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Updated: 11 सितम्बर, 2019 06:36 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
  @msTalkiesHindi
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आंध्र प्रदेश में बदले की राजनीति तो उसी वक्त शुरू हो गयी थी जब मुख्यमंत्री बनते ही जगनमोहन रेड्डी ने अफसरों की पहली मीटिंग ली - और मालूम हुआ कि नजर तो पहले से ही नारा चंद्रबाबू नायडू के बंगले पर लगी हुई थी. अब तो जो हो रहा है ये तो बस एक्शन प्लान का हिस्सा है जिसमें ऐसी कार्रवाइयों की बड़ी सी फेहरिस्त कुछ सीधे सीधे और कुछ परोक्ष रूप से लिखी हुई है.

आंध्र प्रदेश और जम्मू-कश्मीर के हालात में दूर दूर तक कोई वास्ता नहीं है, लेकिन घाटी के नेताओं की तरह ही TDP नेता चंद्रबाबू नायडू और उनके बेटे एन. लोकेश को नजरबंद कर दिया गया है.

वैसे कश्मीर के सियासी हालात का असर कन्याकुमारी के इलाकों में भी पहुंचने लगा है - तभी तो तमिलनाडु के MDMK नेता वाइको ने अब्दुल्ला परिवार को नजरबंद किये जाने के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है. दरअसल, जम्मू-कश्मीर में धारा 370 हटाये जाने के दौरान संभावित विरोध को देखते हुए पूर्व मुख्यमंत्रियों फारूक अब्दुल्ला, उमर अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती सहित कई नेताओं को नजरबंद रखा गया है.

हुआ ये कि आंध्र प्रदेश में एक टीडीपी नेता की हत्या के विरोध में चंद्रबाबू नायडू प्रदर्शन की तैयारी किये हुए थे. उसी कार्यक्रम के लिए टीडीपी महासचिव नारा लोकेश जब अथमाकुर में प्रस्तावित प्रदर्शन के रास्ते में थे तो पुलिस ने रोक लिया और हिरासत में ले लिया. पुलिस एक्शन के विरोध में सीनियर नायडू ने अपने घर पर ही सुबह 8 बजे से रात 8 बजे तक 12 घंटे के भूख हड़ताल पर चले गये हैं.

चंद्रबाबू नायडू आंध्र प्रदेश में राजनीतिक हिंसा के खिलाफ सड़क पर लड़ाई लड़ने जा रहे थे, लेकिन उससे पहले ही जगनमोहन रेड्डी की पुलिस ने उन्हें और उनके बेटे नारा लोकेश को नजरबंद कर दिया.

सियासत के 'बदलापुर' में किस्से तो बहुत हैं, मगर तरीका एक ही है!

आंध्र प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू भी राजनीतिक हिंसा के खिलाफ वैसे ही सड़क पर उतरने जा रहे थे, जैसे केंद्र में सत्ताधारी बीजेपी केरल या पश्चिम बंगाल की सड़कों पर कई बार आंदोलन कर चुकी है. बीजेपी नेताओं के खिलाफ केरल की लेफ्ट सरकार और पश्चिम बंगाल सरकार ने भी अपनी ओर से कोई कसर बाकी न रखी, लेकिन चंद्रबाबू नायडू के खिलाफ जगनमोहन रेड्डी सरकार दो कदम आगे बढ़ी नजर आ रही है.

जगनमोहन रेड्डी के भीतर बदले की राजनीतिक आग भभक तो काफी पहले से रही होगी, लेकिन वो कुछ चीजें खुद पर भी लागू करते हैं - और टीडीपी नेताओं और कार्यकर्ताओं के साथ साथ आंध्र प्रदेश में YSRCP नेताओं को भी नजरबंद किया जाना उसी का हिस्सा है. आंध्र प्रदेश पुलिस ने ये कदम गुंटूर में उठाया है - क्योंकि टीडीपी नेताओं के खिलाफ जगनमोहन रेड्डी के समर्थक भी जवाबी मुहिम शुरू करने की तैयारी कर रहे थे.

