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Updated: 04 दिसम्बर, 2015 06:30 PM
राहुल मिश्र
राहुल मिश्र
  @rmisra
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बिहार चुनावों में महागठबंधन की चलाई पुरवइया हवा ने मानो बीजेपी की उलटी गिनती शुरू कर दी है. बिहार की हार से न सिर्फ मोदी लहर थम गई बल्कि उनके प्रमुख क्षत्रप अमित शाह का अश्वमेध यज्ञ भी खंडित हो गया. दो दिन पहले आए गुजरात के निकाय चुनावों के नतीजों ने मोदी-शाह की जोड़ी को शर्मिंदगी के सिवाए कुछ नहीं दिया. अभी तक जहां दोनों 2014 के लोकसभा चुनावों में मिली सफलता का विजय गीत गा रहे थे, इन बैक टू बैक हार ने उस गीत को बेसुरा कर दिया है. लेकिन हार का यह सिलसिला तो अब शुरू हुआ है. पांच महीने में पांच अन्य राज्यों में चुनाव होने जा रहे हैं और आंकड़े कहते हैं कि इन पांचो राज्य (तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल, केरल, पुडुचेरी और असम) में बीजेपी को शर्मिंदगी के सिवाए कुछ नहीं मिलेगा.

केरल में विधानसभा चुनाव अप्रैल 2016 में होने हैं. पिछला चुनाव 2011 में हुआ था जिसमें कांग्रेस नेतृत्व के यूडीएफ गठबंधन को 140 में से 72 सीटों पर जीत मिली थी. कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीआई) के नेतृत्व वाले एलडीएफ गठबंधन को 68 सीटों पर जीत मिली थी. इन चुनावों में बीजेपी नेतृत्व के एनडीए गठबंधन ने सभी 140 सीटों पर चुनाव लड़ा और बिना कोई सीट जीते महज 6 फीसदी वोट शेयर ले सका. ज्यादातर पोल सर्वे ने 2011 में बीजेपी के लिए 2-6 सीटों की उम्मीद जताई थी.

पश्चिम बंगाल में भी चुनाव अप्रैल 2016 में होंगे. बीते चुनावों में ममता बनर्जी की त्रिनमूल कांग्रेस ने कांग्रेस के साथ यूपीए गठबंधन से चुनाव लड़ राज्य से लेफ्ट पार्टियों के गठबंधन को जड़ समेत निकालकर फेंक दिया था. 294 सदस्यों की इस विधानसभा में ममता को 184 सीट मिली और कांग्रेस को 42 सीट मिली थी. वहीं लेफ्ट पार्टी गठबंधन को महज 62 सीट मिली. इन चुनावों में भी बीजेपी सभी सीटों पर चुनाव लड़ी लेकिन वह अपना खाता खोलने में भी सफल नहीं हो पाई. हालांकि पार्टी ने अपने वोट शेयर में डबल डिजिट का इजाफा करते हुए इन चुनावों में 16 फीसदी वोट प्राप्त किए.

तमिलनाडु विधानसभा की 234 सीटों के लिए चुनाव भी अप्रैल 2011 में हुए थे. इन चुनावों में एक तरफ जयललिता की एआईएडीएमके और लेफ्ट पार्टियों का गठबंधन था और दूसरी तरफ डीएमके के साथ कांग्रेस का गठबंधन बना था. हालांकि इस राज्य में बीजेपी का अस्तित्व न के बराबर था लेकिन राष्ट्रीय पार्टी होने के नाते उसने सभी सीटों पर अकेले उम्मीदवार उतारने का फैसला किया था. लेकिन चुनाव से कुछ दिन पहले एमडीएमके, जेडीयू, बीएसपी जैसी दलों के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ा. इन चुनावों में एआईएडीएमके गठबंधन ने 203 सीटे जीतीं वहीं डीएमके गठबंधन के हांथ केवल 31 सीटें लगी. बीजेपी जहां अपना खाता नहीं खोल सकी, वहीं राज्य में उसे महज 2 फीसदी वोट शेयर मिला.

पुडुचेरी विधानसाभा की 30 सीटों के लिए चुनाव अप्रैल 2011 में हुआ था. इन चुनावों मे कांग्रेस के नेतृत्व में डीएमके और पीएमके ने गठबंधन बनाकर चुनाव लड़ा था. वहीं दूसरी तरफ रंगास्वामी कांग्रेस के नेतृत्व में एआईएडीएमके, सीपीएम और सीपीआई ने गठबंधन बना कर चुनाव लड़ा. वहीं बीजेपी ने इन चुनावों में केवल 22 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे. चुनाव के नतीजों में रंगास्वामी कांग्रेस गठबंधन ने 17 सीटों पर जीत दर्ज की वहीं कांग्रेस-डीएमके गठबंधन को महज 10 सीटें मिली. बीजेपी यहां भी अपना खाता नहीं खोल पाई.

असम की 126 सीटों के लिए अप्रैल 2011 में हुए चुनावों में कांग्रेस ने 78 सीटों पर जीत दर्ज कर सरकार बनाई थी. इन चुनावों में बीजेपी ने 120 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे और महज 5 सीटों पर बीजेपी के उम्मीदवार जीत दर्ज करने में सफल हुए थे.

इन 5 राज्यों में चुनाव अप्रैल 2016 (अब से 5 महीने बाद) में होंगे. पिछले चुनावों के नतीजों को देखकर साफ है कि महज असम को छोड़कर बाकी चारों राज्य में बीजेपी का राजनीतिक अस्तित्व अभी लिखा ही नहीं गया है. बीते 18 महीनों में भी इन राज्यों में किसी तरह के राजनीतिक उथल-पुथल के संकेत नहीं मिले हैं. लिहाजा साफ तौर पर कहा जा सकता है इन सभी चुनावों के एक साथ आने वाले नतीजे बीजेपी के लिए और शर्मिंदगी का सबब बनेंगे.

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लेखक

राहुल मिश्र राहुल मिश्र @rmisra

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में असिस्‍टेंट एड‍िटर हैं

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