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Updated: 30 अक्टूबर, 2016 01:44 PM
श्रुति दीक्षित
श्रुति दीक्षित
  @shruti.dixit.31
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त्योहार आए नहीं कि हर तरफ धूम-धड़ाका शुरू हो गया. हमने भी अपने मन में सोच लिया कि भइया इस बार चाहें कुछ भी हो जाए हम धूम मचाएंगे और मौज मनाएंगें. अरे साल भर में एक बार आती है दिवाली, ऐसे थोड़ी ना बैठे रहेंगे और त्योहार फीका करेंगे. यही सोचकर बस टिकट करवा लिया घर का. मन मचल उठा और सोचा कि "कभी खुशी कभी गम" के शाहरुख खान की तरह हम भी घर में बड़े स्टाइल से एंट्री लेंगे और उसी तरह मां प्यार से इंतजार कर रही होगी. "आमदनी अठन्नी और खर्चा रुपइया" में मनाई गई दिवाली की तरह मोहल्ले वालों के साथ नाचने गाने की इतनी तीव्र इच्छा हुई की साहब बता नहीं सकती.

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बॉलिवुड ने लोगों की अपेक्षाएं थोड़ी बढ़ा दी हैं. देखिए ना फिल्म गाइड में पिया तोसे नैना लागे रे गाने से लेकर कभी खुशी कभी गम की दिवाली तक कितने सारे सीन हैं जिन्हें वास्तव में जीने का मन करता है. ऊपर से फिल्मी सितारों को देखिए. कितने स्टाइलिश तरीके से दिवाली मनाते हैं. इस बार तो दिवाली की खबरें पढ़ने में ज्यादा मन लग रहा था. अब तो आमिर, रितिक, दीपिका और तमाम बॉलिवुड सितारों ने भी अपने दिवाली प्लान घोषित कर दिए हैं तो हम भी बना ही लेते हैं एक सॉलिड प्लान.

दिवाली पर 59 साल बाद बन रहा महासंयोग.. अब इसे क्या कहें?

दिवाली जैसे-जैसे करीब आ रही थी वैसे ही मां ने किसी पंडित की राय पर घर में नई तरह की पूजा के लिए तैयारी करनी शुरू कर दी. लोगों के अनुसार इस बार 59 साल बाद महासंयोग बन रहा है. जी बस, इस बार तो धन की वर्षा होगी और कुंडली तो वाह जी वाह राजयोग दिखा रही है. इसे सुनने के बाद तो ऐसा लगने लगा कि अबकी बार सबसे यादगार दिवाली रहेगी.

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 सांकेतिक फोटो

एक तो महीने का अंत ऊपर से दिवाली पर रिजर्वेशन ना मिलना. मन को पक्का करके प्लेन की टिकट करवा ली. समय तो बचेगा ही और साथ में टशन दिखेगा सो अलग. त्योहार के समय थोड़ा शो ऑफ चलता है. घर जाने की इच्छा इतनी प्रबल हो गई थी खर्च की चिंता नहीं रह गई. कुछ अपने पास था और कुछ दोस्तों-सहेलियों से उधार लेकर ट्रिप का प्लान पूरा कर लिया.

बोनस वाली दिवाली और बढ़ी हुई उम्मीदें, लेकिन... क्या से क्या हो गया?

सब कुछ अच्छा चल रहा था उसपर इस साल फिर वही खबर आई कि गुजरात के एक बिजनेसमैन ने अपने कर्मचारियों को बोनस में कार और मकान दिए हैं. अब देखिए माना हम उस बिजनेसमैन की कंपनी में काम नहीं कर रहे, लेकिन फिर भी बोनस और दिवाली के उपहार की उम्मीद तो अपनी कंपनी से कर ही सकते हैं. इत्तेफाकन उस दिन ऑफिस में दिवाली उत्सव भी था. अब मन में तो गिफ्ट के बारे में सोच सोचकर लड्डू फूट रहे थे, लेकिन उफ्फ ये क्या मन के लड्डू सामने थे. ऑफिस वालों ने दिवाली गिफ्ट के बदले पाव भर लड्डू का डिब्बा हाथ में रख दिया. कहने को तो दोनों हाथों में लड्डू थे, लेकिन मन में जो चल रहा था उसे व्यक्त नहीं किया जा सकता.

