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Updated: 26 सितम्बर, 2019 09:31 PM
विकास कुमार
विकास कुमार
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कश्मीर से धारा-370 खत्म होने के बाद पाकिस्तान की सियासत में भूकंप तो पहले से ही आया हुआ है, लेकिन अब सियासी स्केल पर उसका पैमाना बहुत विनाशकारी होने वाला है. इस भूकंप में इमरान खान की सत्ता धराशायी होने वाली है. बताया जाता है कि इमरान सरकार के ही मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने उनकी कुर्सी पर नजर गड़ा दी है. इसके लिए वो सेना, पार्टी, सहयोगी दल से लेकर राष्ट्रीय और अंतराष्ट्रीय स्तर तक लॉबिंग करने में जुट हुए हैं. इस बात की तस्दीक खुद पीएम इमरान खान की पूर्व पत्नी रेहम खान ने भी की है. रेहम खान ने हाल ही में एक इंटरव्यू में सनसनीखेज खुलासा करते हुए इमरान खान को सत्ता सही तरीके से संभालने की नसीहत दी. उन्होंने कहा कि विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी पीएम की कुर्सी का इंतजार कर रहें हैं. इमरान की पूर्व पत्नी के इस खुलासे के बाद पाकिस्तानी मीडिया में भी इस बात की चर्चा तेज हो गई है कि इमरान खान की सत्ता अब उनके हाथ से जाने वाली है, क्योंकि वो ना सिर्फ कश्मीर बल्कि तमाम मोर्चे पर असफल साबित हो रहे हैं. इससे अब सेना भी उन्हें हटाने के लिए मौके की तलाश में जुटी हुई है. आइए उन कारणों को समझते हैं, जिसकी वजह से इमरान की कुर्सी खतरे में आ गई है.

इमरान ने कश्मीर मसले पर मानी हार

भारत ने जब कश्मीर से धारा-370 खत्म की तो पाक पीएम इमरान खान ने इसके विरोध में जबरदस्त बयानबाजी की. उन्होंने यहां तक कहा कि वो कश्मीरियों का एंबेसडर बनकर पूरी दुनिया में इस मुद्दे को उठाएंगे. उन्होंने अपनी जनता को ये विश्वास दिलाने की कोशिश की कि वो अपने से 10 गुना ताकतवर मुल्क भारत को झुकने पर मजबूर कर देंगे, फिर इसके लिए उन्हें जंग ही क्यों ना करनी पड़े. इस मामले में दुनिया को गंभीरता से अवगत कराने के लिए इमरान खान ने खुद परमाणु युद्ध की धमकी तक दे दी. लेकिन हुआ ठीक उल्टा. इमरान के बेवकूफाना बयान को दुनिया के किसी भी देश ने तवज्जो नहीं दी. विश्व भर में मोदी की मोर्चेबंदी के सामने पाकिस्तान का प्रोपेगेंडा पूरी तरह से फेल हो गया. चीन को छोड़कर किसी भी ताकतवर मुल्क ने इस मुद्दे पर भारत के खिलाफ एक भी बयान देने से साफ इनकार कर दिया. इमरान खान ने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से भी काफी उम्मीदें पाल रखी थीं, लेकिन ट्रंप ने भी उनकी उम्मीदों पर पानी फेर दिया. ट्रंप ने साफ कह दिया कि वो इस मामले में मध्यस्थता तभी करेंगे जब दोनों देशों को ये मंजूर होगा. जबकि भारत ने पहले से ही ये साफ कर रखा है कि कश्मीर मसले पर हमें किसी तीसरे देश की मध्यस्थता स्वीकार नहीं है.

