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Updated: 30 मई, 2015 06:53 AM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
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जब आम आदमी पार्टी में योगेंद्र यादव और प्रशांत भूषण को लेकर घमासान मचा था तो केजरीवाल ने एक ट्वीट किया था, ''मैं इस झगड़े में नहीं पडूंगा, बल्कि दिल्ली में सरकार चलाने पर ध्यान दूंगा. जनता के भरोसे को किसी भी हालत में नहीं टूटने दूंगा."

दिल्ली के उप राज्यपाल के साथ झगड़ा भले ही चरम पर पहुंच गया हो, लेकिन शुरुआत तो सिर्फ इसी बात पर हुई थी कि एक अधिकारी 10 दिन की छुट्टी पर जा रहा था - और उसकी जगह दूसरे अफसर को प्रभार दिया जाना था. उपराज्यपाल ने उसी सूची से एक अफसर को प्रभार दे दिया जिसे सलाह मांगे जाने पर केजरीवाल सरकार ने नामंजूर कर दिया था. हां, अपनी पसंद के एक अफसर का नाम लगे हाथ जरूर भेज दिया था, जिस पर पहले भी आरोप लग चुके हैं, जिसे एलजी ने खारिज कर दिया.

तब बात तो सिर्फ 10 दिन की थी. क्या केजरीवाल झगड़े में पड़ने से बच नहीं सकते थे? क्या उस वक्त दिल्ली के लोगों का ख्याल उन्हें नहीं रहा. तो क्या झगड़ों के प्रति दिल्ली के लोगों के नाम पर ये सेलेक्टिव अप्रोच नहीं है? उस वक्त क्या इतना ही याद रहा कि उन्हें तो दिल्लीवालों ने 70 में से 67 सीटें दे दी हैं. ऐसे में बात तो उन्हीं की सुनी जानी चाहिए. बात भी सही है. वैसे भी लोकतंत्र का मतलब होता तो यही है.


अब एक और पुराना बयान लेते हैं. उसी वक्त आम आदमी पार्टी नेता ने भी ट्वीट किया था, "कुछ लोग सुबह शाम टीवी इंटरव्यू देंगे, कुछ दिल्ली और फिर देश के विकास के लिए दिन रात काम करेंगे. कुछ लोग ब्लॉग लिखेंगे, कुछ इतिहास लिखेंगे."
केजरीवाल इनमें से किस रोल में हैं? आगे आकर बताना तो बनता है कि नहीं? क्यों?

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मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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