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Updated: 18 दिसम्बर, 2015 11:53 AM
अरुण जेटली
अरुण जेटली
  @ArunJaitley
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अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता निश्चित रूप से एक सर्वश्रेष्ठ मौलिक अधिकार है, लेकिन क्या अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के रूप में केवल झूठ बोलने की भी आजादी है? दिल्ली के मुख्यमंत्री, अरविंद केजरीवाल ने आपत्तिजनक उन्मादी भाषा का इस्तेमाल किया, ऐसा लगता है कि वह झूठ बोलने और नीचा दिखाने में यकीन रखते हैं.

कुछ दिन पहले, दिल्ली सरकार के एक सचिव की तलाशी ली गई और कथित तौर पर रिश्वत लेते रंगे हाथों पकड़े जाने के बाद उसे गिरफ्तार किया गया था. सीबीआई ने इस अभियान को अंजाम दिया था. दिल्ली सरकार ने इस कदम का स्वागत किया था. चार दिन बाद, मुख्यमंत्री के एक और नजदीकी अधिकारी की भी केजरीवाल शासन से पहले हुए एक कथित धोखाधड़ी के मामले में तलाशी ली गई. इसपर मुख्यमंत्री ने दो दलीलें दीं. पहला ये कि यह संविधान के संघीय ढांचे का उल्लंघन है. इसके अलावा, मुख्यमंत्री ने प्रधानमंत्री के खिलाफ अभद्र भाषा का इस्तेमाल किया और दूसरा, उन्होंने जांच के उद्देश्य पर सवाल उठाया और इस मामले को दिल्ली क्रिकेट बोर्ड से जोड़कर इस अधिकारी के कथित भ्रष्टाचार पर से ध्यान हटाने की कोशिश की.

संघवाद

संघवाद एकतरफा धारा नहीं है. ऐसा नहीं है कि हमेशा केंद्र सरकार ही संघवाद की भावना को चुनौती देती है. एक राज्य अथवा एक केंद्र शासित प्रदेश, अपने अस्वीकार्य आचरण से भी संघवाद के लिए खतरा बन सकते हैं. कांग्रेस-नीत संप्रग सरकार के दौरान, दिल्ली सरकार ने बिना किसी पुलिस या जांच के अधिकार के ही संप्रग सरकार के दो कैबिनेट मंत्रियों के खिलाफ स्वेच्छा से कैबिनेट के एक फैसले को लागू करने के लिए प्राथमिकी दर्ज कर ली थी. अगर राज्य सरकारें केंद्रीय मंत्रिमंडल की जांच के फैसले लेने शुरू कर देती हैं तो संघवाद के लिए इससे बड़ा खतरा कुछ और नहीं हो सकता.

दिल्ली बिना पुलिस की शक्ति के एक केंद्र शाषित प्रदेश है. मैंने, 12 फरवरी, 2013 को, विपक्ष के नेता के तौर पर केंद्र शाषित प्रदेश दिल्ली द्वारा संघवाद के इस उल्लंघन की निंदा करते हुए एक ब्लॉग लिखा था. अगर केंद्र सरकार भी केजरीवाल के खिलाफ उसी भाषा का इस्तेमाल करे जो उन्होंने प्रधानमंत्री के खिलाफ की है तो बहस के लिए यह तर्कसंगत माना जाएगा कि यह संघीय ढांचे की भावना के अनुरूप नहीं है. अगर दो मुख्यमंत्री, ममता बनर्जी जी और नीतीश कुमार बाबू, श्री केजरीवाल का समर्थन करें, वह भी तब जब उन्होंने देश के प्रधानमंत्री के खिलाफ ऐसी अभद्र भाषा का इस्तेमाल किया हो, तो क्या संघीय ढांचे में सामंजस्य बन पाएगा? इन दोनों मुख्यमंत्रियों को सार्वजनिक तौर पर श्रीमान केजरीवाल की इस भाषा से खुद को अलग करना चाहिए.

अब जबकि एक आईएएस अधिकारी के दफ्तर की तलाशी की गर्मी और उसका गुबार शांत हो चुका है, तो यह साफ़ है कि तलाशी का संबंध न तो मुख्यमंत्री से था और न ही उनके दफ्तर से था. अपने पूर्व में किये गए एक कथित धोखाधड़ी के मामले में उस अधिकारी की तलाशी ली गई थी. सीबीआई ने साफ़ तौर पर इसे स्पष्ट किया है. तथापि, वास्तव में एक झूठा प्रचार लगातार दोहराया जा रहा है. क्यों मुख्यमंत्री को एक अधिकारी के कवच के रूप में खुद को प्रस्तुत करना चाहिए जो भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच का सामना कर रहा है? क्यों दो विशिष्ट मुख्यमंत्री दिल्ली के मुख्यमंत्री के ज़बरदस्त झूठ के समर्थन में खुद को घसीट रहे हैं?

