योंकि अनंतनाग के लोगों ने उन्हें नया भरोसा दिया है. महबूबा अब ये मान कर चल रही होंगी कि लोगों ने समझ लिया है कि बीजेपी के साथ पीडीपी के गठबंधन का उनके पिता का फैसला सही था. पिता की मौत के बाद लंबा वक्त और गहन सोच विचार के बाद फिर से बीजेपी के साथ नई पारी शुरू करने का खुद महबूबा के फैसले पर भी अब मुहर लग गई है.

महबूबा के बयान को अगर संघ के नजरिये से देखा जाए तो ये 'राष्ट्रवाद' के पैरामीटर में पूरी तरह फिट बैठता है. संघ की विचारधारा के उलट देखा जाए तो ये 'धर्मनिरपेक्षता' के खांचे में बिलकुल फिट नहीं होता.

महबूबा ने सिर्फ हमले की निंदा की होती तो शायद इतना बवाल नहीं होता, लेकिन उनका ये जाहिर करना कि इससे इस्लाम शर्मिंदा हुआ है, उस खास आइडियोलॉजी के विरोधियों को भला हजम भी हो तो कैसे?

वैसे मुखालफत की सियासत अपनी जगह है लेकिन महबूबा का बयान एक इशारा तो कर ही रहा है - पीडीपी की आइडियोलॉजी में कुछ बदलाव तो हुआ ही है.

महबूबा अपने पिता से भी दो कदम आगे नजर आ रही हैं. मुमकिन है अब कभी कश्मीर में अमन के लिए क्रेडिट देने की बात चले तो महबूबा के बयान में न तो पाकिस्तान को और न ही दहशतगर्दों को कोई जगह मिले.

तो क्या महबूबा वाकई आने वाले दिनों में नागपुर से कंट्रोल होने जा रही हैं? महबूबा के मन की बात तो वो ही जाने. देश के बाकी हिस्सों में जो भी हो, लेकिन लग रहा है कश्मीर में अच्छे दिन आने वाले हैं.

लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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