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Updated: 21 जुलाई, 2016 05:11 PM
राकेश उपाध्याय
राकेश उपाध्याय
  @rakesh.upadhyay.1840
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यूपी में पूर्व सीएम मायावती के खिलाफ बीजेपी उपाध्यक्ष दयाशंकर सिंह के अभद्र बयान को लेकर सूबे के कई बड़े आरएसएस नेताओं ने गहरी चिंता जताई है. यूपी बीजेपी की नवगठित टीम को लेकर भी कई वरिष्ठ प्रचारकों ने सवाल उठाए हैं कि आखिर कैसे पार्टी की रीति-नीति को दरकिनार कर बड़े नेताओं के बेटे-बेटियों, रिश्तेदारों और उनके चाटुकारों को ही संगठन में अहम ओहदे दे दिए गए. ऐसे नेताओं को बीजेपी ने यूपी में अपना चेहरा बना लिया है जिनकी बुनियाद कहीं दागदार है तो संगठन के संस्कारों और सरोकारों का जिनके जीवन में दूर-दूर तक कोई नाता नहीं है.

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यूपी बीजेपी के नए विवादित और वंशवादी नेता-पुत्रों की टोली से दुखी यूपी आरएसएस से जुड़े ऐसे ही एक वरिष्ठ प्रचारक ने भारतीय जनता पार्टी के संस्थापकों में शुमार रहे भारतीय जनसंघ के कद्दावर नेता, आरएसएस के प्रचारक दिवंगत नानाजी देशमुख के हस्तलिखित दस्तावेजों के कुछ पन्ने जारी किए हैं.

इस हस्तलिखित दस्तावेज में नानाजी देशमुख ने 80 के दशक में भारतीय जनता पार्टी को चेतावनी दी थी कि उसे सत्ता की दौड़ में शामिल न होकर देश की राजनीतिक संस्कृति में बदलाव के लिए काम करना चाहिए. नाना जी ने इस मामले में आरएसएस के कद्दावर नेता भाऊराव देवरस को सुझाव दिया था कि अगर भारतीय जनता पार्टी देश की राजनीतिक संस्कृति को बदल पाने में नाकाम रहती है तो आरएसएस को चाहिए कि वो उसे समाप्त कर दे.

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नानाजी देशमुख के दुर्लभ दस्तावेज की प्रति:

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नानाजी द्वारा लिखा उनका पता और तारीख

4.9.1988 (रविवार), मुंबई

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 सत्ता की दौड़ में शामिल होने पर नानाजी की हिदायत

आज भाऊराव देवरस से सम्मिलित चर्चा है...निम्न पहलुओं पर ध्यान दिया जाना चाहिए.

1-बीजेपी की दिशा बदलनी चाहिए. राजनीति में हम भारतीय संस्कृति को प्रभावी बनाएं. भारतीय दृष्टिकोण न रहा तो सत्ता हाथ में आने पर भी राष्ट्रजीवन में कोई सुधार संभव नहीं होगा.

2-यह कार्य केवल वर्तमान नेतृत्व के आधार पर नहीं हो पाएगा. प्रादेशिक स्तर पर सैकड़ों जमीनी कार्यकर्ताओं को इसमें लगाना होगा.

3-हर स्तर पर ऐसी टीम खड़ी करनी होगी जो विधानमंडलों या संसद के अन्दर कदम नहीं रखेगी. तभी वर्तमान राजनीति का चरित्र बदलना संभव हो सकेग.

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  सत्ता की दौड़ में शामिल होने पर नानाजी की हिदायत

4-इसी बात को ध्यान में रखकर हमने जनसंघ की राजनीतिक शैली विकसित की थी, परिणाम स्वरूप शून्य में से 1967 तक अर्थात 15 वर्षों में देश के विरोधी दलों में सर्वोच्च स्थान प्राप्त कर पाए. सत्ता को हमने सर्वस्व नहीं माना. अतः सत्ता हमारे निकट आने लगी थी.

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5- बिना सत्ता को लक्ष्य बनाए राजनीति में काम करना अर्थहीन है, यह दिशा अपनाकर ही हम इस दुर्दशा में पहुंच गए. कारण सत्ता पाने के लिए हमने आदर्शवाद को छोड़कर अवसरवाद की महत्ता बढ़ाई. उसी का प्रतिबिंब आज का परिणाम है. यह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सिद्धांतों के प्रतिकूल है.....मेरा स्पष्ट शब्दों में कहना है कि अगर हम राजनीति में मौलिक परिवर्तन नहीं कर सकते हैं तो हमें भारतीय जनता पार्टी को समाप्त कर देना चाहिए.

लेखक

राकेश उपाध्याय राकेश उपाध्याय @rakesh.upadhyay.1840

लेखक भारत अध्ययन केंद्र, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में प्रोफेसर हैं

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