डीडीसीए

यह एक दुष्प्रचार तकनीक का हिस्सा है, जब आप खुद कटघरे में हो तो यह तकनीक मुद्दे से ध्यान भटकाने के लिए इस्तेमाल की जाती है. जांच के घेरे में चल रहे एक अधिकारी को बचाने के लिए दिल्ली के मुख्यमंत्री ने मुझको केंद्र-बिंदु में लाने की कोशिश की है. उन्होंने इस बात को कई बार दोहराया कि मैंने दिल्ली के छापे को लेकर संसद को अंधेरे में रखा और उन्होंने मेरे, दिल्ली की क्रिकेट संस्था - डीडीसीए के अध्यक्ष के कार्यकाल को लेकर मुझपर आरोपों की श्रृंखला छेड़ दी. कांग्रेस भी क्षणिक लाभ के लिए श्री केजरीवाल की कंपनी में शामिल हो गई क्योंकि कई कारणों से उसके अपने नेतागण संकट में हैं.

भले ही, मैं 2013 से क्रिकेट प्रशासन से अलग हूँ, पर संसद के एक सदस्य के रूप में दिल्ली के क्रिकेट मामलों को लेकर कई सरकारी संस्थाओं को लिखता आ रहा हूं. कांग्रेस-नीत संप्रग सरकार ने मौके का लाभ उठाया और पूरे मामले को एसएफआईओ (SFIO) को भेज दिया जिसने पूरे मामले की कई दिनों तक जांच की और 21 मार्च 2013 को इस मामले पर एक विस्तृत रिपोर्ट पेश किया. इस रिपोर्ट ने डीडीसीए, जो कंपनी एक्ट के अंतर्गत पंजीकृत है, के संबंध में यह निष्कर्ष निकाला कि -

'इस तरह से, संक्षेप में, कुछ अनियमितताएँ/गैर-अनुपालन या तकनीकी खामियां है, लेकिन कोई धोखाधड़ी नहीं देखी गई, जैसा कि दावा किया जा रहा था.' जो तकनीकी और प्रक्रियागत खामियाँ थीं, वह भी वह समाधान कर लेने वाली थी और आरोपित सदस्यों द्वारा वह खामियाँ भी दूर कर ली गई. एसएफआईओ (SFIO) ने कांग्रेस-नीत संप्रग सरकार के शासन के वक्त, इस मामले की जांच की थी और उसे मेरे खिलाफ एक सबूत नहीं मिला था.

मेरे ऊपर आज तक कोई निजी आरोप नहीं लगा और न ही मैंने कभी किसी तरह के खंडन की जरूरत को महसूस किया. डीडीसीए को लेकर कई आरोप हैं जिसमें स्टेडियम के निर्माण खर्च में बढ़ोतरी का भी एक मामला है. जब काम बढ़ता है, तब खर्च भी उसी अनुपात में बढ़ता है. पब्लिक सेक्टर की कंपनी इपीआईएल (EPIL), 42,000 की क्षमता वाला एक बिलकुल नया स्टेडियम बनाती है और इसके लिए लगभग 114 करोड़ रुपए खर्च होते हैं. ठीक इसी वक्त कांग्रेस-नीत संप्रग सरकार भी दो स्टेडियम को नए सिरे से बनाती है. इसमें जवाहर लाल नेहरू स्टेडियम की मरम्मत पर 900 करोड़ रुपए खर्च किए जाते हैं और ध्यान चंद स्टेडियम के नव-निर्माण में 600 करोड़ रुपए का खर्च आता है.

मुझे खुद पर लगाए गए अप्रणाणित आरोपों का जवाब देने की जरूरत महसूस हुई, इसलिए मैंने यह लिखा. मैंने क्रिकेट प्रशासन 2013 में छोड़ दिया था. 2014 और 2015 के कुछ तथ्यों का उल्लेख कर वह (केजरीवाल) मुझ पर आरोप नहीं लगा सकते.

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लेखक

अरुण जेटली अरुण जेटली @arunjaitley

लेखक भारत के वित्त मंत्री हैं.

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