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खैर, डब्बे जैसा मुंह लिए हम वापस आ गए अपनी सीट पर और आते ही बॉस को दिवाली प्लान की बताने की सोची. इससे पहले की हम कुछ बता पाते बॉस ने आते ही ऐलान कर दिया कि इस दिवाली क्योंकि महीने का अंत है और हम अपने काम में पहले ही पीछे चल रहे हैं तो सभी को काम करना पड़ेगा. आवाज तो नहीं आई, लेकिन कई दिल एक साथ टूट गए. हम और हमारे साथियों के चेहरे शून्य हो चुके थे. बस गनीमत है कि आंसू नहीं आए. बॉस को मनाने की कोशिश की गई. लोगों ने अपने परिवार की दलीलें दीं, लेकिन सबका मालिक एक. आदेश उनके भी ऊपर से था. लो जी लो मन गई दिवाली.

ये आदेश सुनने के बाद कभी खुशी कभी गम के शाहरुख खान का मुस्कुराता हुआ चेहरा अचानक कल हो ना हो के सैड सीन में बदल गया. वही शाहरुख जिन्हें खिलखिलाता हुआ दिवाली पर घर जाता हुआ देख रहे थे अब रोते हुए कल हो ना हो कह रहे थे. सभी दुखभरे और परिवार से बिछड़ने वाले गाने याद आने लगे और हम गुस्सा होने ही वाले थे कि अचानक हवाईजहाज की टिकट याद आ गई और चेहरे की हवाइयां उड़ गई. हाय रे! ये तो रिफंड भी नहीं होगी. इस दिवाली ने तो दिवाला निकाल दिया. अब कहां गया राजयोग?

मां के हाथ का खाना, पकवान, पटाखे, पापा की गाड़ी, हमारा मोहल्ला सब कुछ याद आने लगा. अकेलापन चुभने लगा और ऐसा लगा कि दिवाली की रौनक कहीं खो गई हो. आस-पास एक जैसे चेहरे. आखिर हमारे ऑफिस आने पर कोई खुश थोड़ी होता है जैसे लोग घर जाने पर खुश हो जाते हैं. घर फोन करके ये दुखखबर भी सुना दी. कुछ कहा तो नहीं, लेकिन मां की आवाज से समझ आ गया कि क्या चल रहा होगा उनके मन में. इस बार अपनी देहरी पर दिए नहीं रख पाएंगे, रंगोली नहीं डाल पाएंगे, दिवाली पर अपने शहर के बाजार को नहीं देख पाएंगे. कुछ अधूरा सा है.

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 सांकेतिक फोटो

दो तरह की दिवाली...

क्या आप जानते हैं दिवाली भी कई तरह की होती है? खास तौर पर मैं इसे दो तरह की मानती हूं, एक टिप टॉप और दूसरी एवरेज. अब आप सोच रहे होंगे कि इसका क्या मतलब है तो भाई मैं एवरेज दिवाली मनाने वाले लोगों में से हूं. ये वो तब्का होता है जिसकी दिवाली में ना तो ढेरों पटाखे होते हैं और ना ही इतना समय होता है कि घर की सफाई, सजावट, मिठाई आदि पर ध्यान दिया जा सके. जी ये दिवाली है मिडिल वर्किंग क्लास की दिवाली. अस्पतालों, रेल्वे स्टेशन, पुलिस स्टेशन, पत्रकारिता, होटल, शॉपिंग मॉल और सेना की दिवाली. जहां किसी भी पल छुट्टी नहीं होती. मेरे हिसाब से एवरेज दिवाली सिर्फ वही लोग मना पाते हैं जो अपनों से त्योहार के समय दूर रहते हैं. जिनके लिए काम पहले है और बाकी सब बाद में. कोई मजबूरी में तो कोई फर्ज निभाने के लिए दिवाली पर अकेला रह जाता है और टिप टॉप दिवाली मनाने वालों को देखकर मन मसोसकर रह जाता है. जिसका त्योहार हर हफ्ते एक दिन की छुट्टी होता है और पटाखे घरवालों से वीडियो चैट को माना जाता है. कहीं ना कहीं एक बार ऐसा लगता है कि काश लोगों की एवरेज दिवाली भी टिप टॉप बन सके. जानती हूं कि फर्ज, काम, मजबूरी त्योहार से ज्यादा बड़ी होती है लेकिन फिर भी बस यही सवाल जहन में आता है कि हे भगवान! हमारी दिवाली आखिर ऐसी क्यों नहीं होती?

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लेखक

श्रुति दीक्षित श्रुति दीक्षित @shruti.dixit.31

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं.

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