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Updated: 12 नवम्बर, 2015 06:55 PM
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टीपू सुल्तान इतिहास में दर्ज हैं. यह और बात है कि उनको लेकर राजनीति गरमाई हुई है. टीपू सुल्तान हीरो या विलन, महान या एंटी हिंदू... कर्नाटक से शुरू हुई यह बहस अब पूरे देश की राजनीति को प्रभावित कर रही है. इन सब के बीच टीपू जिन अंग्रेजों से लड़े थे, उनका मानना है कि वह एक महान योद्धा, सेनापति, रणनीतिकार और नवीन तकनीकों में विश्वास रखने वाले थे.

ब्रिटेन की नेशनल आर्मी म्यूजियम ने अंग्रेजी हुकूमत से लोहा लेने वाले 20 सबसे बड़े दुश्मनों की लिस्ट बनाई है. दो भारतीय योद्धाओं को ही इसमें जगह दी गई है - टीपू सुल्तान और झांसी की रानी. नेशनल आर्मी म्यूजियम के आलेख के अनुसार टीपू सुल्तान अपनी फौज को यूरोपियन तकनीक के साथ ट्रेनिंग देने में विश्वास रखते थे. टीपू विज्ञान और गणित में गहरी रुचि रखते थे और उनके मिसाइल अंग्रेजों के मिसाइल से ज्यादा उन्नत थे, जिनकी मारक क्षमता दो किलोमीटर तक थी.

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टीपू सुल्तान के बारे में नेशनल आर्मी म्यूजियम ने जो लिखा है, उससे स्पष्ट है कि वह सिर्फ और सिर्फ एक राजा थे. उस समय के अन्य राजाओं की तरह, जिसे हर हाल में अपने राज का ख्याल रखना है, उसे बढ़ाते रहना है या कम से कम बरकरार रखना है. इसके लिए टीपू ने हिंदू राजाओं (मराठा, त्रावणकोर) के साथ-साथ मुस्लिम राजाओं (हैदराबाद के निजाम) से भी दुश्मनी मोल ली थी. चूंकि मैसूर को सबसे ज्यादा खतरा अंग्रेजों से था, इसलिए जिन-जिन राज्यों ने मैसूर के खिलाफ अंग्रेजों का साथ दिया, टीपू ने हर एक जीत के बाद उन राज्यों के साथ बर्बरता का सलूक किया.

नेशनल आर्मी म्यूजियम के आलेख में टीपू के बारे में मुख्य बातें :  

- द्वितीय मैसूर युद्ध (1780-84) की समाप्ति से पहले 1782 में टीपू सुल्तान ने तान्जौर के समीप अन्नागुड़ी में कैप्टन ब्रेथवेट की टुकड़ी को हराया और 10 तोपों के साथ 1500 सैनिकों को बंदी बना लिया. चूंकि तान्जौर की सत्ता अंग्रेजों के साथ थी, इसलिए टीपू की सेना ने वहां लूट-पाट मचाई.

- अपने पिता हैदर अली की मौत के बाद टीपू सुल्तान मैसूर का राजा बना. उसे समझ आ चुका था कि अंग्रेजों, मराठा और निजाम से एक साथ लड़ने के लिए ताकतवर मैसूर की आवश्यकता है, इसलिए उसने अपनी आर्मी को मॉडर्न बनाने के साथ-साथ व्यापार, सड़क, अपनी मुद्रा प्रणाली, फ्रेंच माप-तौल की व्यवस्था आदि को भी अपनाया.

- 1789 में टीपू ने अंग्रेजों के साथी त्रावणकोर के राजा के अधिकार क्षेत्र वाले इलाके में लूट-पाट मचाई और उसके कुछ हिस्से को मैसूर में मिलाना चाहा. इसके खिलाफ अंग्रेजों ने मराठा और हैदराबाद के निजाम के साथ मिलकर तृतीय मैसूर युद्ध (1790-92) की शुरुआत की. सही समय पर फ्रेंच सपोर्ट नहीं मिलने के कारण इस बार टीपू को अंग्रेजों के साथ समझौता (क्षेत्र और वित्त दोनों का) करना पड़ा.

- चौथा मैसूर युद्ध (1798-99) अंग्रेजों द्वारा टीपू पर थोपा गया था. वो इसलिए क्योंकि अंग्रेजों को डर था कि फ्रेंच सहयोग से टीपू फिर से ताकतवर बन सकता है. 4 मई 1799 को युद्ध के दौरान ही टीपू सुल्तान की मौत हुई थी.

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प्रथम मैसूर युद्ध से लेकर चौथे युद्ध तक का राजनीतिक नक्शा

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लेखक

चंदन कुमार चंदन कुमार @chandank.journalist

लेखक iChowk.in में पत्रकार हैं.

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