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Updated: 02 जून, 2015 05:24 AM
धीरेंद्र राय
धीरेंद्र राय
  @dhirendra.rai01
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"मित्रों, समस्या सीमा पर नहीं है, समस्या दिल्ली में है. हमें तो दिल्ली में भी उसका हल ढूंढना पड़ेगा." 15 सितंबर 2013 को ये कहते हुए पूर्व सैनिकों की रैली में इशारा कर रहे थे कि अब यूपीए सरकार को उखाड़ फेंकने का समय आ गया है. तब दो दिन पहले उन्हें भाजपा ने प्रधानमंत्री पद का अपना उम्मीदवार घो‍षि‍त किया था. इसी रैली में उन्होंने सीमा सुरक्षा, सैनिक, पूर्व सैनिक और शहीदों को लेकर कई बातें की थीं. आज मोदी प्रधानमंत्री हैं. उस दिन मंच पर साथ बैठे पूर्व सेनाध्यक्ष वीके सिंह आज मंत्री हैं. दोनों की मनचाही मुराद पूरी हो गई है. लेकिन उस मंच से जिन लोगों के बारे में बातें की गई थीं, वे अभी आस लगाए बैठे हैं. कुछ तो नाउम्मीद भी होने लगे हैं.

सरकार यू-टर्न पर यू-टर्न ले रही है.

ताजा मामला 1999 कारगिल वॉर के शहीद कैप्टन सौरभ कालिया से जुड़ा है. कैप्टन कालिया और उनके रेजिमेंट के पांच सिपाहियों ने उस संघर्ष की शुरुआती शहादत दी थी. कैप्टन कालिया जब गश्ती पर थे, तभी उन्हें दुश्मन सैनिकों ने पकड़ लिया था. उन्हें यातनाएं दीं. पाकिस्तान ने उनका क्षत-विक्षत शव लौटाया. आंखें निकाल ली गई थीं, कानों में गर्म सलाखों के निशान थे और गुप्तांग को काट दिया गया था. इसके अलावा पैर और दांत टूटे हुए थे. सिर की हड्डी में भी फ्रैक्चर था. 16 साल बाद यह जिक्र दोबारा इसलिए किया जा रहा है कि मोदी सरकार ने पाकिस्तान सेना की उस बर्बरता के खिलाफ पहले तो इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टि‍स में जाने से मना कर दिया. जब इस फैसले के ख‍िलाफ देशभर में हंगामा हुआ तो विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने कहा, कि हम इंटरनेशनल कोर्ट में यह मामला ले जा सकते हैं. सरकार की इस हां-ना पर शहीद कैप्टन कालिया की मां विजया ने इतना ही कहा कि 16 साल बाद भी सरकार का रुख स्पष्ट नहीं है. यदि सरकार वाकई कुछ करना चाहती है तो वह ठोस कुछ करके दिखाए.

तो क्या वाकई ये सरकार सीमा, सैनिक और शहीदों के लिए संवेदनशील नहीं है?

मोदी ने अपने चुनाव अभ‍ियान की एक ऐतिहासिक रैली अरुणाचल में भी की थी. उत्तर-पूर्व के इस राज्य से उन्होंने पूरे देश को भरोसा दिलाया था कि यदि उनकी सरकार बनी तो चीन से सटी सीमा पर भारत की ओर से कोई लचीला रवैया नहीं अपनाया जाएगा. सरकार बन गई, लेकिन चीनी सेना की घुसपैठ जारी रही है. पिछले वर्ष चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के भारत आगमन के दौरान भी वहां की आर्मी ने लद्दाख क्षेत्र में घुस आई. मोदी सरकार ने मीडिया को बताया कि उन्होंने इस पर सख्त एतराज जताया है. तब तक दोनों नेताओं की तीन बार मुलाकात हो चुकी है. लेकिन सीमा विवाद को छोड़कर बाकी सब मुद्दों पर बात हुई है. पाकिस्तान से सटी सीमा भी रह-रहकर सुलगती रहती है. दोनों ओर से गोली-बारी होती है.

इन सीमाओं की रक्षा कर चुके सैनिक भी मोदी से खफा हैं. रेवाड़ी की रैली में मोदी ने सबसे बड़ी उम्मीद उन्होंने बंधाई थी, वह थी 'वन रैंक, वन पेंशन' की. एक साल से ज्यादा बीत गया, लेकिन मोदी अपना पहला वादा पूरा नहीं कर पाए हैं. कुछ दिन पहले यह मुद्दा एक बार फिर गरमा गया, जब राहुल गांधी ने कहा कि वे जल्द ही पूर्व सैनिकों से मिलेंगे. विपक्ष के हाथ कहीं एक और मुद्दा न लग जाए, इसलिए प्रधानमंत्री मोदी ने रविवार को 'मन की बात' कार्यक्रम में जोर देकर कहा कि पूर्व सैनिकों की इस मांग का 'हल' वे ही निकालेंगे. लेकिन उनके इस कथन ने नई परेशानी खड़ी कर दी है. पूर्व सैनिक पसोपेश में हैं कि उन्होंने मांग पूरी करने की बात क्यों नहीं कही. वे कौन सा हल निकालने वाले हैं. कहीं ये मामले को और पेंचीदा बनाने की तैयारी तो नहीं.

लेखक

धीरेंद्र राय धीरेंद्र राय @dhirendra.rai01

लेखक ichowk.in के संपादक हैं.

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