New

होम -> सियासत

 |  3-मिनट में पढ़ें  |  
Updated: 20 जनवरी, 2017 02:27 PM
गोपी मनियार
गोपी मनियार
  @gopi.maniar.5
  • Total Shares

आरक्षण, शराबबंदी, बेरोजगारी और दलित उत्पीड़न. पिछले 18 महीने में गुजरात की राजनीति इन्हीं मुद्दों के इर्द-गिर्द घूमती रही है. और इन्हीं मुद्दों पर उपजे आंदोलन में जन्म हुआ है 3 युवा नेताओं का. ये हैं हार्दिक पटेल, अल्पेश ठाकुर और जिग्नेश मेवानी.

हार्दिक पटेल गुजरात के पाटीदारों में एक चमकता चेहरा हैं. अल्पेश ठाकुर राज्य में शराबबंदी के बावजूद पिछड़ी जातियों में शराब खपत को लेकर आंदोलन चला रहे हैं. उना में दलितों पर हुए अत्याचार के बाद जिग्नेश मेवानी दलित समाज को अपना हक दिलाने में लगे हैं.

गुजरात में अब यह सवाल तेजी से उभर रहा है कि क्या ये तीनों युवा इकट्ठा होकर बीजेपी की जड़ें हिला पाएंगे, जो पिछले 20 साल से राज्य की सत्ता पर काबिज है.

ये भी पढ़ें- क्या गुजरात में हार्दिक पटेल एक बार फिर आरक्षण की आग को हवा देंगे?

hardik-patel650_012017013634.jpg
 हार्दिक पटेल गुजरात के पाटीदारों में एक चमकता चेहरा हैं

पाटीदार आरक्षण की मांग को लेकर 22 साल के हार्दिक पटेल के अंदाज ने सबसे ज्यादा समाज की महिलाओं और युवाओं को आकर्षित किया. इस आंदोलन के बाद हार्दिक को राष्ट्रद्रोह के केस में 9 महीना जेल में बंद किया गया. जमानत मिली तो 6 महीना गुजरात से बहार रहने के लिये आदेश दिया गया. हालांकि हार्दिक पटेल जब दो दिन पहले गुजरात वापस आए तो स्वागत के लिये बड़ी तादाद में पाटीदार इक्कठे हुए. हार्दिक के करिश्मे ने पाटीदारों को एक तो किया है, लेकिन ये करिश्मा आने वाले विधानसभा चुनाव तक टिक पायेगा या नहीं, ये सबसे बड़ा सवाल है.

1thakur650_012017013702.jpg
 अल्पेश ठाकुर शराबबंदी के बावजूद पिछड़ी जातियों में शराब खपत को लेकर आंदोलन चला रहे हैं

ओबीसी नेता अल्पेश ठाकुर शराबबंदी को सख्ती से लागू करने की मांग को लेकर मैदान में उतरे हैं. ओबीसी समाज ने भी अल्पेश ठाकुर को काफी सपोर्ट दिया. अल्पेश ठाकुर एक अच्छे वक्ता  होने के साथ अच्छे क्राउड मैनेजर भी हैं. अल्पेश की शराबबंदी की मांग को लेकर राज्य सरकार भी डर गयी थी. और यही वजह है कि विधानसभा चुनाव से पहले शराबबंदी मुद्दा ना बन जाये इसलिये सरकार ने आनन फानन में शराबबंदी के लिये एक कानून भी बनाया है. हालांकि, अल्पेश को लेकर लोग यह भी कहते हैं कि वो मौका मिले तो सरकार के साथ समझौता कर सकते हैं. तो यहां सवाल अल्पेश की विश्वसनीयता पर भी खडा होता है, क्या समाजसेवा करते-करते वह राजनीति में आएंगे?

jignesh-mevani650_012017013721.jpg
 उना में दलितों पर हुए अत्याचार के बाद जिग्नेश मेवानी दलित समाज को अपना हक दिलाने में लगे हैं

उना में दलितों पर हुए अत्याचार के बाद जब अंदोलन शुरू हुआ तो अचानक लोगों की जुबान पर एक और युवा नाम आने लगा. ये नाम था जिग्नेश मेवानी का. जिग्नेश पत्रकार रहे हैं और आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ता भी. लेकिन दलित आंदोलन के वक्त उसने आप को छोड़ दिया और खुद ही दलितों के लिये आंदोलन करना शुरू कर दिया. हालांकि जिग्नेश के लिये परेशानी की बात ये भी है कि सरकार उससे बात करने को तैयार नहीं हैं. वजह, जिग्नेश के साथ हार्दिक और अल्पेश जितनी भीड़ नहीं है. यह बात और है कि राजनीतिक ज्ञान और समाज से गठजोड़ की जितनी सूझबूझ जिग्नेश के पास है, उतनी हार्दिक और अल्पेश दोनों के पास नहीं है.

ये भी पढ़ें- गुजरात में सबसे बड़ा चैलेंज जातिवादी राजनीति !

हालांकि हार्दिक, अल्पेश और जिग्नेश तीनों मिल जाते हैं तो गुजरात की बीजेपी सरकार के लिये 2017 के विधानसभा चुनाव लोहे के चने चबाने जैसा साबित होगा. क्योंकि हार्दिक के पास अपना करिश्मा और समाज के युवा और महिलाओं का विशेष समर्थन है. अल्पेश के पास ओबीसी समाज का साथ है, जो कि गुजरात में 50 से ज्यादा सीटों पर अपना असर रखता है. जबकि जिग्नेश के पास दलित समाज, राजनीतिक सूझबूझ और प्लानिंग है. अगर तीनों साथ आते हैं तो बीजेपी और कांग्रेस दोनों के लिये पूर्ण बहुमत हासिल करना नामुमकिन हो जाएगा.

लेखक

गोपी मनियार गोपी मनियार @gopi.maniar.5

लेखिका गुजरात में 'आज तक' की प्रमुख संवाददाता है.

iChowk का खास कंटेंट पाने के लिए फेसबुक पर लाइक करें.

आपकी राय