देखा जाये तो जगनमोहन रेड्डी की असली खुन्नस तो कांग्रेस नेतृत्व से बनती है, लेकिन परिस्थितियां ही ऐसी हैं कि उससे पहले चंद्रबाबू नायडू और उनकी पार्टी के नेता चपेट में आ गये हैं.

जगनमोहन रेड्डी का सियासी सफर अर्श से फर्श - और फिर फर्श से अर्श तक असीम सब्र और अपार संघर्षों से भरा हुआ है - जगनमोहन रेड्डी ने बहुत अच्छे और बहुत ही बुरे दिन दोनों देखे हैं. बल्कि कहें कि भोगा हुआ है. एक कारोबारी के रूप में जगनमोहन का कॅरियर एक दशक तक बगैर किसी मुश्किल के लगातार ऊपर चढ़ता गया, लेकिन उनके पिता की मौत के बाद तो जैसे दुनिया ही बदल गयी.

पहली बार 2004 में जगनमोहन की राजनीतिक महत्वाकांक्षा सामने आयी. ये तभी की बात है जब केंद्र में NDA की वाजपेयी सरकार थी और सोनिया गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस सत्ता हासिल करने की में जुटी हुई थी. ठीक उसी वक्त वाईएस राजशेखर रेड्डी भी आंध्र प्रदेश में सीईओ चंद्रबाबू नायडू के खिलाफ जी जान से जुटे हुए थे. IT को काफी प्रोत्साहन देने को लेकर तब नायडू आंध्र प्रदेश के सीईओ भी कहे जाते रहे.

कांग्रेस नेतृत्व ने जगनमोहन 2004 में मौका नहीं दिया और पांच साल तक इंतजार कराया. हो सकता है तब जगनमोहन के पिता ने कमलनाथ और अशोक गहलोत की तरह बेटे को टिकट के लिए जिद न की हो. बहरहाल, 2009 में सीनियर रेड्डी बेटे को टिकट दिलवाने में कामयाब रहे और जगनमोहन कडप्पा से संसद भी पहुंच गये - लेकिन तभी जगनमोहन पर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा. एक हेलीकॉप्टर दुर्घटना में वाईएस राजशेखर रेड्डी की मौत हो गयी.

फिर तो सब कुछ बदल गया. जगनमोहन पिता की जगह मुख्यमंत्री बनना चाहते थे. सोनिया गांधी से मिले भी लेकिन कांग्रेस नेतृत्व ने तो जगनमोहन के पिता की याद में श्रद्धांजलि यात्रा तक नहीं निकालने दिया. तब आंध्र प्रदेश के ज्यादातर विधायक जगनमोहन को समर्थन दे रहे थे, लेकिन सारी चीजें दरकिनार करते हुए कांग्रेस नेतृत्व ने के. रोसैया को मुख्यमंत्री बना दिया और जगनमोहन बागी हो गये.

हवाई हादसे में राजशेखर रेड्डी की मौत से दुखी कई समर्थकों ने आत्महत्या कर ली. रोके जाने के बावजूद जगनमोहन ने सांत्वना यात्रा निकाली और आलाकमान के फरमानों को दरकिनार करते हुए जारी रखा - ये कहते हुए कि ये सब वो निजी हैसियत से कर रहे हैं.

कांग्रेस नेतृत्व से टकराने के चलते जगनमोहन रेड्डी के खिलाफ कई केस दर्ज किये गये. 16 महीने तक जेल में रहे. जब आंध्र प्रदेश को विभाजित करने का फैसला यूपीए की मनमोहन सिंह सरकार ने किया तो जगनमोहन जेल में ही भूख हड़ताल पर बैठ गये. 125 घंटे की भूख हड़ताल के बाद उनका शुगर और ब्लड प्रेशर का स्तर तेजी से नीचे चला गया, फिर सरकार ने जगनमोहन को अस्पताल में भर्ती कराया. 29 नवंबर 2010 को जगनमोहन ने बतौर कांग्रेस सांसद लोक सभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया. हफ्ते भर के बाद ये भी घोषणा कर दी कि वो 45 दिनों में अपनी नई राजनीतिक पार्टी बना लेंगे. फिर पार्टी भी बन गयी वाईएसआर कांग्रेस, लेकिन इसमें 'वाईएसआर' का मतलब 'वाईएस राजशेखर रेड्डी' से नहीं बल्कि, 'युवजन श्रमिक रायतू कांग्रेस पार्टी' से है.

