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Updated: 27 सितम्बर, 2018 06:26 PM
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मस्जिद में नमाज पढ़ना इस्लाम का अभिन्न अंग है या नहीं? सुप्रीम कोर्ट कोर्ट को यही तय करना था. तय ये भी करना था कि इस बात की सुनवाई के लिए इसे बड़ी बेंच को रेफर किया जाये या नहीं? अब सुप्रीम कोर्ट का फैसला है कि सुनवाई के लिए बड़ी बेंच की जरूरत नहीं है.

मुद्दे की बात ये है कि सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से अयोध्या मामले के मूल भूमि विवाद पर सुनवाई का रास्ता साफ हो गया है. कोर्ट ने सुनवाई की तारीख मुकर्रर करते हुए बताया है कि ट्रायल तीन जजों की बेंच के सामने होगा.

अयोध्या केस की सुनवाई का रास्ता साफ

अयोध्या विवाद में इस्माइल फारूकी केस मूल राम जन्मभूमि विवाद से बिलकुल अलग है, लेकिन फिलहाल इसकी खास अहमियत है. अगर ये मामला बड़ी बेंच को भेजा गया होता तो मेन केस की सुनवाई और आगे टल जाती.

ayodhya ram janm bhumi landअपने पुराने फैसले पर कायम सुप्रीम कोर्ट

देखा जाय तो सुप्रीम कोर्ट ने अपने पुराने फैसले को बरकरार रखा है और इसीलिए इसे बड़ी बेंच में भेजने से इनकार कर दिया है. 6 दिसंबर, 1992 को कारसेवकों द्वारा मस्जिद गिरा दिये जाने के बाद केंद्र सरकार ने 7 जनवरी, 1993 को अध्यादेश लाकर अयोध्या में 67 एकड़ जमीन का अधिग्रहण कर लिया था. इसके चलते बाबरी मस्जिद-राम जन्मभूमि परिसर पर भी सरकारी कब्जा हो गया. केंद्र सरकार के इसी फैसले को इस्माइल फारूकी ने सुप्रीम कोर्ट में चैलेंज किया था. इस्माइल फारूकी ने अपनी याचिका में कहा था कि धार्मिक स्थल का सरकार कैसे अधिग्रहण कर सकती है. सुनवाई के बाद 1994 में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया कि मस्जिद में नमाज पढ़ना इस्लाम का अनिवार्य हिस्सा नहीं है.

इस्माइल फारूकी केस की सुनवाई कर रहे 3 जजों में से दो जस्टिस दीपक मिश्रा और जस्टिस अशोक भूषण ने कहा कि मस्जिद में नमाज का मामला सात जजों वाली बेंच को नहीं भेजा जाएगा. तीसरे जज जस्टिस एस अब्दुल नजीर साथियों की राय से असहमत दिखे.

जस्टिस अब्दुल नजीर ने कहा कि धर्म के लिहाज से क्या आवश्यक है इस पर इस्माइल फारूकी केस में बिना किसी व्यापाक परीक्षण के निष्कर्ष निकाला गया. जस्टिस नजीर का कहना रहा कि केस में जो टिप्पणी संदेह के घेरे में थी उसे ही आधार मानकर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने तीन हिस्से में बांटने वाला फैसला सुनाया.

2019 से पहले भी आ सकता है फैसला

ये ठीक है कि सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से अयोध्या केस की सुनवाई का रास्ता साफ हो गया है, लेकिन एक नजरिये से फैसले को मुस्लिम पक्षकारों के लिए झटका माना जा रहा है. अब सुप्रीम कोर्ट में विवादित जमीन के मालिकाना हक पर सुनवाई होनी है. फिर तो जिसके पास मालिकाना हक के ठोस सबूत होंगे दावेदारी उसी की मजबूत रहेगी. इस हिसाब से देखा जाये तो सुप्रीम कोर्ट के ताजा फैसले से मंदिर-मस्जिद दोनों पर कोई असर नहीं पड़ता नजर आ रहा है.

