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Updated: 02 अगस्त, 2023 12:48 PM
बिलाल एम जाफ़री
बिलाल एम जाफ़री
  @bilal.jafri.7
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उग रहा है दर-ओ-दीवार से सब्ज़ा 'ग़ालिब'

हम बयाबां में हैं और घर में बहार आई है...

शेर उर्दू फ़ारसी शायरी के 'शेर' ग़ालिब का है. याद इसलिए आया क्योंकि मैटर फेसबुक से जुड़ा है. कमाल की चीज है फेसबुक. शुरू इसे यूनिवर्सिटी के स्टूडेंट्स को जोड़ने के लिए किया गया था. वो कितना जुड़े? दुनिया जानती है. लेकिन जो वर्तमान है वो ये बताता है कि फेसबुक ने लेखकों, फोटोग्राफरों, कवियों, क्रांतिकारियों, सोशल एक्टिविस्टों, इंफ्ल्युएंसरों, प्रेम में पड़ने वालों से लेकर प्यार में धोखा खाए नाकाम लोगों तक सबको जोड़ दिया है. भले ही सरहद पर तनाव हो लेकिन हिंदुस्तानी अंजू और पाकिस्तानी नसरुल्ला ने इसी फेसबुक की बदौलत इंडिया पाकिस्तान को एक कर दिया है.

फेसबुक पर दिल लेने देने वाले मामले में अंजू और नसरुल्लाह कोई पहले नहीं है. भले ही अंजू का मुहब्बत की तलाश में पाकिस्तान जाना चर्चा का विषय बना हो. मगर इससे पहले पाकिस्तान की इक़रा इसी फेसबुक पर प्यार में पड़ी. आशिक मुलायम सिंह यादव से मिलने भारत आई. इक़रा ने मुलायम से शादी की और कर्नाटक के बेंगलुरु में रहने लग गयी. लेकिन चूंकि मुहब्बत के नतीजे मुलायम नहीं, कठोर होते हैं. पुलिस ने उसे गिरफ्तार किया और जांच पड़ताल के बाद वाया वागा उसे वापस पाकिस्तान भेज दिया. इक़रा और मुलायम के मामले में मुहब्बत के परखच्चे उड़ गए.

Seema Haider, Sachin Meena, Anju, Nasrullah, Facebook, PubG, Sports, Loveचाहे सीमा हो या अंजू दोनों ने बताया कि फेसबुक और पब्जी जैसी चीजें ज़िंदगी के लिए बहुत उपयोगी हैं

इंडिया की अंजू, इक़रा की तरह ही फेसबुक की वजह से मुहब्बत में पड़ी थी. मगर जैसी उसकी मोडस ऑपरेंडी थी. कह सकते हैं कि वो इश्क़ मुहब्बत के मामले में कच्ची खिलाड़ी कहीं से भी नहीं थी. अंजू ने एक रणनीति बनाई और उसके बाद क्या हुआ? वो हमारे सामने है. जिस तरह से पाकिस्तानी आवाम अंजू को महंगे तोहफों से नवाज रही है लग ही नहीं रहा कि पीएम नवाज के मुल्क में इतनी गरीबी है कि वहां लोग टमाटर जैसी चीज नहीं खा पा रहे (टमाटर भारत में भी महंगा है लेकिन अगर महंगा हुआ है तो कुछ सोच समझ कर हुआ है.)

खैर प्यार में पड़ना भले ही पर्सनल मैटर हो. लेकिन प्यार में पड़ने क माध्यम जब फेसबुक हो तो भइया कुछ भी पर्सनल नहीं रहता. जितने मुंह होते हैं उतनी तरह की बातें होती हैं. प्यार भले ही खेल न हो. लेकिन खेल खेल में भी प्यार हो सकता है. और उस दौर में जरूर हो सकता है जब लोग खेल मैदान पर न खेलकर डिजिटल प्लेटफॉर्म पर खेल रहे हैं. अब चार बच्चों की मां सीमा को देखिये फिर सचिन को देखिये.