कांग्रेस नेता पी. चिदंबरम और डीके शिवकुमार के मामलों में कांग्रेस नेतृत्व केंद्र की मोदी सरकार पर बदले की राजनीति करने का आरोप लगा रहा है. राहुल गांधी और कपिल सिब्बल जैसे नेताओं के कई बार ऐसे बयान आ चुके हैं. अगर जगनमोहन रेड्डी के खिलाफ यूपीए सरकार के दौरान हुई कार्रवाई की तुलना करें तो बहुत फर्क नहीं लगता. अभी तो जो हो रहा है उसमें विपक्षी राजनीतिक दल सत्ताधारी पार्टी पर इल्जाम लगा रहा है, जगनमोहन रेड्डी तो कांग्रेस के अपने ही बच्चे थे.

जगनमोहन के मुश्किल दिनों में ही आंध्र प्रदेश की कमान चंद्रबाबू नायडू के हाथों में आ गयी जिन्हें बड़ी मेहनत से जगनमोहन के पिता ने सत्ता से बेदखल किया था. यही वजह रही होगी कि बदले की राजनीति जगनमोहन रेड्डी ने मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठते ही शुरू कर दी थी.

ये बात अलग है कि जगनमोहन रेड्डी को कांग्रेस के खिलाफ राजनीतिक बदला लेने का का अभी कोई मौका नहीं मिला है, लेकिन अभी तो वो राजनीति के रास्ते पर दौड़ना शुरू किये हैं. अब तक तो वो जैसे तैसे लड़खड़ाते हुए आगे बढ़ने की कोशिश कर रहे थे.

देखा जाये तो चंद्रबाबू नायडू के खिलाफ आंध्र प्रदेश में मुख्यमंत्री जगनमोहन रेड्डी वैसे ही कैंपेन चला रहे हैं जैसे बीजेपी देश में 'कांग्रेस मुक्त भारत' अभियान. 'नायडू मुक्त आंध्र प्रदेश' की तरह भी इसे समझा जा सकता है. हालांकि, जगनमोहन और चंद्रबाबू नायडू की ये लड़ाई 'जयललिता और करुणानिधि' के बदले की कार्रवाई के ज्यादा करीब लगती है.

ये तुलनात्मक दायरा थोड़ा बढ़ायें तो ये 'शाह बनाम चिदंबरम' के भी काफी करीब लगता है. चर्चा रही कि पी. चिदंबरम को जांच एजेंसियों की सख्ती का इसलिए सामना करना पड़ा कि जब सोहराबुद्दीन एनकाउंटर केस में बीजेपी नेता जेल गये थे तब चिदंबरम गृह मंत्री थे - और अब उस कुर्सी पर अमित शाह मजबूती से बैठ चुके हैं.

वैसे जगनमोहन रेड्डी के कुछ उसूल भी हैं जो YSRCP को बीजेपी से अलग जगह खड़ा करते हैं. अभी तक YSRCP को ऐसा मौका तो नहीं मिल पाया है जब किसी पार्टी के दो-तिहाई विधायक उनकी पार्टी ज्वाइन करने के लिए दस्तक दे रहे हों. अभी तो ये सिर्फ बीजेपी के साथ हो रहा है - टीडीपी के राज्य सभा सदस्यों के अलावा गोवा और सिक्किम विधानसभा में. जिस तरह टीडीपी के दो तिहाई राज्य सभा सदस्यों ने दलबदल विरोधी कानून की सीमाओं का फायदा उठाते हुए बीजेपी ज्वाइन कर लिया, वैसे ही गोवा और सिक्किम के विधायकों ने किया और भगवा ओढ़ लिया.

