New

होम -> ह्यूमर

 |  3-मिनट में पढ़ें  |  
Updated: 01 अगस्त, 2015 10:35 AM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
  @msTalkiesHindi
  • Total Shares

याकूब मेमन को जब पता चला कि सुप्रीम कोर्ट ने उसकी फांसी पर रोक नहीं लगाई तो थोड़ी देर के लिए मायूस हुआ. फिर भी हार नहीं मानी. झट से वो राष्ट्रपति को एक नया खत लिखने बैठ गया. यह रहा वो आखिरी खत, जो मंजिल तक पहुंच न सका.

आदरणीय महामहिम,

पढ़ने लिखने वालों की पीड़ा क्या होती है ये आपसे बेहतर भला कौन समझ सकता है. मेरी इसी आदत के चलते लोग मुझे शि‍जोफ्रेनिया का शिकार बताने पर तुले हुए हैं. ऐसा बिलकुल नहीं है. मैं ये पत्र आपको पूरे होशो-हवास में लिख रहा हूं.

आपके दरवाजे पर ये मेरी तीसरी दस्तक है. हो सकता है पहली बार आपने मेरी गुजारिश को अहमियत न दी हो. आपको मेरी दस्तक रस्म अदायगी जैसी लगी हो. मौत का फरमान सुनने के बाद तो माफी के लिए एक बार हर कोई आपके पास पहुंचता है. मैंने जब दूसरी दस्तक दी तो हो सकता है मेरी अर्जी भी आपके यहां समयाभाव की भेंट चढ़ गई हो. लेकिन इस बार आपको ऐसा नहीं समझना चाहिए. बार बार कोई यूं ही दस्तक नहीं देता सर.
इससे पहले मेरी खातिर तमाम नामी गिरामी हस्तियों ने भी आपको पत्र लिखा था. क्या आपको उन पर भी शक होता है. मैंने तो किसी से कहा भी नहीं था. खुद आगे आकर उन लोगों ने मेरी फांसी को लेकर आपके पास विरोध जताया है.
आखिर ये मेरी फैन फॉलोविंग नहीं है तो क्या है. आपको ऐसा क्यों लगता है कि मेरे लिए सलमान खान जैसा सपोर्ट नहीं मिल रहा. बॉलीवुड की जिन हस्तियों ने सलमान खान का सपोर्ट किया था वो सब तो मेरे साथ भी हैं. जैसे बयान उन्होंने भाईजान के लिए दिए, मेरे मामले में भी उनका वही रवैया है.
ऊपर से मेरे लिए तो एक से एक बड़े बड़े नेता भी विरोध पर उतर आए हैं. हर कोई मुझे फांसी दिए जाने के खिलाफ खड़ा नजर आ रहा है.
प्लीज सर, एक बार आप ट्विटर और फेसबुक पर जाकर देखिए. आप उनके चक्कर में कतई मत पड़ें जो आपको 'बेफालतू' की सलाह देते रहते हैं.
आखिर आप कैसा सपोर्ट देखना चाहते हैं? क्या आप सलमान के फैन को मुंबई की सड़कों पर उतरने को भी सबसे बड़ा सपोर्ट मानते हैं?
अगर ऐसा है तो बताइए सर. आज तक ऐसा कब हुआ है कि आधी रात को देश के चीफ जस्टिस के दरवाजे पर दस्तक दी गई हो. ऐसा कब हुआ है जब नामी गिरामी वकीलों का चीफ जस्टिस के यहां भोर तक जमावड़ा लगा रहे.
आपको क्या लगता है ये लोग फीस लेकर मेरी पैरवी कर रहे थे. अरे, मैंने तो अपने वकील को छोड़ कर किसी को एक फूटी कौड़ी तक नहीं दी.
क्या पैसे के बल पर वकीलों की रैली कराने को भी आप बड़ी बात मानते हैं?
क्या आपने कभी देखा है किसी वकील को मीडिया के सामने इस कदर जलील किया गया हो.
क्या आपने किसी वकील को ऐसे गिड़गिड़ाते हुए देखा है, "मुझ पर रहम कीजिए, मेरा क्लाइंट मरने वाला है."

अब थोड़े लिखे को ज्यादा समझिए सर. बचपन में अपनी पहली चिट्ठी के आखिर में भी मैंने यही बात लिखी थी. व्हाट्सएप और ईमेल के जमाने में भी मैं आपको वैसे ही खत लिख रहा हूं सर.

महोदय,
सेवा में एक बार फिर से सविनय निवेदन है कि एक बार आप मेरे ऊपर दया कर दीजिए. मैं आपको यकीन दिलाता हूं, दोबारा आपको कभी तकलीफ नहीं दूंगा.

आप माने या न मानें, फिर भी

खुदा हाफिज,
आपका ही,

याकूब मेमन
चार्टर्ड अकाउंटेंट, डबल एमए, डेथ वारंट होल्डर

#याकूब मेमन, #फांसी, #सजा, याकूब मेमन, सजा, फांसी

लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

iChowk का खास कंटेंट पाने के लिए फेसबुक पर लाइक करें.

आपकी राय