भले ही सचिन के गांव की औरतें उसकी लव स्टोरी को देखकर जलभुन गयी हों और मामला प्रकाश में आने के बाद ये कह रही हों कि 'लप्पू सा सचिन है, मुंह में से बोलना वा पे आवे ना, बोलता वो है ना, झींगुर सा लड़का है, उससे प्यार करेगी वो?' मगर सच्चाई यही है कि उसने पब्जी पर खेल भी खेला, प्यार भी किया और बाद में नतीजा ये निकला कि सीमा कपड़े लत्ते के अलावा अपने 4 छोटे-छोटे, नन्हें मुन्ने बच्चों के साथ नेपाल के रास्ते भारत आई और सोशल मीडिया सेंसेशन बन गयी.

कोई जाए और जाकर बता दे जुकेरबर्ग को चाहे इंडिया के हों या पाकिस्तान के, हम वो लोग हैं जो फेसबुक को तो छोड़ ही दीजिये अगर बस चले तो नौकरी डॉट कॉम, लिंक्डइन, और प्रॉपर्टी बताने वाली वेबसाइट्स पर भी फ्लर्ट कर दें, कॉफी पीने का या फिर सीधे शादी का प्रपोजल डाल दें.

दुनिया कहां से कहां पहुंच गयी है. ऐसे में तरस आता है अपने आप पर. काश हमने भी कभी यूं इस तरह इजहार ए मुहब्बत के लिए फेसबुक को अस्त्र बनाया होता. ज़िन्दगी में गर्ल फ्रेंड आए इसके लिए पब्जी पर शस्त्र उठाया होता? कह सकते हैं कि जिस वक़्त सचिन-सीमा, अंजू-नसरुल्ला जैसे लोग पब्जी और फेसबुक पर एक दूसरे को प्रपोज कर चुके थे, एक दूसरे के साथ जीने मरने की कसम खा चुके थे हम इसी गफलत में थे कि अपने दोस्तों को उनके फेसबुक मेसेंजर पर गुड मॉर्निंग गुड आफ्टरनून वाली फूल पत्ती भेजें कि पोकर ऑनलाइन खेलने की रिक्वेस्ट.

विषय बहुत सीधा है. इंसान कोई भी हो एजेंडा क्लियर होना चाहिए. फोकस रहकर ही छोटे से छोटे और बड़े से बड़े काम किये जा सकते हैं. दुनिया हो या फुर अड़ोसी पड़ोसी कोई कुछ कह ले अंजू से लेकर और सचिन से लेकर नसरुल्ला था ये लोग अपने मिशन में सिर्फ इसलिए कामयाब हुए क्योंकि ये फोकस थे और इनका एजेंडा क्लियर था.

बहरहाल, क्योंकि कहा गया है जब जागो तब सवेरा इसलिए अब से सब बंद. अब फोकस सही किया जाएगा. हो सकता है कि ऐसा करके अंजू,सचिन, सीमा, नसरुल्ला की तरह हमारे भी अच्छे दिन आ जाएं. बाकी जैसा माहौल है क्रांतियां अपने अपने स्तर पर हर कोई कर रहा है. ऐसे में इतिहास से लेकर मुग़ल ए आज़म पिक्चर तक 'पास्ट' हमें यही बताता है कि मुद्दा जब मुहब्बत हो, तो चर्चा में आता ज़रूर है. क्या पता कल की तारीख में इश्क़ के नाम पर हमारा सिरफिरापन ट्विटर या इंस्टाग्राम पर ट्रेंड ही कर जाए और सोशल मीडिया वाली इस क्रांति के दौर में हम भी पाव भर या आधा किलो फेमस हो जाएं.

लेखक

बिलाल एम जाफ़री बिलाल एम जाफ़री @bilal.jafri.7

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं.

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