बीजेपी से अलग जगनमोहन रेड्डी ने कुछ नियम और शर्तें तय कर रखे हैं और उन सिद्धांतों पर सख्ती से अमल भी करते हैं - अगर किसी दूसरी पार्टी का उम्मीदवार चुनाव जीतता है और फिर वो उनकी पार्टी में शामिल होने के लिए आगे आता है तो उसे पहले अपनी मौजूदा पार्टी से इस्तीफा देना होगा तभी उसे YSRCP में एंट्री मिल पाएगी.

जगनमोहन की नजर लगी थी नायडू के बंगलों पर!

कुर्सी संभाने के महीने भर बाद ही जगनमोहन रेड्डी ने चंद्रबाबू नायडू के मौजूदा बंगले सहित 20 इमारतों को गैरकानूनी घोषित कर दिया था. नोटिस में वो घर भी शामिल है जिसमें वो फिलहाल रह रहे हैं. वाईएसआर विधायक रामकृष्णा रेड्डी का कहना है कि नायडू को अवैध मकान में रहने की नैतिक जिम्मेदारी लेनी चाहिए और फालतू की बहस छोड़ कर उसे खाली कर देना चाहिये.

naidu house buildingनायडू के 20 बंगलों को सरकारी नोटिस मिला है

1. 'प्रजा वेदिका' जमींदोज कर दी गयी: मंगलागिरि से विधायक रामकृष्ण रेड्डी का कहना है कि अगर तेलुगू देशम पार्टी के अध्यक्ष घर खाली नहीं करते हैं तो वो त्वरित कार्रवाई के लिए शिकायत दर्ज कराएंगे. वाईएसआर विधायक कृष्णा नदी के किनारे बनी सभी अवैध इमारतों को गिराये जाने को लेकर मुहिम चला रहे हैं.

रामकृष्ण रेड्डी कह रहे हैं कि चंद्रबाबू नायडू खुद अपनी बातों पर नहीं टिक पा रहे हैं. रामकृष्ण रेड्डी ने याद दिलाते हुए कहते हैं कि चंद्रबाबू नायडू ने 6 मार्च, 2016 को विधानसभा में कहा था, 'वो इमारत सरकार की है' और वो उसी आधार पर खाली करने के लिए बाध्य हैं. चंद्रबाबू नायडू के पसंदीदा बंगले ‘प्रजा वेदिका’ को तो जगनमोहन के आते ही सरकारी मुलाजिमों ने ढहा दिया था.

naidu praja vedika demolishedकभी 'प्रजा वेदिका' आंध्र प्रदेश की सबसे ताकतवर इमारत हुआ करती रही!

अमरावती बनी इमारत का इस्तेमाल चंद्रबाबू नायडू टीडीपी की बैठकों, कार्यकर्ताओं से मुलाकातों और दूसरे राजनीतिक कामकाज के लिए किया करते थे. करीब 8 करोड़ रुपये की लागत से चंद्रबाबू नायडू ने वो इमारत 2017 में बनवायी थी. टीडीपी नेता ने आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट में जगनमोहन सरकार के आदेश के खिलाफ अर्जी दी थी, लेकिन वो खारिज हो गयी और ऐसा होते ही आनन फानन में इमारत ढहा दी गयी.

2. बिजली खरीद घपले की जांच के आदेश: जगनमोहन सरकार का दावा है कि बिजली खरीद से जुड़े समझौतों में भारी गड़बड़ी हुई है. मुख्यमंत्री ने तत्कालीन CM, तत्कालीन ऊर्जा मंत्री और समझौते से जुड़े अफसरों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई का आदेश दिया है. मुख्यमंत्री जगनमोहन रेड्डी ने अधिकारियों से वो रकम भी वसूलने को कहा है जो राज्य को नुकसान हुआ है. जगनमोहन रेड्डी का आरोप है कि सौर और पवन ऊर्जा वाली कंपनियों के साथ जो समझौता हुआ था उससे आंध्र प्रदेश को 2,636 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है.

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लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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