इधर इमरान खान को मुस्लिम उम्मा (इस्लामिक देश) और इस्लामी सहयोग संगठन (OIC) से भी उम्मीदें थीं, लेकिन OIC के तमाम प्रभावशाली देशों ने पहले ही ना सिर्फ इस मुद्दे से अपना पल्ला झाड़ लिया, बल्कि पाकिस्तान के तमाम विरोध को नजरअंदाज करते हुए सऊदी अरब, यूएई, बहरीन ने पीएम मोदी को अपने सर्वोच्च नागरिक सम्मान से सम्मानित भी कर दिया. ऐसे में इमरान खान को अंतराष्ट्रीय स्तर पर अपनी हार स्वीकारनी पड़ी. उन्होंने कहा कि अपने व्यापारिक रिश्तों के कारण दुनिया का कोई भी देश भारत के खिलाफ बोलने को तैयार नहीं है. वो तमाम कोशिशों के बावजूद पीएम मोदी पर कोई दबाव बना सकने में कामयाब नहीं हो सके. वहीं दूसरी ओर कश्मीर पाकिस्तान के लिए एक ऐसा जज्बाती मुद्दा है कि वहां की जनता या सेना अपनी सरकार की सौ खामियों को तो माफ कर सकती है, लेकिन इस कश्मीर पर रहम नहीं दिखा सकती.

इमरान खान, पाकिस्तान, भूकंप, राजनीतिइमरान खान चले थे चौबे जी से छब्बे जी बनने, लेकिन वो दूबे जी लायक भी नहीं रह गए.

सत्ता पर कमजोर हुई इमरान की पकड़

इधर तमाम मोर्चों पर मुंह की खाने के बाद अब इमरान के मंत्रियों के बीच ही ब्लेम गेम शुरू हो गया है. दरअसल, पीएम इमरान खान ने संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद (UNHRC) में कश्मीर मुद्दे को लेकर 58 देशों के समर्थन की बात कही थी. हालांकि, पाकिस्तान को UNHRC में औपचारिक प्रस्ताव पेश करने लिए आवश्यक 16 देशों का भी समर्थन नहीं मिल सका, जिसके बाद इमरान खान की काफी किरकिरी हुई.

UNHRC मुद्दे पर हुए इस किरकिरी के लिए पाकिस्तान के जल संसाधन मंत्री फैसल वावड़ा ने विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी को जिम्मेदार ठहरा दिया. उन्होंने कहा कि 'प्रधानमंत्री वही बयान देते हैं, जिससे उन्हें संबंधित मंत्री द्वारा अवगत कराया जाता है. यह जवाब शाह महमूद कुरैशी को पाकिस्तानी राष्ट्र और कैबिनेट को देना होगा कि जब 16 देशों का भी समर्थन नहीं था तो उन्होंने 58 देशों के समर्थन का दावा क्यों किया'.

इस मामले से दो बातें सामने आती हैं. या तो वाकई में शाह महमूद कुरैशी ने इमरान खान को गलत जानकारी देकर उन्हें फंसाने की कोशिश की, या इमरान खान अपनी नाकामी के लिए कुरैशी को जिम्मेदार ठहराने में जुट गए हैं. खैर, मामला चाहे जो भी हो, इतना तो साफ हो गया है कि इमरान और कुरैशी के बीच सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है.

वहीं इसकी एक और बानगी तब देखने को मिली, जब 24 सितंबर को पाकिस्तान के कई इलाकों में भूकंप से काफी नुकसान की खबर आई. इस पर पीएम इमरान खान की सलाहकार फिरदौस आशिक अवान ने बेहद ही गैर जिम्मेदाराना बयान देते हुए इसे पाकिस्तान में आई तब्दीली की निशानी बता दिया. अवान के इस बयान पर पाकिस्तान के लोग भड़क गए. इसके बाद वहां मानवाधिकार मामलों के मंत्री शिरीन माजरी को माफी मांगनी पड़ी. इस मामले में भी यह स्पष्ट हो गया कि इमरान सरकार में कोई सामंजस्य नहीं रह गया है, क्योंकि इससे पहले उनके मंत्री शेख राशिद के शेख-चिल्ली के कारण भी सरकार की काफी किरकिरी हो रही है.