सुप्रीम कोर्ट ने अब अयोध्या मामले की सुनवाई शुरू करने की तारीख मुकर्रर कर दी है - 29 अक्टूबर, 2018. और कुछ हो न हो इससे एक बात तो है कि अयोध्या विवाद पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला 2019 से पहले भी आ सकता है.

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2019 में आम चुनाव की संभावना को देखते हुए फैसले अपनेआप महत्वपूर्ण हो जाता है. विशेष रूप से इसलिए भी कि कांग्रेस नेता कपिल सिब्बल इसे 2019 तक टालने की सुप्रीम कोर्ट से गुजारिश भी कर चुके हैं.

अब जबकि अयोध्या केस में फैसले का काउंट डाउन शुरू हो चुका है - फिर राजनीति तो तेज होनी ही है.

बीजेपी की बल्ले बल्ले, कांग्रेस की चुनौती बढ़ी

सबको साथ लेकर चलने और सबके विकास को जामा पहनाने के चक्कर में कुछ दिन से बीजेपी अयोध्या मसले से ही दूरी बनाती नजर आ रही है. यहां तक कि हाल के बीजेपी कार्यकारिणी में पेश राजनीतिक प्रस्ताव में भी राम मंदिर निर्माण का मामला नदारद दिखा. हो सकता है बीजेपी को राष्ट्रवादी एजेंडा ज्यादा मुफीद लग रहा हो, इसलिए पैंतरा बदलने लगी हो. वैसे कुछ दिनों से बीजेपी का आधिकारिक स्टैंड यही रहा है कि वो सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत करेगी.

यूपी के डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्या और कुछ बीजेपी विधायक जरूर राम मंदिर निर्माण का दावा करते रहे हैं. बहराइच से बीजेपी विधायक मुकुट बिहारी वर्मा तो यहां तक दावा कर चुके हैं कि केंद्र में हमारी नरेंद्र मोदी की सरकार है, सुप्रीम कोर्ट ही हमारा है और राम मंदिर बन कर रहेगा. ये बात अलग है कि कुछ देर बाद वो बयान से पलट भी गये.

राम जन्मभूमि न्यास के वरिष्ठ सदस्य डॉक्टर रामविलास वेदांती का दावा है कि रामलला जहां विराजमान हैं, वहां कोई भी मस्जिद नहीं थी. अयोध्या में बहुत सी मस्जिदें हैं, मुस्लिम समाज के लोग वहीं जाकर नमाज पढ़ें - नमाज तो सड़क पर भी पढ़ी जाती है.

सुप्रीम कोर्ट के फैसले को लेकर बीजेपी सांसद सुब्रमण्यन स्वामी ने कहा कि इससे अयोध्या में राम मंदिर बनाने का रास्ता साफ हो गया है. स्वामी ने कहा कि जो अड़ंगा था वो हट चुका है - और मस्जिद को तो शिफ्ट किया जा सकता है, मंदिर को नहीं.

बीजेपी जहां चहक रही है, वहीं कांग्रेस में टेंशन बढ़ने लगी है. कांग्रेस इसी बात से परेशान है कि बीजेपी ने उसे मुस्लिम पार्टी बना दिया है. यही वजह है कि राहुल गांधी मंदिरों और मठों से लेकर कैलाश मानसरोवर तक की यात्रा किये जा रहे हैं. अब तो उनके रोड शो में 'हर हर बम बम' के नारे भी गूंजते हैं.

अयोध्या मसले को लेकर कांग्रेस की चिंता इसी बात से समझा जा सकता है कि सुप्रीम कोर्ट में बतौर वकील मौजूद उसके नेता कपिल सिब्बल ने मामले को 2019 तक टालने की गुजारिश कर डाली. अब तो राहुल गांधी को शिव भक्त हिंदू ब्राह्मण साबित करने की कवायद भी चल पड़ी है. ध्यान देने पर लगता है कि कांग्रेस सॉफ्ट हिंदुत्व से आगे बढ़ने लगी है.

हिंदू-मुस्लिम दोनों वोट बैंक को साधने के चक्कर में कहीं ऐसा न हो कि न माया मिले न राम - ये बात कांग्रेस और बीजेपी दोनों ही पर साथ साथ लागू होती है.

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