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Updated: 16 जून, 2015 11:50 AM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
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बिहार के पू्र्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी कहीं बीजेपी के लिए बोझ तो नहीं बनने जा रहे हैं? बिहार विधानसभा चुनाव में एनडीए गठबंधन का औपचारिक हिस्सा बनने के बाद जिस तरह के बयान मांझी के आ रहे हैं उससे तो ऐसा ही लगता है.

1. एक दिन, मांझी ने कहा कि एनडीए को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार नहीं घोषित करना चाहिए बल्कि चुनाव बाद सीटों के हिसाब से इसका फैसला होना चाहिए. हालांकि, बाद में मांझी ने कह दिया कि उन्हें एनडीए का मुख्यमंत्री मंजूर होगा. तो क्या मांझी परोक्ष रूप से एनडीए में मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार को लेकर बहस छेड़ना चाहते हैं. ऐसा लगता है मांझी चाहते हैं कि ये बहस आगे बढ़े फिर वो बताएं कि एक दावेदार तो वो भी हैं. अगर ऐसा है तो रिश्ता कितना लंबा होगा कहना मुश्किल है.

2. मांझी के बयानों पर गौर करें तो लगता है उनका एक ही मिशन है - सीएम की कुर्सी. वो बात भले कुछ भी करें लेकिन घूम-फिर कर वो बात मुख्यमंत्री पद की ही करने लगते हैं. चाहे लालू प्रसाद के साथ जाने की बात हो या फिर नीतीश के साथ दोबारा जुड़ने का मामला, हर बार मांझी खुद को मुख्यमंत्री के तौर पर ही देखते नजर आते हैं. हाल ही में उन्होंने कहा कि वो लिख कर दे सकते हैं कि उन्हें मुख्यमंत्री नहीं बनना, चुनाव लड़ना भी तय नहीं है. याद कीजिए, जब नीतीश से झगड़ा सार्वजनिक नहीं हुआ था तब वो कहा करते थे कि आगे उनका चुनाव लड़ना भी तय नहीं है लेकिन चाहते हैं कि अगला मुख्यमंत्री दलित ही हो. बाद में जो हुआ वो सबको पता ही है लेकिन अपने अलावा वो किसी को दलित मुख्यमंत्री मानते हों ऐसा उनके बयानों से तो नहीं लगता.

3. मांझी ने एनडीए से अपने लिए 60 सीटों पर दावेदारी जताई थी. फिर बाद में उन्होंने कह दिया कि वो चुनाव में एनडीए को बिना शर्त समर्थन देंगे. एनडीए में सीटों के बंटवारे का आखिरी आंकड़ा अभी घोषित नहीं हुआ है. मांझी अगर सीटों की संख्या पर अड़ गए तो बात बिगड़ते देर नहीं लगेगी.

4. मांझी का कहना है कि चुनाव बाद सरकार बनने पर वो सारे फैसले लागू होने चाहिए जो उन्होंने बतौर मुख्यमंत्री लिए थे जिसे नीतीश ने सत्ता में आते ही खत्म कर दिए. क्या बीजेपी के लिए ऐसा करना संभव होगा? अगर ऐसा नहीं होगा तो क्या मांझी सरकार गिरा देंगे, अगर वो उस स्थिति में पहुंच जाते हैं. चाहे जो भी झगड़ा तो बढ़ेगा ही.

5. मांझी कहते रहे हैं कि घूस लेना गलत नहीं है. नक्सलियों के लेवी लेने में भी उन्हें कोई बुराई नजर नहीं आती. रिलेशनशिप को लेकर भी उनके बयान विवादित रहे हैं. अगर मांझी फिर से ये बातें दोहराने लगें तो क्या बीजेपी उनकी बातों का समर्थन कर पाएगी? मुश्किल लगता है.

बिहार में दलित वोटों को इकट्ठा करने के लिए एनडीए को मांझी की जरूरत थी. लेकिन क्या मांझी को एनडीए की जरूरत नहीं थी? मांझी नीतीश के साथ दोबारा जा नहीं सकते थे. लालू के साथ होने को लेकर भी दरवाजे बंद ही थे. खुद के बूते चुनाव में कितना कर पाते इसे भी उनसे बेहतर कौन समझ सकता है?

फिर भी मांझी के हाल के ट्रैक रिकॉर्ड को देखते हुए तो लगता नहीं कि एनडीए के साथ उनका सफर लंबा चलने वाला है.

लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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