आर्थिक तौर पर तंगहाल हो चुका है पाकिस्तान

चुनाव से पहले इमरान खान ने बड़े-बड़े वादे और दावे किए थे. उन्होंने पाकिस्तान की तस्वीर और तकदीर बदल देने की बात कही थी. लेकिन हकीकत है कि इमरान ने जब से सत्ता संभाली है तब से वहां की अर्थव्यवस्था चरमरा सी गयी है. पाकिस्तान अपने बजट से कहीं ज्यादा कर्ज में डूबा हुआ है. आपको बता दें कि पाकिस्तान पर 96 अरब डॉलर का कर्ज है. उसके बजट का 40 फीसदी हिस्सा सिर्फ कर्ज के ब्याज को चुकाने में खर्च हो जा रहा है. विदेशी मुद्रा भंडार मात्र 10 अरब डॉलर के आस-पास रह गया है, जिससे पाकिस्तान के लिए जरूरी सामानों की आपूर्ति दो महीने से ज्यादा नहीं हो पाएगी. इसी मजबूरी में इमरान खान को कर्ज के लिए IMF का दरवाजा खटखटाना पड़ा. जिस पर IMF ने कर्ज देने से पहले पाकिस्तान पर अपनी खर्च में कटौती के लिए कई शर्तें थोप दीं. अब इमरान खान जब इन शर्तों को पूरा करने की कोशिश में जुटे तो वहां महंगाई चरम पर पहुंच गई. दूध और सब्जियों के भाव आसमान छू रहे हैं. इससे लोगों में सरकार के प्रति भारी आक्रोश पैदा हो गया है और अब वहां की पब्लिक इमरान खान को सत्ता से बेदखल करने की मांग करने लगी है.

FATF में ब्लैकलिस्ट होने का खतरा

इधर आर्थिक तौर पर कंगाल पाकिस्तान पर फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (FATF) से भी ब्लैकलिस्ट होने का खतरा मंडरा रहा है. FATF में पाकिस्तान को लेकर सुनवाई इसी महीने (सितंबर) में पूरी हो चुकी है. अब अक्टूबर मध्य तक फैसला भी आ जाएगा. पूरी संभावना है कि पहले से ही ग्रे लिस्ट में शामिल पाकिस्तान को ब्लैकलिस्ट भी कर दिया जाए, क्योंकि FATF ने आतंकवाद पर लगाम लगाने के लिए पाकिस्तान को जो टास्क दिया था, पाकिस्तान ने उस टास्क को आधा भी पूरा नहीं किया है. ऐसे में इस देश पर अगर बैन लग जाता है तो उसे पूरी दुनिया से कर्ज भी नहीं मिल सकेगा. ऐसे में पाकिस्तान को दिवालिया होना पड़ेगा, जो उसके लिए किसी भयावह सपने से कम नहीं है. वहीं इमरान खान अपनी नाकामी को छुपाने के लिए इन सब मामलों के लिए भारत को जिम्मेदार ठहराने में जुटे हुए हैं. उनका कहना है कि भारत की लॉबिंग के कारण FATF में पाकिस्तान का ये हाल हो रहा है.

विपक्ष के चक्रव्यूह में फंसे इमरान

इमरान खान ने चुनाव के वक्त जनता से वादा किया था कि वो सत्ता में आएंगे तो पूर्व पीएम नवाज शरीफ और आसिफ अली जरदारी समेत तमाम भ्रष्ट नेताओं पर ठोस कार्रवाई करेंगे और देश के लूटे हुए पैसे को वापस लाएंगे, जिसे देश के विकास में खर्च किया जाएगा, इस मामले में भी वो नाकाम रहे हैं. हालांकि, उन्होंने नवाज शरीफ पर कार्रवाई करते हुए जेल तक पहुंचा दिया, जरदारी पर मुकदमे भी लाद दिए, लेकिन पैसा एक भी नहीं ला सके. उल्टा जनता में ये मैसेज चला गया कि इमरान खान राजनीतिक बदले की भावना से कार्रवाई कर रहे हैं.

