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Updated: 03 मई, 2016 04:52 PM
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क्रिकेट जैसे नतीजे कभी कभार राजनीति में भी आते हैं. पर, राजनीति में फैसला करना क्रिकेट जितना आसान नहीं होता.

गांधीनगर म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन के नतीजे आये तो पता चला - मैच टाई हो गया. बड़े ही दिलचस्प तरीके से बीजेपी और कांग्रेस दोनों को 16-16 सीटें मिली - मेयर के फैसले के लिए लॉटरी की जरूरत आ पड़ी.

डर के आगे जीत की उम्मीद

पंचायत चुनावों में सिर्फ शहरों तक अपना वर्चस्व कायम रख पाई बीजेपी नगर निगम के इस चुनाव में डरी हुई थी. बीजेपी के डर की वजह भी कोई मामूली नहीं थी - हार्दिक पटेल के आंदोलन ने अंदर तक हिला रखा है. जिस वोट बैंक के भरोसी बीजेपी नेता हुंकारते रहे हैं - वही लोग चौतरफा घेरे हुए हैं. वैसे चुनाव में सिर्फ पाटीदार समाज के सिर्फ 7 उम्मीदवार जीत दर्ज कर पाए - जिनमें बीजेपी के 4 और कांग्रेस के 3 रहे.

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बीजेपी को इन चुनावों से ज्यादा विधानसभा चुनाव का डर सता रहा है - जो होने तो 2017 में ही हैं, लेकिन यूपी और पंजाब चुनावों के काफी बाद. यही वजह है कि आनंदी बेन सरकार ने राज्य के स्थापना दिवस के मौके पर 'गुजरात अनारक्षित आर्थिक पिछड़ा वर्ग अध्यादेश - 2016' की सौगात देकर वोट बैंक बचाने की चाल चली है.

किसे क्या मिलेगा

इस अध्यादेश के आने के बाद आर्थिक रूप से पिछड़े, अगड़ी जाति के लोगों को 10 फीसदी आरक्षण का फायदा मिल सकेगा. शर्त ये है कि इसका फायदा उन्हें मिलेगा जिनकी मासिक आमदनी 50 हजार रुपये से कम यानी सालाना छह लाख के ऊपर नहीं है.

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लॉलीपॉप से कैसे बनेगा काम...

राष्ट्रद्रोह के आरोप में जेल में बंद हार्दिक पटेल और उनके समर्थकों को सरकार का ये तोहफा कतई मंजूर नहीं है. वे पटेल समुदाय को ओबीसी में शुमार करने की मांग पर अड़े हुए हैं. पटेल समुदाय गुजरात का सबसे मजबूत और संपन्न तबका माना जाता है - जो कुल आबादी का 15 फीसदी है.

पटेलों को ओबीसी में शामिल करने की मांग के पीछे खास वजह है. अगर उन्हें ओबीसी में शामिल कर लिया जाता है तो वे 27 फीसदी आरक्षण वाले ब्रैकेट में आ जाएंगे, जबकि नई व्यवस्था में दायरा सिर्फ 10 फीसदी में सिमट कर रहा जाएगा.

शॉर्ट टर्म गेन

आरक्षण देने का ये फैसला आनंदी बेन सरकार ने सिर्फ मौजूदा हालात को काउंटर करने के लिए किया है, लेकिन आगे चल कर इसके क्या नतीजे होंगे शायद उस पर गंभीरता से विचार नहीं किया.

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आरक्षण के लिए एक नया आधार शुरू करना है तो उसे संविधान का हिस्सा बनाना होगा - वैसे ये जीएसटी जैसा मुश्किल काम तो नहीं होगा - फिर भी कोई आसान काम नहीं है.

अभी आनंदी बेन पटेल की सरकार ने मौजूदा समस्या के समाधान के रूप में आर्थिक आधार पर आरक्षण देने का इंतजाम कर रही है. अब दूसरे राज्यों में भी ऐसी ही मांग उठ सकती है - कल्पना कीजिए क्या स्थिति होगी. राजस्थान के गूर्जर आंदोलन अगर ज्यादा दिन हो गये तो हरियाणा का जाट आंदोलन तो ताजा ही है.

वैसे गुजरात सरकार का ये तोहफा अगर कोर्ट पहुंचा तो ज्यादा तारीखें झेल भी नहीं पाएगा. एससी और एसटी के अलावा सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े समुदायों के लिए तो आरक्षण की व्यवस्था तो है, लेकिन आर्थिक आधार पर भी ये लागू हो अभी ऐसी स्थिति नहीं है.

मुख्यमंत्री आनंदी बेन ने कहा है कि ये 10 फीसदी आरक्षण एससी, एसटी और ओबीसी को मिलने वाले 49 फीसदी से अलग होगा - यानी गुजरात में आरक्षण 59 फीसदी हो जाएगा.

अब अगर सुप्रीम कोर्ट के 50 फीसदी की डेडलाइन के हिसाब से देखें तो ये वैसे ही गैरकानूनी लगता है. अगर हार्दिक पटेल और उनके समर्थकों की ओर से इसे 'लॉलीपॉप' करार दिया गया है तो इसमें गलत क्या है?

गुजरात के बाद महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और हरियाणा जैसे राज्यों में भी बवाल के डिटरेंट के तौर बीजेपी सरकारें ऐसे ही लॉलीपॉप थमाने लगे तो क्या होगा बस अंदाजा लगाया जा सकता है. क्या ये सभी के लिए आरक्षण जैसी किसी रणनीति का छोटा सा नमूना है? क्या ये आरक्षण को पूरी तरह खत्म करने के किसी हिडेन एजेंडे का हिस्सा है - जो आरएसएस के मन की असल बात है.

मजे की बात ये है कि सभी पार्टियां इस मसले पर खामोश हैं. खासकर तब जबकि संसद के बजट सत्र का दूसरा हिस्सा चल रहा है. सबसे दिलचस्प तो आरक्षण के इस नये पैरामीटर को लेकर कांग्रेस की घोषणा है. गुजरात कांग्रेस के नेताओं ने कहना है कि अगर उनकी पार्टी सत्ता में आई तो वो इसे 10 से बढ़ाकर 20 फीसदी कर देंगे.

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