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Updated: 05 जुलाई, 2016 08:11 PM
प्रीति 'अज्ञात'
प्रीति 'अज्ञात'
  @preetiagyaatj
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"आसमान ने बदली करवटें जब से, गिरती रही वादों पर बिजलियाँ

झुलसी उम्मीदों के पत्तों से झूलती डाली, बदहवास हैं ख़्वाबों की तितलियाँ"

उई मां! कह दो ये झूठ है! या खुदा, मुसीबतें पहले से यूं भी कम न थीं,  अब ये कहर क्यूं ढा दिया. जुक्कु बाबू, बोलो ये तुमने क्या कर डाला? क्यूं सबके मुखौटे नौचने पर तुले हो, यार!

इतना बड़ा तहलका तो परमाणु बम भी न कर पाता, जो तुमने कर दिखाया! बाबा, रे बाबा! देखो तो जरा, कैसी बदहवासी छाई है. लोग हैरान-परेशान, बदहवास से इधर-उधर एक दूसरे की पोस्ट पर दौड़े जा रहे. की-बोर्ड पर कंपकंपाती उंगलियां हौले-से कहीं पूछ रही हैं ‘कहीं, ये सच तो नहीं’ और उधर से मिलता हुआ ये असंतोषजनक जवाब कि 'क्या पता, मैंने तो सबको करते देखा तो पोस्ट कर दिया" उनकी पीड़ा को गहन चिकित्सा कक्ष के मुख्य द्वार तक जाकर छोड़ आता है.

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भारत-पाकिस्तान के पिछले मैच के बाद आज हम फिर एक हैं. धर्म, जाति, कद, ओहदा और तमाम वाहियात दीवारों को फांदकर 'मिशन पोस्टिंग' जारी है. जनाब, मोहतरमा पसीने से लथपथ हैं, हृदय की धड़कनें दुरंतो की गति पकड़ चुकी हैं. हर तरफ एक ही धुन, "जाने क्या होगा रामा रे! जाने क्या होगा, मौला रे!" दनादन बजे जा रही है.

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 "आखिरकार एक कापी पेस्ट से कौन सा खर्च होने वाला है?"

फेकबुक, तुमने अपनी बुक का कवर ही फाड़ दिया. कन्फेशन बॉक्स में जाए बिना सबको अपनी हर एक गलती का कैसा जबर अहसास दिला दिया रे! पर ये लिखवाने की क्या जरूरत थी कि "आखिरकार एक कापी पेस्ट से कौन सा खर्च होने वाला है?"

अरे, आज आपका ही दिन है. एन्जॉय करो, चिल्ल मारो! कितना भी मांग लो... सब देने को तैयार हैं. नाक का सवाल है, भई! इनबॉक्स की बातें बाहर आ गईं तो क़सम से हम 'नकटिस्तान' निवासी हो जाएंगे. तुमको क्या पता, उदास खिचडियों की तह में कितना मलाई पनीर दबा है.

वो अंकल जो पोस्ट पर संस्कार और मर्यादा की बात करते हैं, न जाने कितनों को अश्लील वीडियो और तस्वीर भेज ब्लॉक किए जा चुके हैं. तुमको उनकी महानता के आखिरी लम्हों की क़सम, ये जुलुम न करना!

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जरा सोचो, मर्यादा पुरुषोत्तम राम की झलक देने वाले, सूरज बड़जात्या के हीरो-हीरोइन टाइप सुभाषित, सुशोभित, सुसज्जित, माननीय, आदरणीय चरित्रों का क्या होगा जब परिवारजन के सामने उनका तात्कालिक चरित्रहरण एपिसोड चलेगा. नहीं, नहीं, नहीं! उनको यूं अंधकार में धकेल उनके हिस्से की रोशनी लूटने का तुम्हें कोई हक़ नहीं. हाय, रब्बा अब में तुम्हें कैसे समझाऊँ.

उन शादीशुदा हीर-रांझाओं, लैला-मजनुओं का मनन करो, जिन्हें तुमने उम्र भर की आशिक़ी का इतना खूबसूरत स्पेस दिया हुआ है. क्या तुमसे उनकी खुशी देखी नहीं जाती? जलभुन्नू, जलकुकड़े कहीं के!

आखिर तुम उन एक्सट्रा स्मार्टियों की पोल के बहीखाते दीवाली के पहले ही क्यों खोल रहे, जो एक भद्दा जोक और तीर एक साथ कई जगह ब्रह्मास्त्र की तरह फेंक रहे. उनका मारक क्षमता का भेद न खोलो भाई! तुम्हें विभीषण चच्चा दी सौं.

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इस पोस्ट ने की सबकी हवा खराब

बताओ न, उनका क्या होगा, जो कहते कि हम ऑनलाइन आते ही नहीं कभी और तुम उनके तमाम प्रेम-संदेश सार्वजनिक कर उनके स्वाभिमान की धज्जियाँ, देश की गरीबी की तरह इधर-उधर बिखेर दोगे! इतना दर्द, इतनी आहें उफ्फ! कैसे बर्दाश्त कर सकोगे तुम?

बच्चे, बूढ़े और जवान ('पहने यंग इंडिया बनियान' याद आया न), पर सबकी आफ़त में है जान. आज गरीबी, बेरोजगारी, अपराध, स्त्री-विमर्श गए एक साथ तेल लेने. सब जगह एक अंजान साया रामू जी के भूत की तरह मंडरा रहा है. दुआओं के लिए अरबों हाथ उठे, दोस्त हेलो करने से घबरा रहे, ख्यालों में ये कैसी उमस है, मुई बारिश है कि पसीना सब रूमाल से सटासट पोंछे जा रहे. खाना गले के नीचे उतरता ही नहीं. सांस हलक में पैर पटक-पटक खिंच रही. हर जगह एक ही बात, तुम्हारा ही चर्चा. अब बच्चे की जान न लो पगले! हमसे दुनिया का यह दुःख और नहीं देखा जा रहा, जी भर आया, पछाड़ें खा-खाकर इतना गिरें हैं जितना सेंसेक्स भी आज तक न गिरा होगा.

"तड़प-तड़प के इस दिल से आह निकलती रही.... लुट गएएए  हां लुट गएए, हम चेहरों की पुस्तक्क में"

बस, बहुत हुआ इमोशनल अत्याचार. अब कह भी दो न ‘ये झूठ था, बौड़म’. पर समाज को एक पल में संस्कारी बनाने का दोबारा जब भी दिल करे, तो आते रहना! बड़ा अच्छा लगता है जी!

तुम हो, तो सब है, तुझमें ही रब है, पर ये दुनिया ग़ज़ब है!

लेखक

प्रीति 'अज्ञात' प्रीति 'अज्ञात' @preetiagyaatj

लेखिका समसामयिक विषयों पर टिप्‍पणी करती हैं. उनकी दो किताबें 'मध्यांतर' और 'दोपहर की धूप में' प्रकाशित हो चुकी हैं.

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