इधर अब विपक्ष भी इमरान खान को सत्ता से बेदखल करने के लिए जाल बुनने में लग गया है. इसी कड़ी में वहां जमीयत उलेमा-ए-इस्लाम (JUI-F) पार्टी के अध्यक्ष मौलाना फज़ल-उर-रहमान ने अगले महीने अक्टूबर में सरकार के खिलाफ ‘आजादी मार्च’ निकालने और इस्लामाबाद को ठप कर देने की घोषणा कर दी है. जिसे नवाज शरीफ की पार्टी पाकिस्तान मुस्लिम लीग-नवाज (PML-N) और बिलावल भुट्टो की पार्टी पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (PPP) ने भी समर्थन देने की घोषणा कर दी है. बताया जा रहा है कि विपक्षी पार्टियों के इस चक्रव्यूह से इमरान का निकलना मुश्किल है. इसी दौरान उन्हें सत्ता से बेदखल करने की तैयारी भी की जा रही है.

सेना से टकराव शुरू

इमरान खान को सेना ने Give and Take (लेनदेन) के फॉर्मूले के तहत सत्ता दिलायी थी. जिसके तहत इमरान खान पीएम बने तो बदले में इमरान ने आर्मी चीफ कमर जावेद बाजवा को तीन साल का एक्सटेंशन दे दिया. इसके बाद इमरान खान सत्ता में अपनी पोजिशन को मजबूत करने की कोशिश में जुट गए. इसी के मद्देनजर उन्होंने जंग के दौरान न्यूक्लियर हथियार का उपयोग पहले नहीं करने की बात कही. इस पर पाकिस्तानी सेना के प्रवक्ता आसिफ गफूर ने पाकिस्तान की न्यूक्लियर पॉलिसी में ऐसे किसी भी बदलाव से इनकार कर दिया. यानी सेना ने इमरान खान को उनकी हैसियत बताने में थोड़ी भी देर नहीं की.

इसके बाद इमरान खान और सेना के बीच अब टकराव खुलकर सामने आने लगा है. न्यूयॉर्क में इमरान खान ने अपनी ही सेना को तब कटघरे में खड़ा कर दिया, जब उन्होंने एक इंटरव्यू के दौरान ये कबूला कि अल कायदा के आतंकियों को पाकिस्तानी सेना और आईएसआई ने ट्रेनिंग दी है, क्योंकि अलकायदा ना सिर्फ एक अंतराष्ट्रीय आतंकी संगठन है, बल्कि अमेरिका का सबसे बड़ा दुश्मन भी है. ऐसे में इमरान द्वारा अमेरिका में ही इस तरह के कबूलनामे ने पाकिस्तानी सेना के आतंकी चेहरे को उजागर करके रख दिया.

बता दें कि कुछ दिन पहले पाकिस्तान के गृह मंत्री एजाज अहमद शाह ने भी कश्मीर मामले में नाकामी के लिए अपने ही पीएम इमरान खान समेत देश के तमाम रूलिंग एलीट क्लास को जिम्मेदार ठहराया था. उसके बाद से ही ये कयास लगाए जा रहे थे कि सेना और इमरान के बीच सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है, क्योंकि आर्मी बैक ग्राउंड वाले आसिफ गफूर को इमरान की सत्ता में सेना का सबसे विश्वस्त मोहरा माना जाता है.

कुल मिलाकर पाकिस्तान की सियासत में अंदर ही अंदर बहुत बड़ा तूफान आया हुआ है. इसी बीच मौके और नजाकत को भांपते हुए पाकिस्तानी सियासत के मंझे हुए खिलाड़ी विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने सेना में अपनी लॉबिंग शुरू कर दी है. सूत्रों के मुताबिक वो सेना का भरोसा जीतने में भी कामयाब हो गए हैं. अब इंतजार सिर्फ परफेक्ट टाइमिंग की है जब इमरान खान को सत्ता से बेदखल कर महमूद कुरैशी को प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठा दिया जाएगा.

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लेखक

विकास कुमार विकास कुमार @100001236399554

लेखक आजतक में पत्रकार हैं

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