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Updated: 30 नवम्बर, 2017 10:19 PM
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देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी कांग्रेस, इस समय धर्म संकट के दौर से गुज़र रही है. इसलिए नहीं कि कांग्रेस को राहुल गांधी का धर्म बताने के लिए जनेऊ वाली तस्वीरें दिखानी पड़ी. बल्कि इसलिए कि कांग्रेस तय नहीं कर पा रही - वो अपना पुराना वाला मुस्लिम प्रेमी सेक्युलर चरित्र बरक़रार रखना चाहती है या मौजूदा समय की ज़रूरत के मुताबिक़, हिंदूवादी सेक्युलर होकर बहुसंख्यक वोट बैंक में सेंध लगाना चाहती है. 2014 के बाद से कांग्रेस के अंदर से एक बड़े परिवर्तन के लिए आवाज़ें उठती रही हैं. इनमें से एक आवाज़ थी राहुल गांधी को पूरी तरह से पार्टी की कमान दे दिए जाने की और दूसरी पार्टी की छवि बदलने की. ख़ासतौर पर तब जब कि कांग्रेस की अपनी एंटनी कमेटी ने चुनाव समीक्षा रिपोर्ट में ये कह दिया कि पार्टी को 'एंटी हिंदू छवि' की वजह से नुकसान उठाना पड़ा है (कम से कम अखबारों में उस समय यही छपा था).

इस पर यकीन इसलिए भी होने लगा क्योंकि उत्तराखांड और उत्तरप्रदेश के चुनाव के दौरान कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी के दौरों में मंदिर के कार्यक्रम भी लिखे जाने लगे. हो सकता है राहुल गांधी इसके पहले भी मंदिर जाते रहे हों, लेकिन उनके मंदिर जाने के कार्यक्रमों का प्रचार लगभग इसी समय शुरू हुआ. तिलक लगाए, पूजा करते राहुल गांधी ट्विटर / फेसबुक पर दिखाई पड़ने लगे. यहां तक कि अयोध्या भी चले गए, जहां 1992 में विवादित ढांचे के गिरने के बाद नेहरू-गांधी परिवार का कोई सदस्य नहीं गया था. भले ही राहुल गांधी रामजन्मभूमि नहीं गए, लेकिन वहां से महज़ एक किलोमीटर दूर हनुमानगढ़ी तक जा कर कांग्रेस पार्टी की नीति में आ रहे एक बड़े बदलाव का संकेत ज़रूर दे दिया.

राहुल गांधी, धर्म, गुजरात, गुजरात चुनावराहुल बीजेपी से, बीजेपी वाले अंदाज में टक्कर ले रहे हैं और आम लोगों के बीच लोकप्रिय हो रहे हैं

गुजरात चुनाव में राहुल गांधी के मंदिर दर्शन का एक समानांतर कार्यक्रम है. अमूमन मंदिर दर्शन से प्रचार अभियान की शुरूआत करने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तुलना में राहुल गांधी गुजरात में इस बार प्रचार के दौरान मोदी से ज़्यादा मंदिरों में माथा टेक चुके हैं. लेकिन यहीं आकर पेंच फंस भी गया है. सोमनाथ मंदिर में दर्शन के दौरान डायरी में कथित एंट्री पर ऐसा हंगामा खड़ा हुआ कि कांग्रेस पार्टी को राहुल गांधी की तस्वीरें जारी कर के उन्हें - जनेऊधारी हिंदू की संज्ञा देनी पड़ी.

इसके बाद राहुल गांधी रैलियों में माथे पर भगवा तिलक लगाए दिख रहे हैं. पार्टी के प्रवक्ता टीवी चैनल्स पर दहाड़ कर बोल रहे हैं कि कांग्रेस से बड़ी हिंदूवादी और राष्ट्रवादी पार्टी कोई नहीं है. और उनके इन बयानों को सुन कर - कांग्रेस को अपनी पार्टी मानने वाले, दलित, पिछड़े, मुसलमान - सोच में पड़ गए हैं. हालांकि राजनीतिक पंडितों का एक बड़ा तबका ये मानता है कि गुजरात का मुस्लिम वोटर कांग्रेस के साथ रहने को मजबूर है क्योंकि उसके पास दूसरा विकल्प नहीं है. इसलिए कांग्रेस मुसलमान वोटर को 'टेकन फॉर ग्रांटेड' मान रही हो सकती है. लेकिन क्रिकेट जैसी अनिश्चितताओं वाली राजनीति में - क्या किसी को भी 'टेकन फॉर ग्रांटेड' माना जा सकता है?

राहुल गांधी, धर्म, गुजरात, गुजरात चुनावदेखा जाए तो राहुल का ये नया रूप गुजरात में लोगों को पसंद आ रहा है और वो इसकी सराहना कर रहे हैं

वर्तमान में देश की राजनीतिक पार्टियों में कुछ बातें बड़ी साफ़ हैं. मौजूदा व्यवस्था में जैसे कोई पार्टी कम्युनिस्ट पार्टी से ज़्यादा कम्युनिस्ट नहीं हो सकती, कोई पार्टी बहुजन समाज पार्टी से ज़्यादा दलित की नज़दीकी नहीं मानी जा सकती, वैसे ही हिंदू वोट बैंक पर भी बीजेपी ने एक तरह से अपना ठप्पा लगाया है. ये अलग बात है कि हिंदू वोट बैंक आगे जातियों में बंट जाता है. लेकिन बात अगर खांटी हिंदुत्व पर वोट देने की हो - तो लोगों के ज़ेहन में हिंदूवादी पार्टी के नाम पर बीजेपी ही आती है. ऐसे में कांग्रेस, राहुल गांधी का जनेऊ दिखा कर, उन्हें सनातनी ब्राह्मण बता कर, अयोध्या में ताले किसने खुलवाए थे ये याद दिला कर - अगर ये सोचती है कि वो बीजेपी से बड़ी हिंदुत्ववादी पार्टी का तमगा पा लेगी , ये एक ख़तरनाक दांव लगता है.

गुजरात, बीजेपी के लिए हिंदुत्व की प्रयोगशाला है, ये बात बीजेपी के विरोधियों ने ही प्रचारित की. और अब बीजेपी की उसी लैब में, बीजेपी की बिसात पर, बीजेपी की पसंद के मुद्दों के जाल में उलझ कर- कांग्रेस एक ऐसे चुनाव में गलत दांव चल रही हो सकती है जिसमें दो दशक बाद पहली बार उसके पक्ष में कुछ माहौल बनता दिख रहा था.

लिहाज़ा क्रिकेट की भाषा में कहें तो कांग्रेस को अपना नेचुरल गेम खेलना चाहिए, बजाए बीजेपी के अंदाज़ में खेलने की कोशिश करने के. क्योंकि हिंदुत्व का नारा कांग्रेस जब जब लगाएगी- लोग केरल के यूथ कांग्रेस कार्यकर्ताओं की याद दिलाएंगे जो बीफ आंदोलन के नाम पर गाय के बछड़े का सिर काट कर चौराहे पे घुमा रहे थे या अदालत में रामसेतु पर दिए हलफनामे के सवाल उठाएंगे. फिर किरण रिजिजू या बीजेपी के गोवा के मंत्रियों के बयान- उन तस्वीरों की याद को धुंधली नहीं कर पाएंगे.

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लेखक

रोहित सरदाना रोहित सरदाना @rohitsardanaofficialpage

लेखक आजतक चैनल में संपादक हैं और सामाजिक- राजनैतिक मुद्दों पर पैने विचार रखते हैं

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